-विवेक कुमार मिश्र-

इस ठंडी रात की सुबह तो होगी इस उम्मीद में अपने जीव को पंख में समेटे एक पंक्ति में बगुले ऐसे बैठे हैं कि जैसे धूप का सेवन कर रहे हों। इस समय इससे बड़ा कोई सुख नहीं हो सकता। सुबह की सुनहरी धूप का आनंद बच्चे-बड़े-बुजुर्ग सभी लेते हैं तो वहीं जब ठंड हद से ज्यादा बढ़ जाती तो जीव अपने को जतन करते हुए धूप सेंकते हैं या पुआल, मांद आदि में छिप जाते हैं। बगुले इन दिनों खेत किनारे, नहर, नाले के आसपास भोजन और धूप की आस में एक आसन में बैठे रहते हैं जैसे कोई बड़ा अभ्यास या साधना कर रहे हों। जीव जीव की बात है। यहां बगुले हैं जो एक किनारे से धूप का आनंद ले रहे हैं और यहीं घास-फूस व जलस्रोत में अपना भोजन भी तलाश लेंगे पर अभी तो धूप सेंकते हैं जैसे सभी ने मिलकर प्लान बनाया हो। इन दिनों धूप सेंकने से बढ़कर कोई और कारज नहीं है ।
– विवेक कुमार मिश्र
कड़ाके की सर्दी में सुबह की गुनगुनी धूप का आनंद मनुष्यों के साथ साथ पशु पक्षी भी उठाते हैं,जलचर मगरमच्छ, घड़ियाल जैसे जीव भी जाड़े के दिनों में नदी के किनारे धूप सेकते पाए जाते हैं. बगुले भी पेड़ों की टहनियों में पंख पसार कर धूप सेवन करते हैं प्रकृति का अनमोल खजाना जीव मात्र के लिए बिखरा पड़ा है इसमें अभी शासकीय टैक्स नहीं लगा है,
सही फरमाया है