घटाएँ झूम कर सावन में जब बरसात लाती है पुलक उठती है धरती भी सभी को ख़ूब भाती है

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फोटो साभार अखिलेश कुमार

-डॉ. रामावतार सागर

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-डॉ. रामावतार सागर

मेरे मन की बारिशों के रंग फीके देखकर
लोग कट जाते हैं आखिर संग तीखे देखकर

बारिशों में भीग जाता है शजर
ये चहकती पत्तियाँ खामोश है

कितने ही सपने मुरझाए, बेबारिश के मौसम ने
बारिश तब ही अच्छी लगती,जब बारिश का हो मौसम

लेकर चला था साथ मेरे कितनी बारिशें,
सावन के साथ आ गये दिन भी फुहार के।

भीग कर बारिश में हमने बादलों से बात की
ये जमीं प्यासी है पानी तू बरसता है कहाँ

सुना है रोज़ होती है वहाँ बारिश दुआओं की
के जिस घर से बुजुर्गो की सदाएं हँस के आती है

घटाएँ झूम कर सावन में जब बरसात लाती है
पुलक उठती है धरती भी सभी को ख़ूब भाती है

भीगना बारिश में सागर आज तक भी याद है
वो नमी महसूस होती है दिले नादान को

डॉ. रामावतार सागर
कोटा, राजस्थान

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