– विवेक कुमार मिश्र-

डॉ. ताराचंद छात्रावास के कवि बद्रीनारायण जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार 2022 मिला। बधाई ! हमारे सामने के 2 ब्लाक में कवि सर रहते उनका कमरा कविताओं के पन्ने से भरा रहता और यहां से कविता के बहाने समाज संस्कृति का एक अध्ययन अपने ही ढ़ंग से बुना जा रहा था। साहित्य की समझ में इतिहास का अध्ययन अपने ढ़ंग से दिलचस्पी पैदा करता है और साहित्य को अनेकांत की अभिव्यक्ति देने का कार्य इस पृष्ठभूमि से होना शुरू हो जाता है । इतिहास एक तरह के लोगों का नहीं होता वल्कि जितनी विविधताएं होती हैं वह उतनी ही ज्यादा इतिहास की घटनाएं और इतिहास के वस्तुनिष्ठ यथार्थ से नये – नये चरित्र को गढ़ने का काम तो करती हैं। उसके साथ ही साहित्य के पाठकों को एक व्यापक संदर्भ से जोड़ने का काम करती है। बद्रीनारायण का कवि मन इतिहास के गलियारे से लोक में जाता रहा है और वहां से उठकर शब्द को इस तरह रखता है कि इस शब्द से जितना हम वर्तमान को समझने में समर्थ होते हैं उससे कहीं ज्यादा अपने अतीत के संदर्भों को पढ़ना शुरु करते हैं । इतिहास में केवल शब्द ही नहीं होते – जो शब्द होते वे जीवन की मूर्त अभिव्यक्ति को सामने लाते रहते हैं । इतिहास में यदि उत्खनन होता है तो वहां से जो दृश्य उभर कर आता है वह अपने साथ ही पूरी सभ्यता और संस्कृति को लिए हुए आया है । यहां शब्द की यात्रा में जीवन की यात्रा के संकेत हैं । जीवन है तो है और जैसे ही हो अपने अस्तित्व का रास्ता निकाल लेता है ।
संसार भर की सभ्यताओं में इतिहास का उत्खनन होता रहा है वह मनुष्य विरोधी व्यवस्था में मनुष्य की खोज को … मानवीय व्यक्तित्व का मूल हिस्सा बनाकर होती है । कवि बद्रीनारायण की कविताएं लोक, इतिहास और दृश्य जगत संसार की घटनाओं का एक साथ संघनन कर एक ऐसा रसायन कविता के रूप में करती है कि आप अपने को खोजने के साथ साथ उस समाज के उन तमाम चेहरे को देखने लगते हैं जो आसपास के वातावरण के गांव गिरांव में भरे पड़े हैं जिनके दुःख त्रास इतना इफरात है कि इसके अलावा कोई और छवि जब उनकी नहीं बनती तो उनकी छवि में उम्मीद की लकीरों की एक डरांची कवि खड़ी कर देता है कि यहां से देखो। ये संसार ऐसा नहीं है जितना और जैसा तुम सोचते हो या देखते हो वल्कि इससे बहुत आगे तक इसकी जड़ें जाती हैं और फुनगी की तो बात ही क्या करुं – उसको तुम देख ही रहे हो । यहां यह कहा जाना ज्यादा जरूरी लगता है कि बद्रीनारायण अपने समकाल से लोकगंधी रसास्वादन को लिए हुए शाश्वत की कविता शुरू के दिनों से करते आ रहे हैं। यहीं उनकी ताकत और पहचान है जिसे साहित्य अकादमी पुरस्कार ने मूल्य के रूप में रेखांकित किया है ।
