palmaduraichole

डॉ. पीएस विजयराघवन
(लेखक और तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार और संपादक)
मदुरै से करीब १९ किलोमीटर दूर स्थित अळगर कोईल की पहाड़ी पर स्थित भगवान मुरुगन के पळमुदिरचोलै मंदिर पर प्रकृति का सीधा आशीर्वाद है। मंदिर चारों ओर से फल, फूल व सब्जी के बाग से घिरा है। पळमुदिरचोलै का आशय भी फलों के बाग से है। प्रकृति की अनुपम वादियों में स्थित इस मंदिर का धार्मिक, आध्यात्मिक और पर्यटन के लिहाज से काफी महत्व है। भगवान मुरुगन के छह आवास में से यह एक है। इनमें से भी यह एकमात्र स्थल है जहां वे देवयानै व वल्ली के साथ दर्शन देते हैं। मुरुगन की अटूट उपासक अव्वैयार को यहां सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी जिसे तमिल में ज्ञानपळम कहा जाता है।

भौगोलिक वातावरण

अळगर कोईल की ऊंचाई पर यह मंदिर स्थित है। जबकि नीचे भगवान विष्णु का मंदिर है। यह पहाड़ी खूब उपजाऊ है। मुरुगन, देवयानै और वल्ली की अलग-अलग सन्निधि के अलावा भगवान गणेश का भी अलग मंदिर है। यह मंदिर तुलनात्मक रूप से अन्य मुरुगन मंदिरों से छोटा है लेकिन इसका वर्णन प्राचीन तमिल साहित्य में मिलता है। संगम कालीन साहित्य सिलपदिकारम, एट्टतोकै व पाट्टपट्टू में इस मंदिर का वर्णन है। यह सभी साहित्य करीब दो हजार साल पुराने हैं। इस मंदिर का वर्णन स्कंध पुराण व नक्कीरन के तिरुमुरुगतरुपडै व शैव संत अरुणगिरिनाथर के तिरुपुगल काव्य में मिलता है। मंदिर जिस पर्वत पर स्थित है उसे सोलैमलै कहा जाता है जिसका अन्य नाम वृषभाद्रि या इडाबगिरि है।

तीन शक्तियां

पळमुदिरचोलै मंदिर में तीन शक्तियों की पूजा होती है। मुरुगन की भार्या वल्ली को यहां इच्छा शक्ति व दूसरी पत्नी देवयानै को क्रिया शक्ति के रूप में पूजा जाता है। जबकि ज्ञान शक्ति के रूप में स्वयं सुब्रमण्यम (मुरुगन) की पूजा होती है। यही एकमात्र आरुपडैविडु है जहां तीनों  के विग्रह एकसाथ हैं। मुरुगन का यहां केवल एकमुखी विग्रह है जो खड़ी अवस्था में है। वे दो देवियों के साथ प्रतिष्ठित हैं। मुरुगन के विग्रह के साथ पाषाण निर्मित उनका शस्त्र वेल की यहां विशिष्ट पूजा होती है। पर्वत पर ही प्राकृतिक नुपूर गंगा नामक झरने के साथ राकयी अम्मन का मंदिर है। श्रद्धालु इसमें स्नान के बाद मंदिर में दर्शन करने जाते हैं। जनश्रुति के अनुसार इस जलप्रपात की उत्पत्ति विष्णु की पैंजनी से हुई है। मंदिर के पास ही सिलम्बर नदी बहती है।

मंदिर की कहानी

तमिल कवि व शैव संत अव्वैयार जिनको ज्ञान की मूर्ति कहा जाता था की भगवान मुरुगन ने परीक्षा ली। एक दिन थकी हारी अव्वैयार एक फलदार वृक्ष के नीचे आकर बैठी। अत्यधिक गर्मी के दिन वह भूखी व प्यासी भी थीं। उस वक्त पेड़ पर बैठे एक बालक ने उनसे पूछा कि क्या फल चाहिए? अव्वैयार ने हां भरी। फिर बालक ने पूछा क्या आपको गर्म (पका, तमिल में सूट्ट पळम) फल चाहिए? अव्वैयार यह सुनकर चैंक गई कि दुनिया में क्या गर्म फल भी होता है। उनको लगा कि इस बालक को दुनिया की छोड़ एक फल का भी ज्ञान नहीं है। वह थकी थी और तर्क-वितर्क नहीं करना चाहती थीं। अव्वैयार ने बालक से कच्चे फल मांगे। बालक ने वृक्ष की टहनी को हिलाया और फल नीचे गिरे लेकिन इन पर धूल लग गई थी। अव्वैयार ने धूल झाडने के लिए फूंक मारी। फूंक मारने के बाद बालक ने अव्वैयार से पूछा कि छूकर देखो फल गर्म है या नहीं? जो आप इसे फूंक मार कर ठण्डा करने की कोशिश में है। बालक का जवाब सुनकर अव्वैयार हत्प्रभ रह गईं कि एक चरवाहे के लड़के ने कितने सुंदर तरीके से फल के बारे में उसके गूढ़ ज्ञान को समझा दिया। अव्वैयार ने बालक से पूछा कि तुम हकीकत में कौन हो? बालक फिर अंतध्र्यान हो गया और उनकी जगह मुरुगन प्रकट हुए। अव्वैयार उस वक्त तक स्वयं को ज्ञानी समझती थीं लेकिन इस अध्याय के बाद उनको लगा कि अभी ज्ञान का सफर काफी लम्बा है। मुरुगन के समक्ष नतमस्तक हुई अव्वैयार ने उनसे ज्ञानोपलब्धि की प्रार्थना की। जिस वृक्ष के नीचे अव्वैयार को ज्ञान का बोध हुआ उस जगह आज भी पूजा होती है। मुरुगन ने इस प्रसंग से समझाया कि मानव मस्तिष्क पर भौतिकवाद की धूल जमी रहती है, इस परत को हटाने के बाद ही सत्य और भगवान की प्राप्ति हो सकती है। यही ज्ञान को प्राप्त करना है।

(डॉ. पीएस विजयराघवन की आस्था के बत्तीस देवालय पुस्तक से साभार)

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