-संजय चावला-
हमारी सरकारों को गाँधी के केवल चश्मे की आवश्यकता है जिसमे एक तरफ स्वच्छ लिखा हो और दूसरी तरफ भारत. इसके अतिरिक्त 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को गाँधी को याद करने की रस्म अदा कर दी जाती है.मेहुल देवकला एक गुजराती कवि और फिल्म निर्माता हैं. उनकी शोर्ट फिल्म ‘कौन से बापू’महात्मा गाँधी पर आधारित है. उन्होंने आज के द टेलीग्राफ में लेख लिखकर बताया है कि गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ को गत वर्ष ही गुजरात सरकार ने अपने हाथ में ले लिया था. इसके साथ ही सरकार ने अपने असली रंग दिखने शुरू कर दिए हैं.पिछली 4 अगस्त को विद्यापीठ की एक छात्रा सर्व धर्म प्रार्थना सभा में ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ गाने लगी तो उसे एक हिंदी के प्रोफ़ेसर द्वारा रोक दिया गया. इसके लिए उसे अपमानित भी किया गया.ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान गाँधी जी का एक प्रिय भजन था. पर अब लगता है यह बीते दिनों की बात हो जाएगी. गुजरात विद्यापीठ की वेबसाइट पर आप जा कर देखें तो विद्यापीठ के सब टाईटल के रूप में लिखा है ‘जहाँ गाँधी जिंदा हैं’- क्या वाकई?बनारस में गाँधी संस्था सर्व सेवा संघ की बिल्डिंग को गिरा ही दिया गया है. गाँधी शांति पुरूस्कार भी गीता प्रेस को दिया गया है.देश में ऐसी बातें इस गति से हो रही हैं कि लगता है धीरे धीरे हमें इन बातों पर आश्चर्य होना ही बंद हो जायेगा.
गुजरात सरकार आने वाले मानसून सत्र में एक बिल लेकर आने वाली है जिसके पास होने के बाद कॉमन यूनिवर्सिटी अधिनियम बन जायेगा जिसके अनुसार प्रदेश के सभी छः विश्वविद्यालय सरकार के अधीन हो जायेंगे. अधिनियम लागू होने के बाद यूनिवर्सिटी के सीनेट और सिंडिकेट के चुनाव पर रोक लग जाएगी. इनके स्थान पर प्रदेश सरकार बोर्ड ऑफ़ गवर्नेंस का गठन करेगी जिसके सदस्य सीधे सरकार द्वारा लगाये जायेंगे. बोर्ड ऑफ़ गवर्नेंस के गठन की बात नई शिक्षा नीति 2020 में कही गयी है. इस नीति में कई ऐसी बातें हैं जिन्हें बड़े ही लुभावने अंदाज़ में शब्द जाल बुनकर प्रस्तुत किया गया है. लगता है शिक्षा में तो अब बस क्रांति ही आने वाली है. बोर्ड ऑफ़ गवर्नेंस के गठन को भी विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता देने के रूप में प्रस्तुत किया गया है. पर अन्दर की योजना क्या है यह गुजरात सरकार ने दिखा दिया है. छात्र राजनीति भी अब बीते दिनों की बात हो जाएगी. सभी जानते हैं कि हमारे देश के कालेजों और विश्वविद्यालयों की स्थिति को देखते हुए यहाँ सेमेस्टर सिस्टम बिलकुल भी व्यवहारिक नहीं है. इसमें साल में दो बार परीक्षा होती है. छात्र संघ चुनाव के लिए अकादमिक केलेंडर में समय निकालना संभव ही नहीं है. इस मामले में हमारे प्रदेश राजस्थान की सरकार भी दूध की धूली नहीं है. गैर भाजपा सरकार होते हुए भी उसने नई शिक्षा नीति के खिलाफ कोई विरोध दर्ज नहीं कराया है.हमारे अधिकाँश नेता छात्र राजनीति से ही निकले होते हैं पर सत्ता में आने के बाद उन्हें छात्र राजनीति से भय ही लगता है. कॉमन यूनिवर्सिटी अधिनियम देखने में तो सरल सा लगता है पर इसके रंग भी धीरे धीरे सामने आयेगे. गुजरात के छः विश्विद्यालय प्रदेश के प्रमुख शहरों की प्राईम लोकेशन पर स्थित हैं और इनकी भूमि की कीमतहज़ार करोड़ों में है. कुछ समय बाद वहां भी पुनर्विकास और विस्तार के नाम पर वही सब व्यवसायिक गतिविधियाँ शुरू हो जाएँगी जैसी साबरमती आश्रम के अधिग्रहण के बाद शुरू हो गयी है. अब आप केवल अकेले में ही गुनगुना सकते हैं- सबको सन्मति दे भगवान.
(लेखक शिक्षाविद एवं टिप्प्णीकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

