अब तो तुमड़ी देखने को ही नहीं मिलती । सांसारिकता से निकलकर ‘तुमड़ी के शब्द’ आते हैं तो शब्द के सहारे सहारे जीवन भी दौड़ता चला जाता है । यह तुमड़ी जितना लोक में गूंजती रही है वहीं अब इस तुमड़ी को समझने जानने वालों की जैसे जैसी कमी होती जा रही है वैसी स्थिति में तुमड़ी के सहारे जिंदगी को समाज में चल रही घुम्मकड़ी को और इन सबके साथ चल रहे जीवन संदर्भ को पढ़ना जानना और एक ऐसी पाठशाला को भी खोलना है जो छुट रहे संसार और छोड़ दिये गये संसार को अपने ढ़ंग से प्रतिरोध की शब्दावली में देखने की बड़ी कोशिश भी यहां है । इस संग्रह की कविताएं हारे , छुटे , टूटे लोगों की महाकाव्यात्मक पीड़ा की अभिव्यक्ति है। कवि लगातार छुटे लोगों की पीड़ा से साक्षात्कार कराते हुए उस उम्मीद को भी सामने रखता है जो मनुष्य होने की पहचान और शक्ति को रेखांकित करती हैं – कुछ करें या न करें पर इतना जरूर करें उनका कवि मन यहीं कहता है –
नई पगदंडी भले कच्ची ही हो
आजमाएं एवं आदत में शुमार रास्ते से
ज्यादा अच्छी और ज्यादा सुखी दुनिया खोलती हैं
…इस पगदंडी पर बढ़ो
कहीं पहुंचों या न पहुंचों
इस पगदंडी पर चलों ।
( बद्रीनारायण ) यहीं से आदमी की उपलब्धि शुरू होती है जब वह पगदंडियों पर चलता है तो चलते चलते कहीं तक जा सकता है । यहां उसके हौसले सामने आते हैं । उसकी जिजीविषा आती है । उसके हौसले सोच सब सामने आते हैं । उसे रोको मत बस चलने दो नये नये रास्ते बनाने दो उसकी गलतियां मत गिनों । उसे चलते हुए देखो । आम आदमी को चलते हुए देखो का यह मुहावरा वे गढ़ते हुए आ रहे हैं । उनकी कविताएं कठिन हालात में साहस की , चुप्पी को तोड़ने और चलने की हैं । यहीं से सभ्यता में मनुष्यता की संस्कृति चलते हुए दिखाई दे रही है । जिसे समय गौर करता आ रहा है । इस मोड़ पर उन्हें पढ़े जाने , समझे जाने और आम आदमी की ताकत और पहचान के रूप में देखे जाने की जरूरत के रूप में ये पुरस्कार उनकी कविताओं को अलग से रेखांकित करते हैं ।
बद्रीनारायण जी को पढ़ना हमेशा प्रीतिकर आस्वाद रहा है । पुरुस्कार नये सिरे से पहचाने जाने और पढ़ें जाने को रेखांकित करते हैं । कवि के साथ सामाजिक संदर्भ के गंभीर टिप्पणीकार के रूप में आपकी अलग ही पहचान है । बद्रीनारायण जी को समाज विज्ञानी टिप्पणीकार के रूप में जाना जाता है । यहां उनका अध्ययन बराबर समाज के बंचित वर्ग की तकलीफों का खुलासा करने में ही नहीं वल्कि इन सबके बावजूद वह हंसी वह उम्मीद कहां बाकी है ? वह रचनात्मकता कैसे इस समाज को , इस जीवनतंत्र को लड़ने की ताकत देती है उसकी ओर बहुत गहरे से उनकी कविताएं संकेत करती रही हैं । जब भी उन्हें पढ़िए उस सामाजिक तकलीफ में डूबे बिना नहीं रह सकते जहां से यह जीवन आख्यान और जीवन जीने की ज़िद से भरी कविताओं को उठाया गया है । इस समय गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक शोध संस्थान झूंसी , प्रयागराज के निदेशक हैं । पर आपका सबसे बड़ा पता कवि का है ।
– विवेक कुमार मिश्र
(सह आचार्य हिंदी राजकीय कला महाविद्यालय कोटा)
F-9, समृद्धि नगर स्पेशल , बारां रोड , कोटा -324002(राज.)