
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
मुहब्बत का कहीं जज़्बा नहीं है।
जो दुनिया थी ये वो दुनिया नहीं है।।
*
चमन में जब कोई ख़तरा नहीं है।
फिर अपना हाल क्यों अच्छा नहीं है।।
*
सभी के हैं सितारे आसमाॅं पर।
किसी के हाथ कुछ आता नहीं है।।
*
नहीं आया हमें इनकार करना।
कहीं से सर कोई उठता नहीं है।।
*
मैं अपनी जेब में रखता हूॅं दुनिया।
मगर इस जेब में बटुआ नहीं है।।
*
हम इस मिट्टी से नफ़रत क्यों करेंगे।
इसी मिट्टी में क्या मिलना नहीं है।।
*
क़लम भी साथ में दुनिया का ग़म भी।
हमारे पास “अनवर” क्या नहीं है।।
शकूर अनवर
Advertisement