संदेह के घेरे में है जिला प्रशासन -हॉस्टल संचालकों की भूमिका

हॉस्टल संचालकों की भूमिका संदेह के घेरे में है क्योंकि कोटा के कई हॉस्टलों में ट्यूबवेल खुदवा कर उनका पानी की शुद्धता की जांच किए बगैर सीधे कोचिंग छात्रों को उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस सारे घालमेल से नजरे फ़ेरने के कारण जिला प्रशासन की भूमिका पर भी सवालिया निशान उठ रहा है

-कृष्ण बलदेव हाडा-

कृष्ण बलदेव हाडा

कोटा। राजस्थान के कोटा में दूषित पानी के सेवन से हेपेटाइटिस-ए से पीड़ित होकर एक छात्र की मौत और कई के बीमार पड़ने के बाद यहां संचालित हॉस्टल संचालकों की भूमिका संदेह के घेरे में है क्योंकि कोटा के कई हॉस्टलों में ट्यूबवेल खुदवा कर उनका पानी की शुद्धता की जांच किए बगैर सीधे कोचिंग छात्रों को उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस सारे घालमेल से नजरे फ़ेरने के कारण जिला प्रशासन की भूमिका पर भी सवालिया निशान उठ रहा है।

किसी हॉस्टल संचालक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की

कोटा में बीते सप्ताह दूषित पानी के सेवन से एक कोचिंग छात्र की मौत और तकरीबन 80 छात्रों के वायरस जनित रोग हेपेटाइटिस-ए से पीड़ित पाए जाने के बाद मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी की टीमों ने कोटा के कोचिंग एरिया में संचालित लगभग एक सौ हॉस्टलों में आपूर्ति किए जाने वाले पानी के नमूने भी लिए और तीन ट्यूबवेल को बंद भी करवाया लेकिन सरकारी स्तर पर बिना शुद्धता की जांच के कई हॉस्टलों में रह रहे कोचिंग छात्रों को ट्यूबवेल का पानी उपलब्ध करवाने के लिए अभी तक किसी हॉस्टल संचालक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है जबकि यह तथ्य सामने आया है कि कोटा में बीते दिनों जितने भी कोचिंग छात्र हेपेटाइटिस-ए से पीड़ित होने के बाद निजी अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंचे थे,वह करीब-करीब सभी हॉस्टल में रहते हैं। कोचिंग एरिया के मकानों में किराए पर या पेईंग गेस्ट की हैसियत से रहने वाले छात्रों में हेपेटाइटिस-ए का संक्रमण ना के बराबर रहा। इससे यह स्पष्ट हो रहा है कि कहीं न कहीं हॉस्टल में पिलाए जा रहे पानी में गड़बड़ है क्योंकि यह वैज्ञानिक तथ्य है कि दूषित पानी या भोजन के सेवन से ही हेपेटाइटिस-ए रोग फैलने की आशंका रहती है।

बीमारियों का अंदेशा

जिला प्रशासन ने भी कोचिंग छात्रों के लिए एडवाइजरी जारी की हुई है कि जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग यानि जलदाय विभाग की ओर से आपूर्ति किए जा रहे पेयजल के अलावा यदि कहीं किसी अन्य स्त्रोत से पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है तो उस पानी को बिना वैज्ञानिक तरीके से शुद्ध किये यानी क्लोरोनाईज्ड़ किए बगैर अथवा वाटर फिल्टर या आरो से शुद्धिकरण बिना सेवन नहीं करें वरना बीमारियों का अंदेशा रहता है।

ट्यूबवेल से ही कोचिंग छात्रों के लिए पानी उपलब्ध

अब तक की प्रारंभिक जांच में भी यह सामने आ गया है कि कोटा के कोचिंग एरिया तलवंडी, महावीर नगर, इंद्रप्रस्थ औद्योगिक क्षेत्र आदि में स्थित 10 मंजिला तक के निजी स्तर पर संचालित हॉस्टलों में अपने स्तर पर खुदवाये गए ट्यूबवेल से ही कोचिंग छात्रों के लिए पानी उपलब्ध करवाया जा रहा है और इनमें से ज्यादातर हॉस्टलों में ट्यूबवेल से पानी की आपूर्ति से पहले सरकार के निर्धारित मापदंडों के अनुरूप उस पानी की शुद्धता की प्रमाणित जांच भी नहीं करवाई गई है। कोचिंग एरिया क्षेत्र महावीर नगर तृतीय से लेकर केशवपुरा,तलवंडी, वसंत विहार,दादाबाड़ी तक बड़े-बड़े गंदे पानी के नाले हैं जो आगे जाकर बिना किसी ट्रीटमेंट के चंबल नदी में गिर जाते हैं। गंदे पानी के इन्ही बड़े-बड़े नालों के आसपास बने हॉस्टलों के संचालकों ने यहां जलापूर्ति के लिए पातालतोड़ गहरे ट्यूबवेल खुदवा डाले है जिसके जीवाणुओं से संक्रमण का खतरा तो सदा बना ही रहता है। इनमें से कई ट्यूबवेल को खुदवाने और उसके पानी की पेयजल की दृष्टि से आपूर्ति करने के लिए वैधानिक तरीके से सरकारी स्तर पर अनुमति लेना तक जरूरी नहीं समझा गया है।

निजी स्तर पर ट्यूूबवेल खुदवा रखे

कोटा और आसपास के इलाकों में भी कई लोगों ने व्यवसायिक उद्धेश्य से निजी स्तर पर ट्यूूबवेल खुदवा रखे हैं जो पानी बेचने का धंधा करते हैं। यह सप्लायर ट्यूबैवेल से पानी निकाल कर टैंकरों से उसकी आपूर्ति करते हैं जिसकी नए कोटा में सबसे बड़ी मंडी महावीर नगर तृतीय में घटोत्कच चौराहे के पास है जहां दो तरह के पानी एक-पीने का आैर दूसरा- निर्माण कार्यो में इस्तेमाल लायक होने की आपूर्ति का दावा किया जाता है। अब इस तथ्य की वैज्ञानिक जांच की कोई व्यवस्था नहीं है कि पीने के पानी के नाम पर सप्लाई किया जाने वाला पानी वास्तव में पीने योग्य है अथवा नहीं?
क ई घालमेल के बावजूद हॉस्टल संचालकों के खिलाफ कार्रवाई पर प्रशासन मौन है क्योंकि खुद नामी कोचिंगों संस्थानों के मालिकों से कोटा व्यापार महासंघ के पदाधिकारी,उद्योगपति, पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी, राजनेता सभी हॉस्टल चला रहे हैं। यहां तक कि आर्थिक सामर्थ्य नहीं होते हुए भी कुछ जनसामान्य तक ने बैंकों से लोन लेकर हॉस्टल खड़े कर दिए हैं। यानी हाडोती में प्रचलित कहावत के अनुसार -“अदने से लेकर बिड़ले” तक इस कारोबार में शामिल है तो ऎसे में बर्रे के छत्ते में कौन हाथ डाले?

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