धारा के विपरीत

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-डॉ. रमेश चंद मीणा

ramesh chand meena
डॉ. रमेश चंद मीणा

1.

धारा विपरीत बहे, मन की सुनें पुकार।
सत्य पथ पर जो चले, जग में वही सुमार।।

2.

संकट चाहे आए लाख, साहस कभी न हार।
मन में दृढ़ता हो प्रबल, हर ले विपदा भार।।

3.

पथ कंटक से भरा रहे, दीप जले विश्वास।
धारा चाहे रोके राह, न डिगे संकल्प खास।।

4.

कठिनाई में डटे रहें, दृढ़ता को अपनाय।
धारा चाहे तीव्र बहे, मन न डगमगाय।।

5.

जो मन की सुने सदा, हो न कायर कहिं।
धारा चाहे विपरीत बहे, साहसी नर वही।।

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