
-रामावतार सागर-

हम मंजिल के किनारे थे बहुत
तेरी यादों के सहारे थे बहुत
वक्त भी काटा और जीस्त भी
कहने को यूं हमारे थे बहुत
एक जंगल उग आया भीतर
हमने बगीचे संवारे थे बहुत
दूरबीन से भी अब नहीं दिखते
कुछ लोग हमको प्यारे थे बहुत
आजा के अब देर मत कर
कहते हुए कितने पुकारे थे बहुत
दोस्त कहने से दोस्त नहीं होता
दोस्ती में जलते शरारे थे बहुत
सागर तेरे बगैर अब दिल नहीं लगता
ये कहने वाले कितने सारे थे बहुत
रामावतार सागर
कोटा, राजस्थान
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