
-गृह मंत्री अमित शाह का कश्मीर दौरा चुनावों की आहट का संकेत तो नहीं
-द ओपिनियन-
इस साल नौ राज्यों में विधानसभा होने वाले हैं जिनका कार्यकाल इस साल समाप्त होने वाला है। इसके अलावा अगले साल के मध्य में लोकसभा चुनाव प्रस्तावित हैं लेकिन इस बीच एक और राज्य में भी चुनाव हो सकते हैं वह है जम्मू और कश्मीर। उम्मीद है अगले कुछ ही महीनों में घाटी के लोगों को चुनी हुई सरकार मिल जाएगी। राजौरी में गत दिनों आतंकी हमले के बाद पहली बार गृह मंत्री अमित शाह
शुक्रवार को राज्य के दौरे पर आ रहे हैं। शाह का कोई भी कदम और दौरा बहुत अहम होता है। इस दौरे का एक मकसद राज्य की सुरक्षा स्थिति की समीक्षा करना तो है ही लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि वे अपने इस दौरे में राज्य की राजनीतिक नब्ज भी टटोल सकते हैं। नब्ज टटोलना जरूरी भी है क्योंकि राज्य में एक निर्वाचित सरकार का होना बहुत जरूरी है। गत दिनों शाह ने अपने निवास पर कश्मीर के भाजपा नेताओं यानी भाजपा के कोर ग्रुप के साथ बैठक कर वहां के राजनीतिक हालात पर मंथन किया था। उन्होंने भाजपा नेताओं को हालात पर नजर रखने और किसी भी स्थिति में माहौल को न बिगड़ने देने के लिए लोगों के बीच रहने को कहा। उन्होंने लोगों तक पहुंच बनाने के लिए कहा। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष ने गत दिनों पार्टी की जम्मू-कश्मीर इकाई से कहा कि वह विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाए।. उन्होंने पार्टी प्रभारियों से कहा कि वो अपने-अपने इलाकों में चुनाव जीतने ध्यान केंद्रित करें। इसलिए गृहमंत्री शाह का यह दौरा काफी अहम है। उम्मीद है इस दौरे से राज्य में चुनाव की कोई राह निकलेगी। सवाल उठ रहा है कि क्या शाह नए साल में कश्मीरियों को निर्वाचित सरकार का तोहफा देंगे।
यह बात भी गौर करने लायक है कि भारत ने जी 20 की अध्यक्षता संभाली है और इस साल देश में जी 20 की कई बैठकें होने वाली हैं और इसकी बैठक जम्मू कश्मीर में भी होने के आसार हैै। यदि राज्य में एक निर्वाचित सरकार होगी तो निश्चित ही विश्व बिरादरी में कई सकारात्मक संदेश जाएगा।
जम्मू-कश्मीर में पिछले चुनाव 2014 में हुए थे। उसके बाद राज्य में भाजपा और पीडीपी की साझा सरकार बनी। बाद में दोनों के बीच मतभेदों के चलते भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद का घटनाक्रम इतिहास बन चुका है। राज्य में अनुच्छेद 370 समाप्त हो गया और लद्दाख व जम्मू कश्मीर दो अलग अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गए। लेकिन अब राज्य में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है और चुनाव पूर्व की प्रशासनिक तैयारियां भी वहां जारी हैं। राज्य में निर्वाचन क्षे़त्रों के परिसीमन का कार्य पूरा हो चुका है। हालांकि इस परिसीमन का जम्मू-कश्मीर के अधिकतर दलों ने जमकर विरोध किया और इसे भाजपा को लाभ पहुंचाने वाला बताया। बाद में मतदाता सूचियों के संशोधन के दौरान भी विरोध के सुर उठे। किन लोगों के नाम मतदाता सूचियों में जोड़े जाएं और किन लोगों के नाम नहीं जुड़ सकते इस बात को लेकर भाजपा को छोड़कर अन्य दलों ने सवाल खड़े किए। लेकिन चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन और मतदाता सूचियों को अपडेट करना चुनाव की तैयारियों की ही अहम कड़ी हैं।
राज्य में हाल ही में राजनीति गतिविधियां कुछ बढी हैं और आने वाले दिनों में इनके और बढने के आसार हैं। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा इसी माह जम्मू कश्मीर पहुंच रही है। इससे राज्य में राजनीतिक सरगर्मी तेज होने के आसार है। कांग्रेस की सक्रियता बढ़ेगी । इसके अलावा अन्य राजनीतिक दल खासकर भाजपा, गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी और नेशनल काॅन्फ्रेस की राजनीतिक गतिविधियां भी राज्य में जारी हैं। आजाद की पार्टी में शामिल हुए कांग्रेस के कुछ नेता तो वापस अपनी पार्टी में लौट आए हैं और इनको भी संभावित चुनावी गतिविधियों से जोड़कर देखा जा रहा है। भाजपा की बढ़ी राजनीतिक गतिविधियां भी इस बात का संकेत कर रही हैं कि जम्मू कश्मीर में चुनाव जल्द हो सकते हैं। आजाद और फारूक अब्दुल्ला जैसे राजनेता भी राज्य में चुनाव कराए जाने की बात कह रहे हैं । पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी चुनाव को लेकर कहा है कि यह राज्य के लोगों का हक है लेकिन हम इसे लेकर भीख नहीं मांग सकते हैं।
राज्य में जब से चुनाव की तैयारियां शुरू हुई हैं, टारगेटिंग किलिंग की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। इससे साफ है कि सीमा पार बैठे आतंकियों के आका नहीं चाहते कि घाटी में शांति लौटे। वहां का माहाौल बदले। इसलिए वहां चुनाव कराना कोई आसान काम नहीं है। सुरक्षा प्रबंधों की अग्नि परीक्षा होनी है।