बातचीत की शुरुआत से बदलेगी सोच

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विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर कोटा में आत्महत्या रोकथाम कार्यशाला

-प्रश्न कभी मूर्खतापूर्ण नहीं होते, जवाब हो सकते हैं 

-इकोसिस्टम से घुल-मिलकर सीखें, संवाद में झिझक न करें 

कोटा। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के अवसर पर एलन सुपथ, नयानोहेरा में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस वर्ष 2025 का विषय “आत्महत्या के प्रति धारणा में बदलाव” तथा कार्यवाही हेतु आह्वान “बातचीत की शुरुआत करें” निर्धारित किया गया। कार्यशाला का आयोजन थीम ‘लाईफ बियोण्ड मार्क्स’/’ चेंज द नेरेटिव ऑन सूसाइड’ विषय पर हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला कलक्टर पीयूष समारिया ने की।

कलक्टर पीयूष समारिया ने छात्रों से संवाद करते हुए कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाए रखने के लिए सरलता और बातचीत सबसे महत्वपूर्ण साधन हैं। उन्होंने कहा कि लोगों से सहज रूप में मिलना, हालचाल पूछना, छोटी-छोटी बातों पर बातचीत करना मन को हल्का करता है और यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि डॉक्टर, इंजीनियर बनना अच्छा है, परंतु जीवन में सफलता के लिए सबसे जरूरी है भीतर से कुछ पाने की लालसा। उन्होंने सत्य नडेला का उदाहरण देते हुए कहा कि भले ही वे आईआईटी में प्रवेश नहीं पा सके, लेकिन टेक क्षेत्र में उनका योगदान विश्व स्तर पर अद्वितीय है।

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कलक्टर ने कहा कि पर्याप्त नींद लक्ष्य प्राप्ति और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए आवश्यक है। उन्होंने विद्यार्थियों से अपने इकोसिस्टम में घुलने-मिलने, प्रश्न पूछने और आत्मविश्वास से आगे बढ़ने का आह्वान किया।

डॉ. एम.एल. अग्रवाल ने कहा कि समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता का अभाव है। लोग तनाव, खराब जीवनशैली या आनुवंशिक कारणों से मानसिक रोगों से ग्रसित होते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में लंबे समय तक उपचार नहीं करा पाते। उन्होंने कहा कि मानसिक रोगों की पहचान कर समय पर उपचार लेने से गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है। समाज में मनोरोग और मनोचिकित्सक से परामर्श लेने के प्रति व्याप्त नकारात्मक सोच को दूर करना आवश्यक है।

डॉ. विनोद दरिया ने डिजिटल युग की चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बढ़ता स्क्रीन टाइम स्लीप साइकिल बिगाड़ रहा है और लोग वर्चुअल दुनिया में ज्यादा खोते जा रहे हैं, जिससे वे अपने करीबियों से संवाद कम कर रहे हैं।

उन्होंने आत्महत्या के संकेतों को पहचानने पर बल देते हुए कहा कि जब कोई व्यक्ति जीवन के प्रति उदासीनता जताए या बार-बार नकारात्मक बातें करे, तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए और बिना झिझक मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।

डॉ. तुषार जगावत ने स्वास्थ्य की परिभाषा बताते हुए कहा कि शारीरिक, मानसिक और सामाजिक वेलबीइंग ही पूर्ण स्वास्थ्य है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को प्रतिदिन कम से कम 24 मिनट अपने मित्रों और घरवालों से बात करनी चाहिए और छोटी-छोटी बातों को साझा करना चाहिए। उन्होंने “डेयर टू शेयर” की अवधारणा पर बल देते हुए कहा कि जीवन की हर बात अपने प्रियजनों से साझा करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

श्री सौरभ ने कहा कि असफलता ही सफलता की तैयारी करती है। उन्होंने गीत की पंक्तियों और थॉमस एडिसन के उदाहरण से समझाया कि हार से ही जीत का रास्ता खुलता है। उन्होंने जापानी कहावत “सात बार गिरो, आठवीं बार उठो” का उल्लेख करते हुए छात्रों को संघर्षशील बने रहने का संदेश दिया।

गौरव सेठी ने विद्यार्थियों को समय प्रबंधन की सलाह देते हुए कहा कि दिन के 24 घंटे को व्यवस्थित भागों में विभाजित करें और अनुशासनपूर्वक कार्य करें। श्रीमती गौरी सेठी ने कहा कि तुलना और प्रतिस्पर्धा में फर्क समझना आवश्यक है, और सकारात्मक तरीके से तनावमुक्त होकर लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए।

सुरभि खंडेलवाल ने स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए योग और ध्यान को अत्यंत लाभकारी बताया। वहीं अलख फाउंडेशन से रानू पराशर ने अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक एवं संतुलित आहार के महत्व के बारे में जानकारी दी।

सीएमएचओ डॉ. नरेंद्र नागर ने कहा कि आत्महत्या एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है, जिसके सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक दुष्प्रभाव दूरगामी होते हैं इसीलिए प्रतिवर्ष 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। कार्यक्रम का आयोजन चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग, एलन तथा अलख फाउंडेशन एवं वेलफेयर सोसायटी जयपुर
के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस अवसर पर डीपीएम नरेंद्र नागर समाजसेवी यज्ञदत्त हाड़ा सहित संस्थान के करीब एक हजार विद्यार्थियों ने सक्रिय सहभागिता की।

जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत 10 सितम्बर से 10 अक्टूबर 2025 तक जिले के स्कूलों, कॉलेजों और कोचिंग संस्थानों में आउटरीच सत्र और आईईसी गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को यह अवसर देना है कि वे अपनी पढ़ाई, करियर और व्यक्तिगत समस्याओं पर शिक्षकों और प्रशिक्षकों से खुले मन से संवाद कर सकें।

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