एआई से डॉक्टरी-जांच और वकालत की गिरेगी फीस, इलाज और इंसाफ तेज होगा?

-सुनील कुमार Sunil Kumar

अमरीका में अभी एक व्यक्ति को अपनी सेहत के चलते हवाई सफर रद्द करना पड़ा, तो होटल और एयरलाईंस ने उसे भुगतान वापिस करने से मना कर दिया। इस पर इस आदमी ने एआई की मदद से अपने मेडिकल सर्टिफिकेट की जानकारी देकर ऐसे तर्क ढूंढे कि जिनका कोई जवाब एयरलाईंस के पास नहीं था, और घंटे भर के भीतर उसने भुगतान लौटाना मान लिया। आज भारत में भी बहुत से वकील एआई का इस्तेमाल करके प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार करते हैं, और बाद में उनमें से कुछ लोग अपनी अक्ल भी लगाकर अदालत में दाखिल करने लायक दस्तावेज बनाते हैं। लेकिन लोग खुद भी अपनी सामान्य जानकारी के लिए एआई से कानूनी बारीकियों को समझ सकते हैं, और जरूरत पडऩे पर अपने वकील या डॉक्टर से उन पहलुओं की चर्चा भी कर सकते हैं। कुछ समय पहले तक कुछ डॉक्टर अपने क्लिनिक में ऐसे नोटिस लगाकर रखते थे कि गूगल से मिले ज्ञान से उपजे सवालों के जवाब देने के लिए अलग से फीस ली जाएगी। लेकिन गूगल एक सर्च इंजन है जो कि मौजूदा जानकारी को ढूंढकर सामने रखता है, उसकी अपनी कोई ऐसी कृत्रिम बुद्धि नहीं है जो कि विश्लेषण करके नतीजे सामने रखे। एआई इस मायने में सर्च इंजन से बिल्कुल और बहुत आगे की चीज है।

अब जब मेडिकल डायग्नोसिस जैसे काम एआई की मदद से हजारों गुना रफ्तार से होने लगेंगे, कई गुना अधिक सही होने लगेंगे, तो जाहिर है कि उसकी लागत भी घटेगी, और यह शुरू हो चुका है। एक एक्सरे से लेकर एमआरआई रिपोर्ट तक को देखकर मौजूदा या संभावित बीमारी का पता लगाने में एआई की क्षमता सबसे काबिल डॉक्टर की क्षमता से भी दर्जनों या सैकड़ों गुना अधिक है। एआई दुनिया के करोड़ों एमआरआई के तजुर्बों से सीखते हुए वैज्ञानिक आधार पर भविष्यवक्ता जैसा हो सकता है, और इससे इलाज बहुत तेज रफ्तार, एकदम पुख्ता, और सस्ता हो जाना तय है। आज विशेषज्ञ चिकित्सक किसी भी देश में सबसे महंगे पेशेवर लोगों में से हैं, और अगर उनके काम का बोझ एआई से सौ गुना कम हो जाएगा, तो जाहिर है कि बाजार में ऐसे विशेषज्ञ-डॉक्टरों, या वकीलों की जरूरत घट जाएगी, और उनकी फीस भी। जो बात पश्चिम के देशों में इस्तेमाल में आ चुकी है, उनमें यह भी है कि कई किस्म के कैंसर मरीजों की बीमारी का बारीक विश्लेषण करके एआई ऐसी दवा तैयार करता है, जो कि उसी मरीज के लिए रहती है, और उस मरीज को उससे बेहतर और कोई दवा मिल नहीं सकती। कुल मिलाकर यह कि बीमारी की शिनाख्त इंसानी डॉक्टरों के मुकाबले अधिकतर मामलों में बहुत जल्दी, बहुत सही, और इलाज के तरीकों से लेकर दवा तक, हर कदम पर एआई की मदद से बेहतर असर! एआई एक तरफ जहां बहुत सी नौकरियां खाने वाला है, वहीं पर वह इलाज के मामले में तो गरीबों की बड़ी मदद भी करना शुरू कर चुका है।

