परशुराम द्वादशी सोमवार को, जानें पूजा विधि एवं महत्व

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-राजेन्द्र गुप्ता-
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राजेन्द्र गुप्ता
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को परशुराम द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम जी की पूजा की जाती है। परशुराम द्वादशी व्रत भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम को समर्पित है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को परशुराम द्वादशी व्रत मनाया जाता है। इस दिन कई भक्त कठोर व्रत रखते हैं।
मोहिनी एकादशी के अगले दिन परशुराम व्रत मनाया जाता है। शास्त्रों में इस व्रत को बहुत फलदायी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार अगर ऐसा कहा जाता है कि वे दम्पत्ति जो संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, परन्तु इसमें विलम्ब हो रहा है, तो उन्हें इस दिन व्रत और पूजन अवश्य करना चाहिए। साल 2024 में परशुराम द्वादशी का व्रत 20 मई 2024 को रखा जाएगा।
क्यों मनाई जाती है परशुराम द्वादशी
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हिन्दू धर्म पुराणों में उल्लेख मिलता है कि परशुराम द्वादशी के दिन भगवान शिव ने परशुरामजी को पृथ्वी पर बढ़ रहे अधर्म का नाश करने के लिए दिव्य परशु अस्त्र प्रदान किया था। मान्यता है कि धरती ने अपने लोगों पर हो रहे अनाचार से रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु से विनती की थी। इसके फलस्वरूप उन्होंने अक्षय तृतीया के दिन ऋषि जमदग्नी और रेणुका के पुत्र परशुराम के रूप में धरती पर जन्म लिया।
आगे चलकर परशुराम ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, भगवान शिव ने उन्हें भार्गवास्त्र (परशु) प्रदान किया, जिससे उन्होंने हैहयवंशी राजाओं का संहार किया। कहा जाता है कि इसके बाद परशुराम ने कई वर्षों तक महेन्द्रगिरि पर्वत पर तपस्या की थी।
परशुराम द्वादशी व्रत का महत्त्व:
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इस दिन भक्त कठोर व्रत रखते हैं। शास्त्रों में इस व्रत को अधिक फलदायी माना गया है। मान्यता के अनुसार अगर किसी दंपत्ति को संतान प्राप्ति की इच्छा हो तो उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बता दें कि वैशाख शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को धरती माता भगवान विष्णु ने धरती पर फैली बुराई को समाप्त करने के लिए परशुराम अवतार लिया था।
परशुराम द्वादशी की पूजा विधि:
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परशुराम द्वादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना करें और व्रत का संकल्प लें ।
संकल्प लेने के बाद एक लकड़ी के चौकी पर रखकर लाल कपड़ा बिछाकर, भगवान विष्णु या परशुराम की तस्वीर या मूर्ति को स्थान दें ।
गंगा जल या किसी शुद्ध जल से चित्र या मूर्ति का अभिषेक करें।
अब पंचोपचार पूजा करें. अर्थात पूजन धूप, गंध, पुष्प, कुंकु, नैवैद्य आदि से करें।
फिर अंत में आरती करें और सबको प्रसाद बाटें ।
संध्या में भी पूजा करें ।
इस व्रत का पारण अगले दिन सुबह पूजा के बाद किया जाता है।
यदि परशुराम द्वादशी गुरुवार को पड़े तो भगवान विष्णु की पूजा और गुरुवार का व्रत एक साथ किया जा सकता है। बस इस बात का ध्यान रखें कि इस दिन नमक नहीं खाया जाता है।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175
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