
-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। राजस्थान के कोटा संभाग में पहले ही अतिवृष्टि के कारण खरीफ़ कृषि सत्र की कई उपजों को व्यापक पैमाने पर नुकसान पहुंचा और बारिश का यह सिलसिला अभी सितंबर माह के अंतिम दिनों में भी जारी रहने के कारण खरीफ का फसल नुकसान और अधिक बढ़ेगा। किसानों को अतिवृष्टि से खरीफ़ के कृषि सत्र में फसलों को व्यापक पैमाने पर नुकसान होने के बावजूद सबसे अधिक चिंता

इस बात को लेकर हो रही है कि बड़ी फसली आर्थिक क्षति पहुंचने के उपरांत भी अभी तक खराबे के आकलन के लिए कोटा संभाग के चारों जिलों कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ में अपेक्षित स्तर पर प्रशासनिक स्तर पर सर्वे की तैयारियां तक नहीं की गई और दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस-भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता मौन साधे हुए हैं।
सबसे अधिक नुकसान सोयाबीन की फसल को
इसके अलावा किसान संगठनों का आरोप है कि राज्य सरकार को गुमराह करते हुए अतिवृष्टि से नुकसान का कम करके अनुमान प्रस्तुत किया जा रहा है जिसके चलते किसान राष्ट्रीय आपदा राहत के तहत ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर बीमा कंपनियों में प्रिमीयम भरकर फ़सली बीमा करवाने वाले किसानों को भी अतिवृष्टि के कारण हुए नुकसान की ऎवज में मिलने वाले मुआवजे से वंचित रहने की आशंका है। कोटा जिले में सांगोद क्षेत्र के कुराडिया कलां गांव निवासी किसान उम्मेद सिंह हाडा ने बताया कि इस मानसून सत्र में हुई अतिवृष्टि से सबसे अधिक नुकसान सोयाबीन की फसल को हुआ है। इलाके में ऐसे किसानों की संख्या सैकड़ों में है जिनके यहां लगातार बरसात होते रहने के कारण खेतों में निरंतर कई दिनों तक पानी भरे रहने की वजह से सोयाबीन की खड़ी फसल पूरी तरह से गल कर नष्ट हो गई और ऐसा कृषि रकबा उजाड़ हो गया जिसमें कई जगह तो सोयाबीन की फसल का नामोनिशान तक नहीं बचा।
मुआवजा मिलने को लेकर किसान आशंकित
श्री उम्मेद सिंह ने इस बात पर गहरा खेद-नाराजगी प्रकट की कि सोयाबीन की फसल में इतने बड़े पैमाने पर खराबा होने के बावजूद अभी तक प्रशासनिक स्तर पर क्षति के आकलन के लिए सर्वे तक का काम शुरू नहीं हो पाया है जिसके कारण खराबे की एवज में नुकसान का मुआवजा मिलने को लेकर किसान आशंकित है। इसी गांव की काश्तकार सूरज गुर्जर, चौथमल ने कहा कि सोयाबीन ही नहीं बल्कि दलहनी, फसलें मूंग, उड़द सहित मूंगफली, मक्का आदि को भी काफी नुकसान पहुंचा है। प्रशासन को सर्वे करवाना चाहिए।
गलत आंकड़े का आरोप
हाड़ोती किसान यूनियन के महामन्त्री दशरथ कुमार ने कहा कि कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि कोटा संभाग के चारों जिलों कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ में खरीफ़ कृषि क्षेत्र में करीब 11.75 लाख हेक्टेयर में बुवाई की गई थी। हालांकि खेती-किसानी से जुड़े काश्तकारों का कहना है कि फसल की बुवाई का यह आंकड़ा 12.50 लाख हैक्टेयर के आसपास है।
सबसे दुखद यह है कि मोटे तौर पर विभाग दो लाख हैक्टैयर के आसपास कृषि क्षेत्र में अतिवृष्टि से नुकसान होना मानकर चल रहा

है जो कुल राशि का 24 प्रतिशत के आसपास की है और यदि इस गलत आंकड़े को माना गया तो फसल खराब से पीड़ित किसान मुआवजे से वंचित रह जाएंगे क्योंकि 30 प्रतिशत से अधिक खराबा एक पर ही मुआवजा देने का प्रावधान है। श्री दशरथ कुमार ने आरोप लगाया कि बीमा कंपनियों से व्यक्तिगत स्तर पर बीमा करवा कर प्रीमियम भरने वाले किसानों को भी येन-केन-प्रकारेण मुआवजे से वंचित करने की कोशिश की जा रही है जो गलत है और किसान इसे नहीं सहन नहीं करेगा। श्री दशरथ कुमार ने माना कि किसान अपने ही हितों के मामले में भी जागरूकता के अभाव में राजनीतिक कारणों से बिखरे हुये है जिसके चलते वह अपने हक के लिए संघर्ष नहीं कर पा रहे है। यही नहीं राजनीतिक दल और उसके नेता खेती-किसानी के बारे में अधिक समझ के अभाव में प्राकृतिक आपदा की इस स्थिति में भी मौन साधे हुए हैं। श्री दशरथ कुमार ने कहा कि कई स्थानों पर सोयाबीन और दलहनी फसलें कटी हुई है और धान को काटने की तैयारी है। ऐसी स्थिति में अभी भी बरसात जारी रहने के कारण नुकसान और बढ़ेगा इसलिए राज्य सरकार को स्थानीय प्रशासन को निर्देशित करना चाहिए कि वह तत्काल व्यापक पैमाने पर सर्वे कराएं और सर्वे के सही नतीजे हासिल करके नुकसान का आकलन करें और उसी के अनुरूप किसानों को मुआवजा दिलवाने का प्रबंध करें।