
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
वो ही होगा जो है क़िस्मत अपनी।
तुम रखो पास नसीहत अपनी।।
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उससे बेकार उलझते क्यूॅं हो।
उसने छोड़ी है शराफ़त अपनी।।
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यूॅं तो तूफ़ान भी उठते हैं मगर।
कश्ती ए दिल है सलामत अपनी।।
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कितना मुश्किल है सराबों का सफ़र।
खो न बैठूॅं में हक़ीक़त अपनी।।
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उनका दिल है वो जहाॅं भी आए।
हम भी रखते हैं तबीयत अपनी।।
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हम तो बस हाथ उठाने में रहे।
हमने समझी कहाॅ़ क़ीमत अपनी।।
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है सलूक अब तो ग़ुलामों की तरहl
इसको कहते हैं हुकूमत अपनी।।
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ख़ून रोऍंगी ये ऑंखें “अनवर”।
रंग लायेगी मुहब्बत अपनी।।
शकूर अनवर
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