
-धीरेन्द्र राहुल-
मैं अर्थशास्त्र का विद्यार्थी नहीं रहा। इसलिए नहीं जानता कि प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति जीडीपी ( प्रति व्यक्ति राज्य शुद्ध उत्पादन ) में क्या अंतर है? क्या ये दोनों एक ही चीज हैं।
ये अर्थशास्त्री मित्र ही बता सकते हैं?
फोर्ब्स के अनुसार भारत की प्रति व्यक्ति आय 2.28 लाख रुपए है जबकि भारतीय रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के अनुसार देश की औसत प्रति व्यक्ति जीडीपी 2022 – 23 में 1.06 लाख रही। इन आंकड़ों के हिसाब से तो प्रति व्यक्ति आय की तुलना में प्रति व्यक्ति जीडीपी 1.22 लाख कम है।
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार देश में 13 छोटे-बड़े राज्य तो ऐसे हैं जिनकी प्रति व्यक्ति जीडीपी एक लाख से कम है। जिसमें राजस्थान भी शामिल है। सन् 2011-12 में राजस्थान की जीडीपी 57 हजार थी जो 59.3 फीसद बढ़कर 92 हजार हो गई है।
यहां ये सवाल इसलिए उठाया है कि गत 2 जुलाई को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने लोकसभा में सवाल उठाया था कि विश्व जीडीपी में पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था के बारे में तो सरकार जोरशोर से बताती है लेकिन प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े क्यों छुपा लेती है? हंगर इंडैक्स और हैप्पीनेस इंडैक्स में हम किस स्थिति में हैं, क्यों नहीं बताती सरकार।
फोर्ब्स के अनुसार विश्व की दस बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम प्रति व्यक्ति आय भारत की है। अमरीका में प्रति व्यक्ति आय 71.30 लाख, कनाडा 45.82 लाख, जर्मनी 45.34 लाख, ब्रिटेन 42.65 लाख, फ्रांस 39.55 लाख, इटली 33.5 लाख, जापान 27.67 लाख, ब्राजील 9.48 लाख और भारत 2.28 लाख है।
यहां हम देखते हैं कि विश्व अर्थव्यवस्था यानी जीडीपी में कनाडा (2.24), ब्रिटेन (3.50), फ्रांस (3.13), इटली (2.33), ब्राजील (2.33), भारत (3.94 ) से पीछे हैं।
जीडीपी में भारत आज अमरीका ( 28.78 ), चीन ( 18.54 ), जर्मनी ( 4.59), जापान ( 4.11) के बाद भारत ( 3.94 ) के साथ भले ही पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था बन गया हो लेकिन फिर भी हम विपन्न लोगों का देश है।
देश की सकल घरेलु आय बढ़ रही है। कोई ताजुब्ब नहीं कि आने वाले समय में हम जापान और जर्मनी की जीडीपी को पछाड़ कर अर्थव्यवस्था के मामले में तीसरे नंबर पर पहुंच जाए लेकिन तब भी 145 करोड़ जनसंख्या के चलते प्रति व्यक्ति आय के मामले में फिसड्डी ही रहेंगे।
ऐसा नहीं है कि पिछले एक दशक में मोदी सरकार ने कुछ नहीं किया? पिछले एक दशक में भारतीयों की प्रति व्यक्ति आय 36 फीसदी बढ़ी है लेकिन अभी भी सोने की चिड़िया बनने के लिए मीलों चलना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)