यूॅं तो तूफ़ान भी उठते हैं मगर। कश्ती ए दिल है सलामत अपनी।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

वो ही होगा जो है क़िस्मत अपनी।
तुम रखो पास नसीहत अपनी।।
*
उससे बेकार उलझते क्यूॅं हो।
उसने छोड़ी है शराफ़त अपनी।।
*
यूॅं तो तूफ़ान भी उठते हैं मगर।
कश्ती ए दिल है सलामत अपनी।।
*
कितना मुश्किल है सराबों का सफ़र।
खो न बैठूॅं में हक़ीक़त अपनी।।
*
उनका दिल है वो जहाॅं भी आए।
हम भी रखते हैं तबीयत अपनी।।
*
हम तो बस हाथ उठाने में रहे।
हमने समझी कहाॅ़ क़ीमत अपनी।।
*
है सलूक अब तो ग़ुलामों की तरहl
इसको कहते हैं हुकूमत अपनी।।
*
ख़ून रोऍंगी ये ऑंखें “अनवर”।
रंग लायेगी मुहब्बत अपनी।।

शकूर अनवर

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments