
ग़ज़ल
-शकूर अनवर

हमें दिल का ज़माना चहिए था।
ज़माने को ख़ज़ाना चाहिए था।।
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तुम्हारा दिल हो या आँखें तुम्हारी।
हमें तो बस ठिकाना चाहिए था।।
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बिल आख़िर* क़त्ल तो होना था मेरा।
शिकारी को निशाना चाहिए था।।
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अचानक कह दिया बस दिल से निकलो।।
निकलने में ज़माना चहिए था।
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हम अपनी भूख ओढ़े सो रहे थे।
शिकम* को आबो-दाना* चाहिए था।।
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ग़नीमत* है ये छप्पर आसमाॅं का।
कोई तो शामियाना चाहिए था।।
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नये उभरे हैं जो फ़िरओन* बनकर।।
इन्हें तो डूब जाना चाहिए था।
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न आया पूछने अहवाल* “अनवर”।
उसे तो बस बहाना चाहिए था।।
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बिल आख़िर*आख़िरकार
शिकम*पेट
आबो दाना*खाना पानी
ग़नीमत*पर्याप्त
फ़िरओन*मिस्र के ज़ालिम बादशाह का लक़ब
अहवाल*हाल चाल
शकूर अनवर
9460851271