राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पर,आइए चिकित्सक और मरीज के बीच विश्वास, करुणा और सम्मान का अटूट रिश्ता बनाएँ

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-नेशनल डॉक्टर्स डे (1 जुलाई 2025) की थीम है, “बिहाइंड द मास्क, केयरिंग फॉर केयरगिवर्स”

डॉ. सुरेश कुमार पाण्डेय/डॉ. विदुषी शर्मा

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डॉ विदुषी शर्मा              डॉ सुरेश पाण्डेय

दिनांक 1 जुलाई 2025 को भारत में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (नेशनल डॉक्टर्स डे) मनाया जा रहा है। यह महत्वपूर्ण दिन केवल एक औपचारिक उत्सव नहीं हैं, बल्कि उन चिकित्सक नायकों के प्रति कृतज्ञता और आत्मचिंतन का एक अनमोल अवसर है, जो मास्क के पीछे अपनी थकान, तनाव और भावनाओं को छिपाकर हर दिन लाखों जिंदगियों को बचाते हैं। इस वर्ष नेशनल डॉक्टर्स डे की थीम, “बिहाइंड द मास्क, केयरिंग फॉर केयरगिवर्स”, एक गहरी और संवेदनशील बात कहती हैः जो चिकित्सक हमारी देखभाल करते हैं, उनकी देखभाल कौन करता है? यह थीम हमें उस इंसान की कहानी सुनने का न्योता देती है, जो सफेद कोट और मास्क के पीछे छिपा है, जिसके अपने सपने, दुख और संघर्ष हैं।

भारत का चिकित्सा इतिहास गौरवशाली हैः सुश्रुत, जिन्हें विश्व का पहला शल्य चिकित्सक माना जाता है, चरक, जिन्होंने आयुर्वेद को नई दिशा दी, चिकित्सा के देवता, धन्वंतरि, इन सभी ने भारत को प्राचीन चिकित्सा पद्धति में शीर्ष पर पहुँचाया। आज भी समाज के कुछ भावनाशील रोगी चिकित्सकों को “धरती का दूसरा भगवान” कहकर कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। ग्लोबल ट्रस्टवर्दीनेस इंडेक्स के अनुसार, चिकित्सक सबसे भरोसेमंद पेशेवरों में शीर्ष पर हैं। लेकिन बदलते समय के साथ मरीजों और चिकित्सकों के बीच यह भरोसा कमजोर होता जा रहा है। अस्पतालों में एक्सीडेंट, गंभीर रोग से पीड़ित व्यक्ति के उपचार के समय अथवा इमरजेंसी परिस्थिति में रोगी की जान नही बच पाने पर, रोगी के रूटीन ऑपरेशन अथवा उपचार के अच्छे परिणाम नहीं आने पर अथवा मरीजों और चिकित्सकों के बीच संवाद की कमी, आदि अनेकों कारणों ने मरीजों और चिकित्सकों के बीच अविश्वास को जन्म दिया, जिसके चलते हिंसक घटनाएँ बढ़ी हैं। नेशनल डॉक्टर्स डे के अवसर पर हमें चिकित्सक एवं रोगी के बीच उस अटूट विश्वास और रिश्ते को फिर से मजबूत करने का संकल्प लेना होगा, जो चिकित्सक और मरीज को एक-दूसरे को विश्वास से जोड़ता है।

राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस 1 जुलाई को भारत रत्न से सम्मानित स्वर्गीय डॉ. बिधान चंद्र रॉय की की पावन स्मृति में मनाया जाता है, जिनका जन्म और निधन दोनों 1 जुलाई को हुआः 1882 में जन्म और 1962 में निधन। वे न केवल एक कुशल चिकित्सक थे, बल्कि स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री भी थे। उनकी दूरदर्शिता ने भारतीय चिकित्सा परिषद (इंडियन मेडिकल कॉउसिंल) और भारतीय चिकित्सा संघ (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) जैसे संस्थानों की नींव रखी, जिसने भारत की चिकित्सा व्यवस्था को संगठित किया। उस दौर में, जब ग्रामीण भारत में आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ न के बराबर थीं, और लोग वैद्य या हकीमों पर निर्भर थे, डॉ. रॉय ने सीमित संसाधनों में असाधारण काम किया। उनकी जिंदगी हमें सिखाती है कि चिकित्सा केवल इलाज नहीं, बल्कि समाज को बेहतर बनाने का जज्बा है। लेकिन आज, जब हम आधुनिक तकनीक के युग में हैं, चिकित्सकों की चुनौतियाँ कम नहीं हुईं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार, 75 प्रतिशत चिकित्सक अपने कार्यस्थल पर हिंसा का शिकार हुए हैं। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में मरीजों के परिजनों द्वारा चिकित्सकों को अपमानित या शारीरिक नुकसान पहुँचाते देखा जाता है। ये घटनाएँ चिकित्सकों की गरिमा को ठेस पहुँचाती हैं और युवा चिकित्सकों का मनोबल तोड़ती हैं, जिससे कई प्रतिभाशाली चिकित्सक विदेश पलायन कर रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाएँ बेहतर हैं, लेकिन ग्रामीण भारत में विशेषज्ञ चिकित्सकों, जांच सुविधाओं और ऑपरेशन थिएटरों की भारी कमी है। यह असंतुलन ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को संकट में डालता है। सबसे दुखद तथ्य यह है कि भारत में चिकित्सकों की औसत आयु सामान्य जनसंख्या से 10 वर्ष कम है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के एक अध्ययन के अनुसार, 82.7 प्रतिशत चिकित्सक लगातार तनाव में रहते हैं। अत्यधिक कार्यभार, अपर्याप्त विश्राम और सामाजिक दबाव उनकी सेहत को नुकसान पहुँचाते हैं। चिकित्सकों में आत्महत्या की दर अन्य पेशों से अधिक है। अमेरिका में हर साल लगभग 400 चिकित्सक आत्महत्या करते हैं, और भारत में भी स्थिति चिंताजनक है। भारत में महिला चिकित्सकों की स्थिति और जटिल है। दिनांक 9 अगस्त 2024 को कोलकाता के आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज में एक 31 वर्षीय महिला रेजिडेंट डॉक्टर के साथ हुई बलात्कार और हत्या की घटना ने देश को झकझोर दिया। देश भर में महिला चिकित्सकों को लैंगिक भेदभाव, उत्पीड़न और असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। एक शोध के अनुसार, 40 प्रतिशत महिला चिकित्सक अपने करियर के पहले 6 वर्षों में यह पेशा छोड़ देती हैं, जो देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए बड़ा नुकसान है।

