जिंदगी होगी यहाॅं जिसकी अमल* से रोशन। आसमाॅं पर वही चमकेगा सितारा बनकर।।

shakoor anwar 129
शकूर अनवर

ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
यूॅं दिया दर्द मुझे दर्द का चारा* बनकर।
दूर तूफ़ा से किया उसने किनारा बनकर।।
*
जिंदगी होगी यहाॅं जिसकी अमल* से रोशन।
आसमाॅं पर वही चमकेगा सितारा बनकर।।
*
फिर तो वाजिब* है किसी का भी सहारा तुमको।
पहले देखो तो किसी का भी सहारा बनकर।।
*
ऐसी उर्यानी* तबीयत पे गिराॅं गुज़रेगी।
ये तो ऑंखों में चुभेगी कोई ख़ारा* बनकर।।
*
जब किसी और के हम भी तो नहीं बन पाये।
ग़ैर का कैसे बनेगा वो हमारा बनकर।।
*
कोई पैग़ाम मुहब्बत का निहाॅं* है “अनवर”।
मेरी ग़ज़लों से अयाॅं है जो इशारा बनकर।।

चारा* इलाज
अमल* काम कर्तव्य परायणता
वाज़िब* सही मुनासिब
उर्यानी* नग्नता
गिराॅं यानी बोझ भारी
ख़ारा* सख़्त पत्थर
ग़ैर* अन्य दुश्मन
निहाॅं* छुपा हुआ
अयाॅं*ज़ाहिर प्रकट

शकूर अनवर
9460851271

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