सघन अनुभूति की कविता

जब कभी घर की स्त्रियाँ कार्यवश कहीं चली जाती हैं। सूना हो जाता है घर और पास पड़ोस,सूने हो जाते हैं घर बार यदि छोड जाती हैं स्त्रियाँ। जब वे घर लौट आती हैं घर आंगन सभी भर जाते हैं स्त्रियों के घर में होने के अहसास से महक उठता है सम्पूर्ण वातावरण ।स्त्रियाँ केवल स्त्रियाँ ही नहीं होती वरन उनके भीतर समाए रहते हैं पीढियों के संस्कार,आदर्श,व विविध अहसास आदि

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प्रतीकात्मक फोटो

-डॉ अनिता वर्मा-

डॉ अनिता वर्मा

कवि केदार नाथ सिंह की कविता “स्त्रियाँ जब चली जाती हैं,
स्त्री विमर्श को नवीन दृष्टि प्रदान करती है। कवि यहाँ घर परिवार और समाज के लिये स्त्रियों के विशिष्ट स्थान को बताते हुए घर और स्त्री के सम्बंध को व्याख्यायित करता है।स्त्री की सम्पूर्ण दुनिया घर परिवार होताहै। घर की रौनक होती हैं ये अपनी उपस्थिति का अहसास कराती है सदैव स्त्री का जाना खाली कर देता है प्रत्येक कोना लोटते ही आसपास के वातावरण की रिक्तता को पूर्णता से भर देती है। घर आंगन भर उठता है उसके क्रियाकलापों से स्त्रियां धुरी होती हैं समाज और परिवार की जोड़ती है सभी को रिश्ते की डोरी को प्यार व स्नेह से प्रस्तुत कविता में कवि की सूक्ष्म दृष्टि पढ़ लेतीं हैं। घर का प्रत्येक कोना सुवासित रहता है। स्त्रियों की गंध से। रसोई में उठती विविध व्यंजनों की महक समस्त वातावरण को जीवंत बना देती है। कपड़ों ,बर्तनों, रसोईघर ,दीवार सभी जगह स्त्री जुड़ी रहती है समर्पण भाव के साथ उसकी समस्त दुनिया सिमट जाती है घर परिवार में। घर सबको घर जैसा लगता है। समस्त चिंताएँ,परेशानियाँ ओढ़ कर चिन्ता मुक्त कर देती है सबको।जिम्मेदारियां समझ घर केप्रत्येक कोने में अपनी उपस्थिति का अहसास कराती है। घर से बाहर निकलते समय वे अपने मन को छोड़ जाती है,घर में पूर्ण रूप से पहरेदार के समान। स्त्री के भीतर की घनीभूत सम्वेदनाएँ पर्त-पर्त स्पन्दित होती रहती अपने घर और परिवार के लिये,कभी घर से बाहर निकलते समय पूर्णरूपेण नहीं जाती——-

” स्त्रियाँ/अक्सर कहीं नहीं जाती/साथ रहती है/पास रहती है/
जब भी जाती हैं कहीं/आधी ही /जाती हैं। “
स्त्रियों से ही घर परिवार भरे हुए दिखाई देते हैं। स्त्रियों की उपस्थिति का अहसास घर के प्रत्येक जगह जैसे -आंगन ,रसोईघर ,दिवारों, छत ,जगमगाते बर्तनों,करीने से सजी रसोई,साफ-सफाई,साफ सुथरे बिस्तर में सभी जगह स्त्री विद्यमान रहती है।जब कभी घर की स्त्रियाँ कार्यवश कहीं चली जाती हैं। सूना हो जाता है घर और पास पड़ोस,सूने हो जाते हैं घर बार यदि छोड जाती हैं स्त्रियाँ। जब वे घर लौट आती हैं घर आंगन सभी भर जाते हैं स्त्रियों के घर में होने के अहसास से महक उठता है सम्पूर्ण वातावरण ।स्त्रियाँ केवल स्त्रियाँ ही नहीं होती वरन उनके भीतर समाए रहते हैं पीढियों के संस्कार,आदर्श,व विविध अहसास आदि। जाती स्त्रियों की अपेक्षा घर वापिस लौट आई स्त्रियां सुंदर दिखाई देती है—-
” स्त्रियाँ जब भी/जाती हैं/लौट लौट आती हैं।
लौट आयी/स्त्रियाँ/बेहद सुखद/लगती हैं।
सुंदर दिखतीं हैं/प्रिय लगती हैं। “।
स्त्री का घर से जाना अत्यंत तकलीफ देह होता है। उसके जाने के बाद चिंतन की सुखद अबाध गति से का प्रवाह मानो रूक सा जाता है। अजीब सी उदासी पसर जाती है पूरे घर के वातावरण में,अजीब सी चुप्पी छा जाती है चहुँओर। स्त्री के जाने से समाप्त हो जाती है घर के वातावरण की उन्मुक्तता सहजता सरलता सब कुछ एक क्षण में। दीवारों पर लगे जाले,छतों पर लटकती मकड़ीयां कहानी सुना देती हैं स्त्रियों के घर से जाने की——–
” स्त्रियाँ जब/चली जाती हैं दूर/जब लौट नही पाती/
बर्तन बाल्टीयाँ नहीं नहाते /मकड़ियाँ ऊंघती हैं/
कान मेंं मच्छर बजबजाते हैं/देहरी हर आने वालों के /
कदम सूंघती है। “
कवि केदार नाथ सिंह की कविता ‘स्त्रियाँ जब चली जाती हैं ‘सघन अनुभूति की मर्मस्पर्शी कविता है। स्त्रियों का संसार सुन्दर और विस्तार लिये होता है जिसमें घर परिवार के साथ स्त्रियों की आशाओं,आकांक्षाओं,सुनहरे सपनें पुष्पित पल्लवित होते हैं। घर की सम्राज्ञी होती हैं स्त्रियाँ। घरों में उठने वाली महक किसी भी स्त्री के पाक कला में पारंगत होने का प्रमाण होता है। रोजाना सुबह से शाम तक भोजन की विविधता और स्वादिष्ट भोजन बनाने में समस्त स्त्रियाँ तल्लीन रहती हैं। जब रसोई घर में व्यंजनों की महक उठती तो सारा वातावरण जीवंत हो उठता है। दाल और सब्जियों में लगाये गए छौंक से क्षुधा जागृत हो उठती है। घर की स्त्रियाँ प्रेम पूर्वक अपनी रसोईघर की जिम्मेदारी का निर्वहन करती रहती है। घर की स्त्रियाँ जब हमेशा के लिये चली जाती हैं ।तब घर की व्यवस्था गड़बड़ा जाती है। रसोई की उठने वाली महक थम सी जाती है। सुरुचि व करीने से सजा घर अव्यवस्थित हो जाता है। देखिये——–
” फ्रीज़ में पड़ा दूध मक्खन घी/फल सब्जियां/
एक दूसरे से/बतियाते नहीं /वाशिंग मशीन में/ठूस कर/
रख दिये गए कपड़े/गर्दन निकालतेहै बाहर/
और फिर खुद ही/दुबक-सिमट जाते हैं/
मशीन के भीतर,,,,,,,,,,,,,,।”

