
ग़ज़ल
डॉ. रामावतार सागर

खुद दूर का रस्ता चुना मैंने
दिल को है किया अनसुना मैंने
ज़िंदगी का सफर आसान न था
पूरा किया तेरे बिना मैंने
ज़मीर का क्या मार डाला गया
फिर उसके बाद किया गुनाह मैंने
सितारों ने जुदा कर दिया हमें
कुछ भी तो ना कहा सुना मैंने
अपनी रुसवाइयों सबब मैं था
जाल मेरे हाथों बुना मैंने
काटनी थी ज़ीस्त सो काट ली
कुछ रो कर, कुछ गुनगुना मैंने
तुम्हारी याद ले आई सागर
कभी देखा ना था गुना मैंने
डॉ. रामावतार सागर
कोटा, राजस्थान
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