कोई तो शाम मेरे नाम की ऐसी होगी। जब परिंदों की तरह लौट के घर जाऊॅंगा।।

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फोटो अखिलेश कुमार

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

shakoor anwar
शकूर अनवर

जब तेरी चश्मे-इनायत* से उतर जाऊॅंगा।
अपने अश्कों* में कहीं डूब के मर जाऊॅंगा।।
*
एक मुद्दत से ज़ुबाँ बन्द किये बैठा हूँ।
अब भी कुछ कह न सकूॅंगा तो बिखर जाऊॅंगा।।
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जिसकी ताबीर* से दिन मेरे बदल जायेंगे।
ये भी मुमकिन है मैं उस ख़्वाब से डर जाऊॅंगा।।
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तू वो क़ानून है जिसकी कोई फ़रियाद नहीं।
मैं वो इल्ज़ाम हूँ जो अपने ही सर जाऊॅंगा।।
*
होश खो दूॅं तो ये मॅंझधार डुबो देगी मुझे।
अज़्म* रक्खूॅंगा तो उस पार उतर जाऊॅंगा।।
*
कोई तो शाम मेरे नाम की ऐसी होगी।
जब परिंदों की तरह लौट के घर जाऊॅंगा।।
*
ज़िंदगी भर मुझे महसूस करोगे “अनवर”।
मैं कोई हल्का नशा हूँ कि उतर जाऊॅंगा।।
*
शब्दार्थ:-
चश्मे इनायत*कृपा दृष्टि
अश्कों*ऑंसुओं
ताबीर*स्वप्न फल,नतीजा
अज़्म*हौसला
*
शकूर अनवर
9460851271

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