
-शैलेश पाण्डेय-
कहते हैं भगवान के दर्शन तभी होते हैं जब उसकी मर्जी होती है। कई बार हम किसी मंदिर में जाने और भगवान के दर्शन के लिए सोचते रहते हैं और कार्यक्रम बनाते हैं लेकिन संयोग नहीं बैठता। फिर कभी अनायास ही ऐसा संयोग बैठता है कि बिना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के भगवान का दर्शन लाभ मिल जाता है। ऐसा ही इस बार डिग्गी कल्याण जी की यात्रा को लेकर हुआ। कई दिनों से इच्छा थी श्रीजी के दर्शन की। कई बार कार्यक्रम भी बनाया पर संयोग नहीं बैठा। लेकिन गत दिनों जयपुर दौरे पर अचानक ही कार्यक्रम बना और हम पहुंच गए श्रीजी के दरबार में।

डिग्गी कल्याण जी जयपुर से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर हैं। पिछले दिनों हुई अच्छी बारिश से खेतों में फसल लहलहा रही है। कहीं-कहीं खेतों में बाजरे के सिट्टे नजर आए। हम करीब सवा आठ बजे जयपुर से कार से रवाना हुए और दस बजे डिग्गी पहुंच गए। सांगानेर में सुबह भी ट्रेफिक की गहमा गहमी रहती है। आसपास के गांवों की ओर से आने वाले वाहनों की रेलमपेल रहती है। सांगानेर से रेनवाल तक ट्रेफिक कुछ ज्यादा था। इसके बाद कम होता चला गया। लेकिन ज्यों-ज्यों डिग्गी की ओर बढे सड़क पर मवेशियों की आवाजाही भी बढऩे लगी। बारिश के कारण सड़क के दोनों ओर की खाली जगह में घास उगी है और चरवाहे वहां अपने पशु चराते हैं। पश्चिम राजस्थान में लम्पी का कहर जारी है लेकिन इस क्षेत्र में इसका असर नजर नहीं आया।

प्रसाद के नाम पर अघोषित पार्किंग
हमने डिग्गी में प्रवेश किया तो कार को मोड़ पर दांयी ओर मोड़ने के बजाय सामने से एक कार आती देखकर सीधे ही बढ़ा दी। लेकिन इसके बाद की दो सौ ढाई मीटर की दूरी पार करना मुश्किल हो गया। हालांकि बारिश की वजह से रेत जमी हुई थी लेकिन टेड़े मेढ़े कटाव के कारण गुजरना मुश्किल हो गया। खैर हमने डिग्गी में प्रवेश कर तालाब के निकट जाट धर्मशाला से पहले खाली जगह पर कार को पार्क कर दिया। वहां अन्य वाहन भी पार्क थे। इसी दौरान वहां मौजूद एक व्यक्ति ने बताया कि आगे मंदिर का रास्ता संकरा है आप कार लेकर नहीं जा सकते। हमने कहा कोई बात नहीं हम तो खुद ही कार पार्क कर रहे हैं। लेकिन हम वहां से जैसे मंदिर के लिए ई रिक्शा में बैठकर बढऩे लगे कि वही शख्स आकर कहने लगा कि प्रसाद उसके यहां से लो क्योंकि उसने आपकी कार को पार्क करने में मदद की। हमने कहा भाई जगह आपकी निजी तो नहीं जो यह बाध्यता हो। आसपास और भी दुकानवाले हैैं। ऑटोरिक्शा चालक कहने लगा गाड़ी पार्क करने के लिए यही अघोषित व्यवस्था है। आप प्रसाद लें यही पार्किंग मूल्य है। छोटी जगह है संकरी गलियां हैं पार्किंग की सुविधा नहीं है। बाहर से आने वाले एक कदम पैदल नहीं चलना चाहते। लोगों का बस चले तो ठेट मंदिर तक कार ले जाएं। यही बड़ी समस्या है छोटे कस्बों में। वाहन वाले भी नहीं सोचते कि छोटी गलियों में जाएंगे तो अव्यवस्था होगी, रास्ते बाधित होंगे। खैर हमें ई रिक्शा ने मंदिर से पहले बने दरवाजे पर छोड़ दिया। किराया मात्र दस रुपए प्रति सवारी।
दिव्य दर्शन श्रीजी के
हमने पास ही की एक दुकान से प्रसाद लिया और पहुंच गए श्रीजी के दर्शन को। सम्मोहित सी करती है भगवान की छवि। अपूर्व शांति का एहसास होता है। यहां श्रीजी भगवान विष्णु के रूप में विराजमान हैं और अपने कल्याणकारी भाव से कल्याण धणी के रूप में लोक आस्था में रचे बसे हैं। लोक आस्था यही है कि भगवान सभी का कल्याण करते हैं। लोग मनौती मानते हैं और पूर्ण होने पर भगवान के दर्शन-पूजन को पहुंचते हैं। ध्वजा चढ़ाते हैं। श्रद्धालु ध्वजा लेकर नाचते गाते हुए मंदिर तक आते हैं। मांगलिक लोक गीतों की जगह अब डीजे की तेज धुन में बजते गीतों ने ले ली हैं। जय श्री जी जय कल्याण के जयकारों के बीच लोग ध्वजा लेकर मंदिर पहुंचते है और भगवान को अर्पित करते हैं। श्रद्धालु कई किलोमीटर की दूरी नंगे पांव तय कर श्रीजी के दर्शन को आते हैं। स्थानीय लोग मंदिर काफी प्राचीन 5600 साल से लेकर 500-600 साल पुराना बताते हैं। मंदिर को लेकर कई पौराणिक आख्यान जुड़े हैं।
पौराणिक आख्यान
एक आख्यान यह है कि एक बार इंद्र के दरबार में अप्सराएं नृत्य कर रही थीं। तभी एक अप्सरा उर्वशी को उन्हें देखकर हंसी आ गई। इससे कुपित इंद्र ने उर्वशी को 12 साल तक मृत्युलोक में रहने का श्राप दे दिया। उर्वशी भू लोक में आई और यहां ऋषियों के आश्रम में रहने लगी। उसकी सेवा से प्रसन्न होकऱ ऋषियों ने उसे वरदान मांगने को कहा। उर्वशी ने इंद्र लोक में वापस लौटने का वरदान मांगा। इसी बीच वहां के राजा ने उर्वशी को देखा तो वह उस पर मोहित हो गया और उससे विवाह का प्रस्ताव किया। उर्वशी ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह इंद्र की अप्सरा है और श्राप मुक्ति के बाद उसे वापस जाना होगा। इस पर राजा ने इंद्र को युद्ध की चुनौती दी। उर्वशी ने राजा से कहा कि यदि वह पराजित हो गया तो वह उसे श्राप दे देगी। इंद्र ने विष्णु भगवान की मदद से राजा को पराजित कर दिया और उर्वशी ने उसे श्राप दे दिया जिससे राजा कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया। राजा ने भगवान विष्णु की तपस्या की। भगवान ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और रोग मुक्त किया। भगवान ने उसे नदी किनारे भूमि में दबी एक मूर्ति के बारे में बताया। राजा ने उसी मूर्ति को भूमि से निकालकर मंदिर में विराजमान किया। वही विष्णु भगवान आज लोक रूप में कल्याण जी के नाम से जन आस्था में सदियों से बसे हैं। राजा डिगवा के नाम से यह स्थान अपभ्रंश होता हुआ डिग्गी हो गया है और कल्याण धणी के नाम के साथ जुड़ गया।

