
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

तेरी ऑंखों का मंज़र बन गया हूँ।।
बहुत गहरा समन्दर बन गया हूँ।।
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लकीरों में मुझे क्या देखते हो।
मैं ख़ुद अपना मुक़द्दर बन गया हूंँ।।
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मेरी वुसअत* मेरा रुतबा* वही है।
मैं सहरा* था समन्दर बन गया हूँ।।
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मुहब्बत में इरादे और कुछ थे।
मुहब्बत में सुख़नवर* बन गया हूँ।।
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यहाँ क़िस्मत बनाती है सिकन्दर।
मैं उस क़िस्मत से पत्थर बन गया हूँ।।
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उसे “अनवर” फ़क़त* अपना बनाकर्।
मैं दुनिया भर का दिलबर बन गया हूँ।।
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शब्दार्थ:-
वुसअत*स्तार
रुतबा*शान
सहरा*रेगिस्तान
सुख़नवर*कवि शायर
फ़क़त*केवल
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शकूर अनवर
9460851271
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