
-अख्तर खान अकेला-

कोटा। हाल ही में कोटा जिला प्रशासन और भाजपा सरकार ने मिलकर कोटा उत्सव और चम्बल उत्सव का आयोजन किया। इसके लिए कोटा प्रशासन को बधाई, लेकिन मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन की कहावत भी तो चरितार्थ हुई। कोटा उत्सव में अलग अलग कार्यकाल में भाजपा सरकार के वक्त का कोई भी एक काम ऐसा नहीं जो कोटा की तरफ पर्यटकों को आम लोगों को आकर्षित कर सके। एयरपोर्ट विहीन कोटा में जो काम कांग्रेस सरकार में शांति कुमार धारीवाल ने , कांग्रेस हाईकमान से टक्कर लेकर , ज़िद करके , बदनामियां झेलकर ,कोटा के विकास , सोंदर्यकरण कार्य करवाए ,, उनका रखरखाव भी सही ढंग से भाजपा सरकर और यह जिला प्रशासन नहीं कर पा रही है। शांति कुमार धारीवाल का सेवन वंडर , सिटी पार्क , अभेड़ा महल का सौंदर्य, छत्र विलास उद्यान, चंबल रिवर फ्रंट , किशोर सागर में मोटर बोटिंग से जलमंदिर तक का सफर , चंबल माता की मूर्ती, केशोराय पाटन तट की खूबसूरती, फ्लाई ओवर , फ्लाई ओवर के नीचे रंग बिरंगी लाइटें, एरोड्रम की खूबसूरत मीनारे, चौराहों पर लगे खूबूसरत रंग बिरंगे रोशन कर देने वाले बल्ब ,व्यवस्थित बस्तियां, आवागमन के लिए खूबसूरत शार्ट कट सड़कें। कोटा की जनता खूब जानती है कि कोटा उत्सव ,चंबल उत्सव में यही कुछ सौंदर्य विकास कार्य हैं जिन्हे गिनाया जा सकता है। लेकिन पर्यटकों के लिए,चंबल रिवर फ्रटं को मुफ्त किया, तो हर पर्यटक के मुंह से कांग्रेस और शांति कुमार धारीवाल द्वारा करवाए गए कार्यों की वाह वाही थी तो भाजपा सरकार के लिए गुस्सा, क्योंकि चंबल रिवर फ्रटं के रखरखाव में लापरवाही , मनमानी , चंबल रिवर फ्रंट को अंतररष्ट्रीय स्तर पर ओर अधिक आकर्षक बनाने के लिए धारीवाल की जो भविष्यगामी पर्यटकों को आकर्षित करने की विकास ,सोंदर्यकरण योजनाएं थीं उन्हें ठप्प कर देना। यह कड़वा सच सभी जानते हैं , इसे अंगीकार , स्वीकार करके , हम भाजपा, भाजपा के नेताओं को शर्मिंदा होने के लिए नहीं कह रहे हैं ,लेकिन खुद भी तो आत्म चिंतन करें। कोटा की जनता , कोटा के विकास , सौंदर्य कार्य केे बेहतरीन रखराव के बारे में सोचें। सिर्फ हिन्दू मुस्लिम करना, कांग्रेस के कार्यों को कोसते रहना ही सब कुछ नहीं है। कोटा के लिए कुछ तो करो। किया यह कि केडीए ने ऐतिहासिक छतरी ही तोड़ दी। आंदोलन हुआ तो फिर दुबारा बनवाई। सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया ,,चालान और जुर्माने खूब हुए , लेकिन जिस सड़क को सुरक्षित करने के लिए यह सप्ताह मनाया जाता है, उन सड़कों को आम आदमी के लिए गड्डे भरकर आवाजाही के लिए अतिक्रमण मुक्त करके लावारिस उत्पाती मवेशियों और श्वानों से सड़क को सुरक्षित नहीं किया। चौराहों पर ,दृष्टि भ्रम के विज्ञापन जो , साइन बोर्ड्स ,, सांकेतिक चिन्हों तक पर लगे हुए हैं ,उन्हें नहीं हटाया। कोटा कोचिंग की तबाही , कोटा कोचिंग को विकेन्द्रीकृत कर , दूसरे राज्यों में स्थापित कर कोटा में छात्रों के आवागमन पर कोमा ,, फुलिस्टॉप , लगाने की कोशिशों ने कोटा की अर्थव्यवस्था , रोज़गार व्यवस्था गड़बड़ा दी है। अभी हॉस्टल एसोसिएशन ,, व्यापार महासंघ ,, कोटा में फिर से रोज़गार के अवसर बढ़ाने, कोटा की कोचिंग व्यवस्था को फिर से जीवित करने के प्रयासों में जुटे हैं। लेकिन उनके पास भी कहने के लिए कुछ नहीं , सिवाय इसके कि कोटा में पर्यटन की संभावनाएं हैं। रिवर फ्रटं है, खूबसूरत पार्क हैं और कई तरह के पर्यटक स्थल हैं।