
लघुकथा संग्रह: “उसे नहीं मालूम”
-डॉ अनिता वर्मा-

(सहआचार्य हिन्दी, राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
संवेदना का स्पंदन मानव मन को गति प्रदान करता है। संवेदनशील रचनाकार को सामाजिक ताने बाने के मध्यनजर जब अव्यवस्था, विसंगतियाँ, विवशता, बेबसी दिखाई देती हैं, तब ये सब उसके मन में बैचेनी और छटपटाहट पैदा करती हैं। इन सबके मूल में परिवेश का अत्यधिक महत्त्व होता है। संवेदनशील रचनाकार जब अपने आसपास कुछ ऐसा घटित होते हुए देखता है जो मनुष्य और मनुष्यता के विरोध में हो तब उसके भीतर का संवेदनशील रचनाकार कराह उठता है। उसकी धारदार लेखनी इन सब घटनाओं के चित्र, शब्दबद्ध करने को आतुर हो जाती है। ऐसे ही संवेदनशील साहित्यकार जनकवि गीतकार महेन्द्र नेह हैं। अपने लेखन और संवाद की विशिष्ट शैली व अभिव्यक्ति के कारण वे साहित्य जगत में अपनी अलग पहचान रखते हैं। इनका यह वैशिष्ट्य, सृजन में भाषा और भाव के स्तर पर अलग पहचान रखता है। ‘उसे नहीं मालूम’ लघुकथा संग्रह में भावों का यही आलोड़न महसूस होता है। आप किसान और मजदूरों के बीच चिरपरिचित और लोकप्रिय नाम हैं। उनके दुःख दर्द चिंताएँ पीड़ाएँ सब आपके चिंतन और लेखन में अभिव्यक्त हुए हैं। प्रस्तुत लघुकथा संग्रह ‘उसे नहीं मालूम’ इस दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है।
कथाओं के केंद्र में मजदूर हैं, कारखाने हैं, कारखानों में रचे जाने वाले षड्यंत्र हैं, बेबस ईमानदार समर्पित श्रमसेवक है। समयानुसार और स्वयं को परिस्थितियों के अनुसार ढाल नहीं पाने का दुष्परिणाम मजदूरों को भुगतना पड़ता है। यही सब कुछ इन लघुकथाओं में महेंद्र नेह ने बड़ी सूक्ष्मता और गहराई के साथ उद्घाटित किया है। इस दृष्टि से ये लघुकथाएँ नवीन तेवर, नवीन विषय के साथ हमारे समक्ष उपस्थित होती हैं। पाठक जैसे ही इन लघुकथाओं से गुजरता है वह उस परिस्थिति और काल खंड से अवश्य जुड़ जाता है जिसे आधार बनाकर ये कथाएँ रची गई हैं। लघुकथाओं के ये पात्र और घटनाएँ आँखों के समक्ष जीवंत हो उठते है । पाठक उस भाव भूमि पर पहुँच जाता है जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये लघुकथाएँ लिखी गई हैं। ‘उसे नहीं मालूम’ महेंद्र नेह का लघुकथा संग्रह है, जिसकी अधिकांश लघुकथाएँ कारखाना मजदूर और उनसे जुडी समस्याओं पर केन्द्रित हैं। जनकवि नेह ने बड़ी बारीकी से महसूसते हुए इन्हें शब्दबद्ध किया है। इस क्रम में धागे, तारीखें, ईनाम, जीने का अधिकार, नई अर्थनीति, अनुशासन, प्रस्ताव, स्मरण शक्ति आदि समस्त लघुकथाएँ मजदूर वर्ग के शोषण व कारखाना प्रबंधन की पोल खोलती दिखाई देती हैं। जहाँ श्रमिकों के त्याग समर्पण का कोई मूल्य नहीं है। मजदूर सदा से मैनेजमेंट की चालाकियों का शिकार होता आया है उसकी मेहनत वफ़ादारी समर्पण का ईनाम उसे तालाबंदी, नोकरी से तुरंत बाहर निकाल दिए जाने आदि के रूप में मिलता है। आर्थिक सहारा छिन जाने से उसके हौंसले भी पस्त हो जाते हैं। इसका फायदा मिल मालिक उठाते हैं।
