
-डॉ. रमेश चन्द मीणा

यूं बरस; ना प्यासी धरा रहे,
घर-घर में प्रेम की नमी बहे।
तुझे देख देर तलक जगा रहे,
हर आंगन में वो बचपन हरा रहे।
यूं बरस, मन संताप बहे,
हर धड़कन में बस प्रेम रहे।
तुझ में खो; देर तक डूबा रहे,
हर सांस में वो वात्सल्य बहे।
यूं बरस; हर मन भीग जाए,
नयन-कोरों में सपने सज जाए।
छप्पर ओलाती पर बूँदें इठलायें,
दादुर की टर-टर मन बहलायें।
यूं बरस; छत टपकन बंद हो,
पीपल तले जो कशिश बसी हो।
फिर वो झूले, वो राग बजे हो,
गुज़रे पल जैसे आज सिले हो।
यूं बरस, सोंधी माटी में नेह पले,
जुगनू हर घर उजियारा तले।
जीवन का मैला कौना, मांज ले,
मन का सा, हमें मनमीत मिले।
यूं बरस; यौवन उमड़ आए,
कहि-अनकहि सुन,मन मुस्काए।
प्रिय गोदी में प्रणय हरसाएँ,
फुहारों में प्रेम इत्र घुल जाए।
यूं बरस, सावन के गीत जगे,
हर सूनी साँझ में प्रीत लगे।
पोखर में, मेघ उतरने लगे।
प्रणय गागर उपटने लगे।।
कलाकार,कवि एवं लेखक
डॉ. रमेश चन्द मीणा
सहायक आचार्य- चित्रकला
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा
rmesh8672@gmail.com
मो. न.- 9816083135

