अब अगर हम हिन्दुस्तान जैसे देश को देखें जहां 48 बरस बाद कत्ल के जुर्म से एक आदमी को 103 बरस की उम्र में जेल से बेकसूर मानकर रिहा किया गया है, तो ऐसे देशों में एआई की मदद से अगर निचली अदालतों से भी मामलों का विश्लेषण हो सकेगा, उन पर कौन से कानून लागू होंगे, इसे देखा जा सकेगा, वकीलों और जजों की उपलब्धता का तालमेल बिठाया जा सकेगा, तो आज कछुआ चाल से चलने वाले अदालती मामले हो सकता है कि खरगोश की तरह छलांग लगाकर आगे बढऩे लगें। छोटे वकीलों से लेकर सबसे बड़े वकीलों तक को एआई की मेहरबानी से उनके मामलों में मौजूदा कानून, और पुराने केसों के विश्लेषण पल भर में हासिल रहेंगे, और आज पूरी दुनिया में एआई का ऐसा इस्तेमाल वकील कर ही रहे हैं। ऐसी प्रारंभिक मदद के बाद इंसानी समझ का आखिरी में इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन काम का 90 फीसदी बोझ तक एआई से घट सकता है, जाहिर है कि ऐसे में वकीलों की फीस भी कम हो सकती है, और अदालतों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाले मुकदमे कुछ बरसों में ही खत्म हो सकते हैं। वकील और जज एआई से यह समझ सकते हैं कि ऐसे मामलों में ऊंची अदालतों के कौन-कौन से फैसले रहे हैं, जो कि आज की बहस पर लागू होते हैं, और इससे सबका काम आसान होने लगेगा। यह कुछ उसी किस्म का रहेगा कि बनती हुई दस मंजिला इमारत की दसवीं मंजिल पर ईंट और गारा पहुंचाने के लिए जो मजदूर लगते हैं, उनकी जगह पलक झपकते ये सामान दसवीं मंजिल पहुंच जाएंगे, और उसके बाद सिर्फ मिस्त्री का जुड़ाई का थोड़ा सा काम बाकी रहेगा।

इसकी एक दिलचस्प मिसाल हमने खुद इस्तेमाल की। अपने शहर के प्रेस कॉम्पलेक्स में जहां हमारा दफ्तर है, वहां सामने सडक़ पर हर बारिश में कई दिन तीन-चार फीट तक पानी भर जाता है, दुपहिए, और कारें तैरने लगते हैं। हमने एआई से पूछकर यह समझने की कोशिश की कि इस पानी को किस तरफ निकाला जा सकता है, तो उसने हमारे शहर के अलग-अलग मोहल्लों की समुद्र की सतह से ऊंचाई बताते हुए आधे मिनट में ही यह दिखा दिया कि इस इलाके से किस तरफ नाला ले जाया जा सकता है जिधर ढलान की वजह से ही पानी बहकर निकल जाएगा। अब शहर की टोप्पोग्राफी के नक्शे लेकर अगर बैठते, और इन्हीं बातों को तलाशते, तो हो सकता है कि उसमें कुछ घंटे लग जाते। लेकिन एक मिनट के भीतर हमें हमारे इलाके के चारों तरफ जमीन के चढ़ाव या ढलान का नक्शा मिल गया।

स्कूल-कॉलेज से लेकर रिसर्च तक एआई की वजह से लोगों पर से काम का बोझ घट रहा है, और गंभीर छात्र-छात्राओं के सामने इस बचे हुए समय का इस्तेमाल बेहतर मौलिक काम करने के लिए बचा रहता है। एआई की निकाली हुई जानकारी, और उसके किए हुए विश्लेषण के बाद भी मौलिकता की गुंजाइश बहुत रहती है, और लोग अपनी प्रतिभा का वहां पर उपयोग कर सकते हैं। इस तरह स्कूल-कॉलेज में, या रिसर्च गाईड के स्तर पर लोगों की मौजूदगी में जो कमी है, उसे एआई बड़ी अच्छी तरह पूरी कर सकता है, और फिर उसकी निकाली जानकारी का मानवीय विश्लेषण चूक के खतरों को घटा सकता है। एक तरफ काम आसान हो रहा है, दूसरी तरफ रोजगार घटते चले जाएंगे। इसी मुद्दे पर कुछ हफ्ते पहले हमने लिखा था कि लेखों के लेखक, संपादक, प्रूफ रीडर, फैक्ट चैकर, डिजिटल डिजाइनर किस तरह अप्रासंगिक होने वाले हैं, और इसका असर दिखना भी शुरू हो गया है, अधिकतर मीडिया संस्थानों में लोगों की भर्ती इस तरह के कामों के लिए बंद सी हो चुकी है। आगे-आगे देखें होता है क्या।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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