‘नूर’ लघुकथा एक ईमानदार व्यक्ति के साथ मिल मैनेजमेंट के द्वारा किये गये विश्वासघात की कहानी है, जहाँ नूर की ईमानदारी और सेवाभाव का ईनाम उसे नौकरी से निकाल दिये जाने के रूप में मिलता है क्योंकि नूर की ईमानदारी कारखाना प्रबंधन के लाभ में काँटा बनकर खटक रही थी। ‘धागे’ उन समस्त कारखाना मजदूरों का प्रतिनिधित्व करती लघुकथा है जिन्हें बिना किसी कसूर के अचानक छँटनी के नाम से कारखाने से निकाल दिया जाता है। यहीं से संघर्ष कथा प्रारंभ होती हैं। हेला -भेला नामक पात्रों की यही व्यथा कथा है । वे दोनों कारखाने में ईमानदारी से काम करते हैं, उनकी गृहस्थी मजे से चल रही थी, अचानक बिना कुछ बताये छँटनी के नाम पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाता है। मानों दोनों पर वज्रपात सा होता है, अचानक बीच में नौकरी से निकाल दिये जाने पर पूरे परिवार के सपने टूट जाते हैं। पहाड़ सी समस्याएँ मुँह खोले दोनों के सामने आ खड़ी होती हैं। अचानक जीवन के मध्य उनके हिस्से आई बेरोजगारी उन्हें विक्षिप्त बना देती है। यह लघुकथा मर्मस्पर्शी है, सोचने को विवश करती है। इसे पढ़ कर छँटनी किये मजदूरों के दर्द के अनेक बिम्ब आँखों के समक्ष तैरने लगते हैं। ‘तारीखें’ कथा न्याय व्यवस्था की लेटलतीफी पर करारा व्यंग्य करती है। मिल मजदूर देवेश ,तपन, इब्राहीम 40 वर्षो तक तारीख पर जाते हैं। नतीजा देवेश की हृदयाघात से, इब्राहीम की मस्तिष्क आघात से मृत्यु हो जाती है। बचता है तपन जो अंत तक न्याय की उम्मीद में संघर्ष करता है। न्याय व्यवस्था और मैनेजमेंट के खिलाफ बोलने पर उसकी तारीख और बढ़ा दी जाती है।
‘नई अर्थनीति’ में कारखाना बंदी, मजदूरों की बेरोजगारी, वेतन ,बोनस ,यूनियन का सामना, कारखाने की तालाबंदी आदि का कटु यथार्थ व्यक्त हुआ है। ‘प्रस्ताव’ लघुकथा में कारखाने की संचित पूँजी निकालने से डायरेक्टर प्रबंधन की सांठ- गांठ और घाटे की ओर बढ़ते कारखाने का यथार्थ और मजदूरों पर इसका पड़ता प्रभाव सभी कुछ व्यक्त है कि कैसे मजदूरों का दोहन व शोषण होता है। जो वास्तविक हक़दार हैं उन्हें षड्यंत्र पूर्वक कैसे हक़ से वंचित किया जाता है ,उजागर हुआ है। ‘ईनाम’ लघुकथा में मजदूर बंता कारखाने में चोरी किये गये एच टी के मोटे केबिल का तांबा निकाल कर बेचने वाले चोर को पकड़ता है। महाप्रबंधक चोर पकड़ने वाले बंता को सजा सुनाता है क्योंकि वह स्वयं चोरी में शामिल था, देखिये -” तुमने ड्यूटी पर न रहते हुए जिस तरह कारखाने के प्रबंधन में दखलंदाजी की है, वह अनुशासन हीनता और अपराध है अतः तुम्हें नौकरी से अलग किया जाता है।” (पृष्ठ 58)
