
-डॉ. रमेश चन्द मीणा

डमरू में नाद, चरणों में लय,
भव-भय हरता, रसमय जय।
अग्नि-मंडल में; थिरकती काया,
हर अँगुली में; ब्रह्म की माया।
अग्नि-वलय में; गूँथा नृत्य-मंत्र,
सृजन-प्रलय का; ब्रह्म- तंत्र।
नट सजीव; अनंत- अपार,
नृत्य में; सृष्टि का आधार।
ध्वनि, ताल, नाद, लय का संगम,
डमरू की थाप, सृजन का क्रम।
रुद्र चैतन्य का नृत्य, शिवम्।
त्रिलोचन लय-नाद, सुंदरम्।
अशिव दहक; मंडल लहराए,
शिव-नृत्य से; ब्रह्म फूट आए,
उठा पाँव; जगती को जगाए,
दूसरे से तमस को; निर्मम दबाए।
एक ही मुद्रा; जन्म और मरण,
तांडव में छिपा; शाश्वत चरण।
तांडव उसका; शाश्वत विधान,
नृत्यरत शिव; नट है पहचान।
डमरू की टंकार से; स्फुट वागर्थ,
प्रलय में भी चलता; सृजन का रथ।
नट-महेश, मृत्युंजय– आदिनाथ,
नयन अचल, ग्रीवा लहरें नागनाथ।
नटराज– शिव का; नादमय रूप,
सृष्टि, संहार और लय का स्वरूप।
एक कर में अग्नि; प्रलय रौद्र रूप,
दूसरे में अभय, करुण रस अनूप।
रचता तांडव में; अटल संतुलन,
ताल-नाद-लय; मौन का मिलन।
गढ़ता है नृत्य; नवधा नित आचरण,
नाट्यशास्त्र का; अनुपम व्याकरण।।
डॉ. रमेश चन्द मीणा
सहायक आचार्य- चित्रकला
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा
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मो. न.- 9816083135