कवि केदारनाथ सिंह मानव जीवन के यथार्थ को सच्चाई के साथ स्वीकार करते हुए कहते हैं की सचमुच स्त्रियाँ घर आंगन की रौनक होती हैं परिवार को सम्पूर्णता प्रदान करने वाली स्त्री शक्ति के समर्पण भाव को कवि ने सूक्ष्म दृष्टि से परखा व अनूभुत किया है ईंट व पत्थरों से बने मकान को वे जिवंत बनाती हुई घर में तब्दील कर देती हैं ।घर का प्रत्येक कोना स्त्री की कल्पना ,कलात्मकता ,कौशल व सुरुचि को साकार करता दिखाई देता है। घर की साज सज्जा जहाँ स्त्री के कला कौशल को दर्शाता है वहीं परिवार की जिम्मेदारी का निर्वहन, कुशल संचालन स्त्री की संवेदन शीलता का परिचायक होता है। आज जहाँ भौतिकतावादी चकाचौंध में परिवार बिखर रहे हैं मनुष्य रोजी-रोटी की तलाश में परिवार से दूर हो रहा है। कन्या-भ्रूण हत्या जैसेअपराध रोज हो रहे हैं ।ऐसे में कविता”स्त्रियाँ जब चली जाती हैं ” निश्चित रूप से प्रेरणा प्रदान करती है। स्त्री के घर से जाने का अर्थ है सम्पूर्ण परिवार का बिखर जाना किसी के महत्व का अहसास हमें उसके दूर जाने के बाद ही होता है। स्त्री के संदर्भ में कवि केदार नाथ सिंह कहते हैं-
” स्त्रियाँ जब चली जाती हैं /कि जाना ही सत्य है
तब ही बोध होता है/कि स्त्री कौन होती है
कि जरुरी क्यों होता है/घर में स्त्री का बने रहना। ।”
जीवन का सुंदर राग स्पंदन ताल जीवन का सुंदर छन्द लयात्मकता सचमुच स्त्री से ही गुंजायमान होता है। जीवन की सरसता ,समरसता उल्लास, उत्साह सभी के पीछे स्त्री ही होती है ।जो हम सबकी जीवन यात्रा को अपने प्रेम व संवेदन शीलता से सिंचित करती हुई गतिमान बनाये रखती है। विपरित परिस्थितियों में वह अपनी सहनशीलता का परिचय देते हुए पुरूष व घर के अन्य सदस्यों को संबल प्रदान करती है। आज जब स्त्री आत्म निर्भर हो रही है स्त्री के विविध रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत हो रहे हैं जैसे काम काजी, शिक्षित स्त्री जो घर के साथ बाहर भी अपनी कुशलता का परिचय दे रही है किन्तु प्रस्तुत कविता में कवि सघन अनुभूतियों के साथ स्त्री के महत्व
को व्यक्त करता है जहाँ स्त्री की अनुपस्थिति घर के प्रत्येक कोने को सूना कर जाती है और उसकी उपस्थिति घर आंगन को खुशियों से सरोबार कर देती है।
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डॉ अनिता वर्मा
संस्कृति विकास कॉलोनी -3
कोटा, राजस्थान
पिन 324002

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