‘ स्मरणशक्ति’ लघुकथा में महाप्रबंधक सोमदेव पाठक जिसके कार्यकाल में गोलीकांड हुए, मजदूरों की छँटनी की गई, श्रमिक बेघर हुए, तालाबंदी की गई, निर्माणाधीन चिमनी ढहने से मजदूर की मृत्यु हुई, सोमदेव जो विलक्षण प्रतिभा का धनी किन्तु कुटिल था, जीवन के अंतिम समय में भूलने की बीमारी से ग्रसित होता है। ‘चेहरों की चमक’ लघुकथा बंधुआ मजदूरों की व्यथा कहती है। नेता रामभरोस बंधुआ मजदूरों का नेतृत्व कर उनका विश्वास जीतता है ।चालाकी से अंगूठा लगवाकर उनकी जमीन हड़प जाता है। मंत्री पद प्राप्त करता है। बंधुआ मजदूर ठगे जाते है और फिर बंधुवा बन जाते है। यह विश्वास घात को दर्शाती मार्मिक कथा है। संग्रह की उल्लेखनीय लघुकथा ‘पांचवीं औरत’ नामक लघुकथा है, जिसमें स्त्री शोषण के विभिन्न तरीकों को उद्घाटित किया गया है, जहाँ कभी परिवार की इज्जत और कहीं मजबूरी की भेंट स्त्री को चढ़ा दिया जाता है। उसका कोई सहयोग नहीं करता। उस लघुकथा में पहली स्त्री को जलाया जाता है, दूसरी विवश होकर जलती है, तीसरी शराबी पति के जुल्मों से तंग होकर पीहर आती है, पिता सामाजिक दबाव और इज्जत के डर से उसे उसी नरक में जीने के लिए ससुराल भेज देता है, जहाँ उसे जला दिया जाता है। चौथी दहेज़ की बलिवेदी पर अग्नि की भेंट चढ़ा दी जाती है। चारों प्रतिरोध नहीं कर पातीं। पांचवी को सती बनाने की आड़ में जलाने का प्रयास किया जाता है वह विरोध करती है, परिस्थिति का सामना करती है और जलने से बच जाती है। यह स्त्री के शोषण, प्रतिरोध और हिम्मत को रेखांकित करती लघुकथा है।
‘ नई पहचान’ और ‘शरणार्थी’ लघुकथाएँ भारत पाक विभाजन की त्रासदी की तस्वीर प्रस्तुत करती हैं, जहाँ नफरत और भेद भाव की आग में मनुष्यता तार तार होती दिखाई देती है। ‘तू तू’ प्रभावी शीर्षक के साथ गहरे भाव की लघुकथा कही जा सकती है। यह एक भावनात्मकता से जुडी असफल प्रेम कथा की दर्द भरी प्रेम कथा है। तू तू एक सुन्दर स्त्री पात्र है। गरीब बेसहारा है। लोगों की कुदृष्टि से बचने के लिए वह गंदगी और चिथड़ों में देह छिपाती है। जो गंदे लिबास में अपने चिथड़ों के बीच स्वयं को सुरक्षित पाती है, देखिये –“रात के वक्त वह नदी किनारे बने घाटों पर अँधेरे में उतर जाती, दिन भर इकट्ठे किये कागजों के ढेर को अपनी झोली से बाहर निकालती। अपने सभी कपड़े उतार देती और चिथड़ों व कागज की ढेरी में आग लगा देती। आग की ऊँची ऊँची लपटें उठतीं, जिनके बीच वह अपनी पूरी देह को तपाती। आग मद्धम पड़ने पर अपने कपड़े लपेट लेती…….तू तू अपनी जीवनचर्या से मोहल्ले और उसके आसपास एक रहस्य बन गई थी और कौतूहल भी। पृष्ठ (76-77) ऐसी अनेक तू तू विक्षिप्त अवस्था में घूमती मिल जायेंगी। यह भी जीवन संघर्ष का एक पक्ष है जिसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। ऐसी स्त्रियों को विश्वास और अथाह प्रेम के नाम पर धोखा मिलता है। बदनाम और समाज से बहिष्कृत होकर ऐसी अनेक तू तू गुमनामी का जीवन जीने को विवश होती हैं, जिन्हें कोई नहीं अपनाता न परिवार, न समाज। अपने भीतर के दर्द और जीवन के अनेक अनसुलझे प्रश्नों को छिपाये वे भटकती रहती हैं।