कोविड-19 महामारी ने चिकित्सकों की निस्वार्थ सेवा को दुनिया के सामने ला दिया। पी.पी.ई. किट में घंटों काम करना, परिवार से दूर रहना, और अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की सेवा करना, यह उनकी करुणा और समर्पण का प्रतीक है। भारत ने विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाकर कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर को नियंत्रित किया, लेकिन इसकी सफलता के पीछे चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों की मेहनत थी। फिर भी चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों की थकान और तनाव अक्सर अनदेखा रह जाता है। चिकित्सकों और मरीजों के बीच विश्वास की कमी एक बड़ी समस्या है। मरीजों को लगता है कि चिकित्सक उनकी बात नहीं सुनते, जबकि चिकित्सकों को लगता है कि मरीज इंटरनेट की आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर सवाल उठाते हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के अनुसार, भीड़भाड़ वाले सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक एक मरीज को औसतन दो मिनट दे पाते हैं। इतने कम समय में किसी की बीमारी समझना और उसे आश्वस्त करना चमत्कार है। रेजिडेंट चिकित्सक कई बार बिना नींद, बिस्किट और चाय पर दिन काटते हुए 24 से 48 घंटे या उससे भी अधिक घंटों की ड्यूटी करते हैं।

अनेकों चुनोतियों के बावजूद भारत ने चिकित्सा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। हमारा देश एशिया में सिंगापुर को पीछे छोड़ते हुए थाईलैण्ड के बाद मेडिकल टूरिज्म का दूसरा सबसे पसंदीदा गंतव्य बन चुका है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक सर्जरी और टेलीमेडिसिन ने चिकित्सा को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। लेकिन इन सबके पीछे चिकित्सकों का समर्पण है। देश की जी.डी.पी. का केवल 3.8 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च होता है, जो पर्याप्त नहीं है। देश की जी.डी.पी. के इस खर्च को बढ़ाकर 10 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करना होगा। इन समस्याओं का समाधान केवल सरकार से नहीं होगा। समाज को अपनी सोच बदलनी होगी। चिकित्सकों को सुरक्षित कार्यस्थल, मानसिक स्वास्थ्य के लिए परामर्श, और महिला चिकित्सकों के लिए लचीली नीतियाँ चाहिए। मरीजों को भी स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर और चिकित्सकों के साथ खुले संवाद को बढ़ाकर अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। चिकित्सकों को भी रोगी एवं उनके परिजनों के साथ संवाद की कला में निखार लाते हुए मरीजों के साथ संवेदनशीलता और पारदर्शिता बरतनी होगी।

इस राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस 2025 पर, आइए चिकित्सक और मरीज के बीच विश्वास, करुणा और सम्मान का अटूट रिश्ता बनाएँ। थीम “बिहाइंड द मास्क, केयरिंग फॉर केयरगिवर्स” हमें याद दिलाती है कि मास्क के पीछे चिकित्सक भी भगवान नहीं वरन, एक इंसान है, जो हर दिन अपनी जिंदगी दाँव पर लगाकर हमारी सेवा करता है। आइए, हम सभी चिकित्सकों,स्वास्थ्य कर्मियों के योगदान का उत्सव मनाएँ और वादा करें कि हम उनके लिए वही देखभाल और समर्थन दिखाएँगे, जो वे हमें देते हैं। एक स्वस्थ समाज तभी बनेगा, जब हम अपने देखभाल करने वालों की देखभाल करें।

डॉ. सुरेश कुमार पाण्डेय
प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सक, सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा,
साइक्लिस्ट, अनेक पुस्तकों के लेखक, साइक्लिंग के साथ सकारात्मक संदेश मुहिम के संचालक।

डॉ. विदुषी शर्मा (एम.डी. एम्स, नई दिल्ली, एफ.आर.सी.एस., यू.के.),
नेत्र चिकित्सक, लेसिक सर्जन, सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा,
लेखिका, हिप्पोक्रेटिक ओडिसी, लेसन्स फ्रॉम अ डॉक्टर कपल ऑन लाइफ इन मेडिसिन, चौलेंजेस, एंड डॉक्टरप्रन्योरशिप।

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