
गजल
-डॉ.रामावतार सागर-

आँधियों से डर रहे हैं साथ दे तूफान का।
फैसला होगा कभी तो ऐसे भी इमकान का।।
आज तो वो कर रहे चिंतन शिविर होटल में है,
कल छपेगा एक फोटू बस्ती के दालान का।।
ये तरक्की या खुदाया सोच के डरता हूँ मैं,
नोंच लेता गोस्त भी इंसान ही इंसान का।।
वो बड़ी गाड़ी में आये बैठकर ये जांचने,
पंचनामा लिखना था लूटे हुए सामान का।।
डर रहे थे उम्रभर इस डर से सारे लोग ही,
है कहीं अस्तित्व तो भगवान का शैतान का।।
टोल नाका भी बना है लूट का अड्डा यहाँ,
भर रहे हैं जेब अपनी आड़ ले चालान का।।
जिस गली के मोड़ पर था आशियाँ सागर मेरा,
उस जगह कब्जा हुआ है सेठ की दूकान का।।
डॉ.रामावतार सागर
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