
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
सदियों से तेरे वास्ते काॅंटों का सफ़र है।
ऐ मेरे क़लम फिर तुझे किस बात का डर है।।
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लगता है निशाने पे कि होता है ख़ता तीर।
चिड़िया की जहाॅं ऑंख वहीं अपनी नज़र है।।
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ऐ चाॅंंद सितारो मैं अभी जाग रहा हूॅं।
ठहरो कि शबे ग़म की अभी दूर सहर है।।
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महफूज़* बलाओं से अभी तक है मेरा घर।
शायद ये मेरी मां की दुआओं का असर है।।
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वादे पे वो कब आया जो अब आयेगा “अनवर”।
उस वादा शिकन की मुझे उम्मीद मगर है। ।
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तीर ख़ता होना* निशाना चूकना
शबे ग़म* वियोग की रात
दुख की रात
महफूज़* सुरक्षित
वादा शिकन* वादा तोड़ने वाला
शकूर अनवर
9460851271


















बहुत खूब।
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