
– विवेक कुमार मिश्र

पेड़ से आदमी बात करते करते
मन की कह गया कि…
पेड़ कहीं जाना मत , यहीं रहना
आदमी और पेड़ के बीच रिश्ता
आदिम है, पृथ्वी पर जब कुछ भी नहीं था
केवल आदमी और पेड़ ही थे
तभी से आदमी की बात पेड़ मानता आ रहा है
यह इतिहास से पहले की बात है
आदमी और पेड़ एक दूसरे से
इतिहास से पहले से परिचित हैं
और साथ साथ रहते आ रहे हैं
आदमी को किसी पर भरोसा हो या न हो
पर पेड़ पर भरोसा इतना था कि
हर बात आदमी पेड़ से करता रहता
इस तरह आदमी एक दिन
पेड़ से कहकर परदेश चला गया
आदमी इतना दूर चला गया कि
पेड़ न सुन सकता न देख सकता
फिर भी पेड़ ने आदमी की बात रखी
पेड़ कहीं नहीं गया
दूसरी शताब्दी में जब आदमी लौटा तो
आदमी को कोई नहीं मिला
ऐसा कोई नहीं मिला जिसे पहचान सके
पर पेड़ अपनी जगह पर बना रहा
पेड़ कहीं नहीं गया
प्रतीक्षा करता रहा आदमी का
जब आदमी लौट कर आया
तो पेड़ उसी गर्मजोशी से स्वागत करता
पेड़ कहीं नहीं जाता
यहीं बना रहता है
पेड़ के पास दर्ज हैं सारे पुरुखों की कथा
पेड़ ने बचा कर रखी है आदमी के लिए
हवा पानी फल फूल और सुकून से भरी छांव
पेड़ ने कभी भी आदमी से कुछ नहीं कहा
पेड़ बस अपना ही काम करता गया
यह कभी नहीं देखा कि
आदमी ने उसके लिए क्या किया ?
– विवेक कुमार मिश्र