जल प्लावन: वर्षा जल संचयन की सुदृढ़ प्रणाली हो तो डायवर्जन चैनल की जरूरत नहीं रहेगी

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फोटो साभार अखिलेश कुमार

-कोटा के दक्षिण पठार को बनाएं अनुपम उदाहरण

-बृजेश विजयवर्गीय

brajesh vijayvargiya
बृजेश विजयवर्गीय

कोटा में जहां से वर्षा जल प्रवेश करता है दक्षिणी पठार क्षेत्र में दौलतगंज, लखावा,आंवली, रोजड़ी, जौहर बाई का तालाब आदि एवं हाईवे के बाद वाले इलाकों में यदि मौजूदा तालाबों की पुनर्बहाली हो जाए तो शहर में जल प्लावन के हालात से भी बचा जा सकता है और वर्षा जल का संचयन भी हो सकता है। नांता में जौहर बाई और मेढकीपाल तालाबों में कुछ साल पूर्व तक थर्मल की राख भरी जा रही थी अब उनको पुनर्बहाल कर वर्षा जल संचयन के काम में लिया जा सकता है। इंटेक जैसी संस्थाओं ने जौहर बाई तालाब को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है लेकिन प्रशासन उदासीन बना हुआ है।अभेड़ा में तरुण भारत संघ व डीसीएम ने साल्किया तालाब को बहाल कर दिया ‌तो सरकार क्यों नहीं करती।
रियासत काल में शहर के आसपास एक दर्जन तालाबों की अभूतपूर्व श्रृंखला थी जो अब अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई या उनमें गाद भर गया या लोगों ने पेटा काशत कर तालाबों को समाप्त कर दिया।
यह कोई मिसाइल टेक्नोलॉजी जैसी बात नहीं है, सामान्य सी बात है कि वर्षा की एक-एक बूंद को धरती के पेट में कैसे उतारा जाए। वर्षा जल को संग्रहित करने कि केंद्र और राज्य सरकार की नीति भी है और हमारा संवैधानिक कर्तव्य भी ‌जब इन सब की उपेक्षा होती है तो वर्षा जल तांडव करता हुआ महानगर और गांव में भारी तबाही मचाता है और हम उसे बाढ़ का नाम देकर या प्राकृतिक प्रकोपों का नाम देकर जिम्मेदारियां से पल्ला झाड़ते है। हमें तात्कालिक नहीं स्थाई समाधान की आवश्यकता है इसमें दोहरा फायदा है शहर जल प्लावन की विभिषिका से बच सकता है एवं वर्षा जल का संग्रहण होने से क्षेत्र की जैव विविधता को बढ़ावा मिल सकता है ‌और और ग्रामीण समाज के मवेशियों को पीने का पानी वर्ष भर उपलब्ध रह सकता है। इससे भूगर्भ जल में भी वृद्धि होगी जिसका लाभ आवली रोजड़ी आवलीरोजड़ी दौलतगंज एवं शहर के संकटापन्न भूगर्भ जल हिस्सों को मिलेगा आज भी हालत यह है कि इन इलाकों में ट्यूबवेल मार्च अप्रैल के बाद ही फेल हो जाते हैं। हमने देखा है कि राजीव गांधी नगर, न्यू राजीव गांधी नगर , तलवंडी एवं विनोबा भावे नगर तक में टैंकरों से पानी की आपूर्ति करनी पड़ती है।
वर्षा के मौसम में अक्सर यह सुना जाता है कि बाढ़ आ गई, जबकि वह बाढ़ नहीं जल प्लावन होता है बाढ़ तो नदियों के माध्यम से आती है।
सामान्य सी वर्षा में ही शहरों के अंदर पानी नाली नालों में नहीं सड़कों पर बह निकलता है उसे बाढ़ बताना उचित नहीं है।
1986 की जलप्लावन की सबसे बुरी स्थिति के बाद कोटा को इससे बचने की कवायद शुरू हुई और सरकार ने आनन-फानन में 2001 में दक्षिणी पठार पर दौलतगंज के पास डायवर्सन चैनल की घोषणा की। जो कि संपूर्ण समाधान नहीं था तात्कालिक समाधान के चक्कर में हम वर्षा जल को चंबल में इस समय व्यर्थ बह रहा हैं जब चंबल को पानी की आवश्यकता नहीं होती और बैराज के गेट खोलकर पानी को आगे के लिए बहाना पड़ता है।
कोटा शहर में जल प्लावन का मुख्य कारण यह भी है कि दक्षिणी पठार से बढ़कर आने वाले नालों पर अतिक्रमण हो गए यहां तक कि नगर विकास न्यास ने भी अपनी स्कीमें में बना ली और लागू कर दी विज्ञान नगर इलाके में तो रीको ने नालों में ही प्लाट काट दिए। आजकल नालों को गहरा करने के बजाय उनको सीमेंट कंक्रीट करके पाटा जा रहा है तो पानी की गति तो तीव्र होनी ही है। जब पानी को जमीन में जाने का रास्ता नहीं मिलता तो वह सीमेंट कंक्रीट के कारण तेज गति से बहता है। यही समस्या शहरों में सीसी सड़कों की वजह से भी हो रही है। सड़कों की साइडों को कच्चा नहीं छोड़ा जा रहा सीमेंट कंक्रीट से टेपिंग करने से वर्षा जल भूगर्भ में जाने के सारे रास्ते योजनाबद्ध तरीके से बंद कर दिए गए हैं। प्रशासन यदि स्थाई समाधान चाहता है तालाबों को पुनर्जीवित करने की योजना पर काम करना होगा। नाली -नालों को वर्षा जल बहाव के लिए स्वतंत्र छोड़ना होगा।
-बृजेश विजयवर्गीय, स्वतंत्र पत्रकार एवं सदस्य बाढ़ सुखाड़ विश्व जन आयोग

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