लेकिन इन सब के बावजूद भी यह लोग , कोचिंग व्यवस्था को जिस तरह कोटा से बिहार , मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों ,दुबई वगेरा में स्थापित कर कोटा में आने वाले छात्र छात्राओं को उनके ही राज्यों में रोककर, भवन , बिल्डिंग,परिसर बनाकर अरबों रूपये की दौलत रियल स्टेट के मुआफ़िक बनाने की कोशिश की ह , उस मामले में पोस्टमार्टम रिसर्च पेपर रिपोर्ट कोई भी तय्यार कर कोटा में फिर से विकेन्द्रीकृत हुए कोचिंग को केंद्रीकृत करने की कोशिशों के लिए , कोचिंग गुरुओं पर कोटा निवासित होने की नैतिक पाबंदियां नहीं लगाई गई है। क्योंकि क़ानूनी पाबंदी तो लग नहीं सकत , किसी को भी अपनी मर्ज़ी से रोज़गार करन , रुपया कमाने का , बिल्डिंग भवन बनाने का क़ानूनी हक़ है, लेकिन फिर भी , कोटा ने जहां शुरुआत करके ,,ज़ीरो से हीरो बनाया, जब वहां कोचिंग के पर्याप्त संसाधन, होटल, होस्टल्स है, छात्र छात्राओं की और राज्यों से बहतर एवेयरनेस है, तो फिर कोटा में ही, केंद्रीकृत क्यों नहीं। एक एयरपोर्ट है जो वायदों में घिरा है। उस पर भी दबाव बनाकर , चार साल की कार्य योजना को लोकसभा अध्यक्ष से कहकर , डेढ़ से दो साल में पूरी करने की कवायद क्यों नहीं करते। यह सोचने की बात है। कोटा व्यापार महासंघ , हॉस्टल एसोसिएशन, होटल एसोसिएशन और दूसरी संस्थाओं को कोटा को पुनर्जीवित करने के लिए, पोलिटिकल सोच, पार्टी की सोच से अलग हटकर सिर्फ कोटा निवासी बनकर सोचना होगा। अपनों से भी संघर्ष करना होगा, क्योंकि यहां अब शांति कुमार धारीवाल की कांग्रेस नहीं हैं। जो एक चीज़ मांगने पर कोटा को विकसित करने के लिए दस विकास कार्य स्वीकृत करवाकर लाते ही नहीं थे। उन कामों को समयबद्ध तरीके से पूरे भी करवाते थे। अब प्रशासन और सरकार की स्थिति देखिए , कोटा उत्सव, चंबल उत्सव है , यहां कोटा को विकसित करने वाले शांति कुमार धारीवाल साहब को किसी भी कार्य्रकम में याद नहीं किया। याद किया भी तो सिर्फ विधायक के नाते सिर्फ रस्म अदायगी के लिए। कोटा में प्रसिद्ध शायर कवि , जगदीश सोलंकी , अतुल कनक , कुंवर जावेद, सुरेश अलबेला, सुभाष सोरल, पूर्व जज जस्टिस पानाचंद जेन, मुनीर खान हैं। कोटा को कोचिंग हब बनाने वाला बंसल परिवार है। संघ के विद्वान राजेन्द्र शर्मा, लोकतंत्र सेनानी फरीदुल्लां, कारगिल शहीद के परिजन , इतिहास कार , फोटोग्राफर , कलाकार ,, खेलकूद से जुड़े लोग है। कोटा में राष्टीªय , ,राज्य , अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभा हैं, विशेषज्ञ हैं, लेकिन कोटा उत्सव, चम्बल उत्सव में इन प्रतिभाओं , कवि , शायर , खिलाड़ियों को ,,बुलाकर सम्मानित करना तक उचित नहीं समझा गया। यह प्रशासन की भूल हो सकती है, लेकिन उसे मार्गदर्शन करने वाले, रिमोट से चलाने वाले भाजपा नेताओं , भाजपा सरकार में बैठे लोगों को देखना था। कोटा में स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार हैं , अंग्रेज़ों की गुलामी से कोटा को आज़ाद कराने के जंगजू सिपाहियों, महराब खान , लाला जय दयाल की टीम का अपना इतिहास है। कोटा को अंग्रेज़ों से आज़ाद करवाकर , कोटा आज़ाद कराने का इतिहास है। फिर मुखबिरों की वजह से इन स्वतंत्रता सेनानियों के गिरफ्तार होने , देश और कोटा की आज़ादी के लिए हँसते हँसते फांसी पर लटकने वाले लाला जय दयाल, महराब खान का इतिहास है। कोटा की स्थापना , कोटा को बचाये रखने वालों से कोटा की शान, सम्मान बढ़ाने वालों से , कोटा उत्सव को दूर क्यों रखा , यह सोचने की बात है। भविष्य में इस मामले में सबक़ लेकर इन गलतियों को सुधारने के लिए संकल्पबद्ध होने की भी बात है। अफसोस तो इस बात पर है कि सरका , उसके नुमाइंदों की इन गलतियों के खिलाफ विज्ञापन के बोझ तले दबे अखबार , पत्रकार चुप हो सकते हैं , लेकिन बुद्धिजीवी, आम आदमी, सोशल मीडिया एक्टिविस्ट, स्वतन्त्र पत्रकार चुप क्यों हैं। यह लोग चुप हैं तो हैं, लेकिन कोंग्रेस तो मज़बूत विपक्ष ह।ैं कोटा की इन उपेक्षापूर्ण कार्यवाहियों पर कोंग्रेसी पदाधिकारी संगठन इंचार्ज , प्रवक्ता चुप्पी क्यों साधे हैं समझ के परे की बात है।
(लेखक एडवोकेट और एक्टिविस्ट हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)