‘उसे मालूम नहीं’ संग्रह की शीर्ष लघुकथा है जो जाति, धर्म, भेदभाव के नाम पर सियासत करने वालों का पर्दाफाश करती है। ‘नई दुनिया’ लघुकथा में समभाव के साथ भेदभाव व बंदिश रहित समाज की कल्पना की गई है जहाँ सब मनुष्य आनंद के साथ जीवन व्यतीत करेंगे, सब खुशहाल होंगे कोई दुखी नहीं रहेगा, देखिये—” कोई अमीर दिखता था न गरीब। मर्दों और औरतों के अधिकारों में या हैसियत में कोई फर्क नहीं था। धर्म ,भेदभाव, छूत- अछूत नाम की चीज़ नहीं थी।”(पृष्ठ-86)। यहाँ एक सुन्दर ,अद्भुत समानता के भाव को लिए हुए समाज की कल्पना की गई है जिसमें विज्ञान और तकनीक का सदुपयोग करती नई दुनियां की कल्पना की है।जो मन को क्षणिक राहत प्रदान करती है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि संवेदना के स्तर पर संग्रह की समस्त लघुकथाएँ, नवीन दृष्टि, एक नवीन भावबोध, नवीन विषय और उन समस्याओं को लेकर हमारे समक्ष उपस्थित होती हैं जिनके केंद्र में आमजन हैं, उनकी पीड़ाएँ और दर्द हैं, जिनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता । मजदूरों की आवाज को ताकतवर दबा देते हैं उनका गहरा शोषण किया जाता है। उन्हें उनके हकों से वंचित किया जाता है, जिसके असली हक़दार ये मजदूर और किसान श्रमिक वर्ग ही हैं। संग्रह की अधिकांश कथाओं में कारखाना मजदूर, उनकी यूनियनें और हाशिये पर जीवन जी रहे वे लोग हैं, जो समाज से बहिष्कृत हैं, जिनका कोई अस्तित्व नहीं। कारखाने की आंतरिक व्यवस्थाएं, मैनेजमेंट की गलत नीतियाँ और षड्यंत्र सभी का कटु यथार्थ इन कथाओं में व्यक्त है। इस दृष्टि से ये लघुकथाएँ मानव जीवन के सामाजिक और आर्थिक पक्ष से जुड़ीं समस्याओं जैसे विवशता, वेबसी, जीवन संघर्ष को उभारती हैं। ये लघुकथाएं उन परिस्थितियों की गाथा हैं, जहाँ केवल दर्द ही मजदूरों के हिस्से में आता है। इन लघुकथाओं से गुजरने के बाद सुधि पाठक निश्चित रूप से श्रमिक वर्ग के जीवन संघर्ष, कारखानों की समस्याओं से उपजे दर्द, उससे जूझते मनुष्य के संघर्ष से साक्षात्कार करता है।
संग्रह में 46 लघुकथाएँ है प्रत्येक लघुकथा हमारे चिंतन को एक नया आयाम देती है, दिशा प्रदान करती है। ये लघुकथाएँ अतिमहत्वपूर्ण और उल्लेखनीय हैं क्योंकि इनके केंद्र में केवलमात्र आम जन हैं। जिनके छोटे छोटे स्वप्न है अपने जीवन संघर्ष के साथ वे खुशियाँ तलाशते हैं। जब ये खुशियों के पल उनसे अचानक छीन लिए जाते हैं तब यह संघर्ष आमजन के लिए गहरा हो जाता है। इसी पृष्ठ भूमि और परिवेश को लेकर जनकवि लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार महेंद्र नेह ने इन लघुकथाओं को बुना है ,रचा है। संग्रह की समस्त रचनाएँ सार्थक हैं और अपनी मूल संवेदना को पाठकों तक पहुँचाने में सफल होंगी। पाठकों के मध्य अपना महत्व पूर्ण स्थान बनाएंगी । इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।
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कृति -उसे नहीं मालूम (लघुकथा संग्रह)/कृतिकार- महेंद्र नेह/
प्रकाशक-बोधि प्रकाशन /मूल्य-70 रूपये / समीक्षक : डॉ अनिता वर्मा कोटा राजस्थान