अपूर्व शिल्प वैभव
मंदिर का स्थापत्य शिल्प उसके प्राचीन होने की गवाही देता है। यह भी तय है कि समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है। स्थानीय लोग ही यह बात बताते हैं। कहते हैं राजा जी बणता संवारता रिया। लेकिन प्रभु का विग्रह तो वही है जो उनके प्राकट्य के समय था। मंदिर में सोलह स्तंभ बताए जाते हैं। मंदिर का शिखर भी बहुत आकर्षक है। मंदिर का गर्भ गृह, वर्ताकार परिक्रमा पथ और प्रार्थना कक्ष आज से ढाई तीन सौ साल पहले रियासत काल में बनी इमारतों के शिल्प से जोड़ता नजर आता है। मंदिर की दीवारों छत पर बहुत ही सुंदर चित्रकारी की गई है।
मनोहारी तालाब
श्री जी कल्याण धनी के दर्शन उपरांत नगर के किनारे बहुत विशाल सरोवर देखा। बच्चे, पुरुष, स्रियां उसमें डुबकियां लगा रहे थे। बच्चे ऊँची छलाँगे लगाकर तैराकी कौशल को निखार रहे थे। सरोवर के किनारे कई छतरियां भी बनी हुई हैं। लोगों ने बताया कि डोल ग्यारस पर तो यहां पैर रखने की भी जगह नहीं थी। सरोवर के निकट एक चाय की दुकान है जहाँ चाय की चुस्की के साथ सरोवर देखने का आनंद और बढ़ जाता है। चाय की दुकान की मालकिन अम्मा जी ने बहुत बड़ी नथ पहन रखी थी जो उनका रोज का पहनावा ही होगा। चारों ओर रंग बिरंगे स्थानीय पहनावे में महिलाओं और युवतियों को हंसता गाता देखकर लगा कि वास्तव में लोकजीवन का अपना ही आनंद है। ऐसा लगा कि यहाँ जैसे भक्ति का सैलाब उमड़ा है। लोगों की आस्था तो देखते ही बनती थी। चिलचिलाती धूप में निशान यात्रा के आगे पीछे क्या बड़े, क्या बच्चे पुरूष महिलाएं नंगे पैर भजन गाने और नाचने में मशगूल थे। वे पूरी मनोभावना से डिग्गी पुरी के जयकारे बाजे छे नौबत बाजा म्हारा डिग्गी पुरी का राजा गाते चल रहे थे।

बाबा तुलसीदास ने मानस में कहा है *बिनु हरि कृपा मिलहि नहिं संता * मनुष्य को सदैव गुरु की प्राप्ति तभी होती है जब भगवान् नारायण की कृपा होती है। इसी तरह देव दर्शन भी हरि प्रेरणा से ही मिलते हैं। भगवान् विष्णु के नाम श्री कल्याण जी के दर्शन एवं व्यवस्था का सही दिग्दर्शन लेखक ने कराया है। मंदिर प्रशासन और राज्य सरकार को यात्रियों के वाहन स्टैंड की उचित व्यवस्था करनी चाहिए तथा प्रसाद के नाम पर हो रही लूट पर अंकुश लगाने की जरूरत है । धार्मिक स्थल पर इस तरह की लूट जग विदित है।
कल्याण कल्याण धणी के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी गई है यह राजस्थान का प्रमुख तीर्थ स्थल है यहां पर कुछ अवस्थाएं है जो सुधारी जानी चाहिए