दुनिया भर की आपदाओं के बीच भारत के अवसर

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-सुनील कुमार Sunil Kumar

पिछले कुछ बरसों से, खासकर चीन से कोरोना शुरू होने की चर्चाओं के बीच दुनियाभर की कंपनियों में चाइना-प्लस-वन की रणनीति चल रही थी। मतलब यह कि दुनिया की जो भी कंपनियां चीन में सामान बना रही थीं, बनवा रही थीं, उन्होंने यह तय किया कि चीन के भयानक लॉकडाउन को देखते हुए सिर्फ उस पर आश्रित रहना ठीक नहीं है। इसलिए उन्होंने चीन के साथ-साथ कम से कम एक और देश में अपनी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट डाली, या किसी और एक देश के स्थानीय निर्माताओं से भी अपने सामान बनवाना शुरू किया। इसके चलते भारत, बांग्लादेश, वियतनाम, जैसे कुछ देश बड़े फायदे में रहे, और भारत में आइफोन जैसा महंगा सामान बनाने के कारखाने तमिलनाडु में शुरू हुए, और उनका युद्धस्तर पर विस्तार चल रहा है। कल की खबर है कि एप्पल ने यह तय किया है कि अमरीका जाने वाले उसके सारे आईफोन भारत में बनाए जाएंगे क्योंकि बददिमाग तानाशाह अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने चीन पर एक अविश्वसनीय, दो-ढाई सौ करोड़ का टैरिफ लगाया है, जिसका यही मतलब है कि चीन में बना हुआ सामान अमरीका में ले जाकर अब बेचा ही नहीं जा सकता। ऐसे में भारत एप्पल के लिए सबसे माकूल जगह रह गई है जहां ट्रम्प के टैरिफ का हमला भी चीन जैसा भयानक नहीं है, और यहां बड़ी कामयाबी से आईफोन जैसा महंगा और नाजुक सामान बन रहा है जिसे लेकर कोई शिकायत नहीं आई है।

आज दुनिया के देशों में यह साख भी काम आती है कि वहां पर राजनीतिक स्थिरता कितनी है, लोकतंत्र की निरंतरता कितनी है, बिजली और बाकी ढांचागत सुविधाएँ कितनी विश्वसनीय हैं, और तकनीकी दक्षता वाले कामगार कितने उपलब्ध हैं। भारत के कुछ प्रदेश इस मामले में अंतरराष्ट्रीय मैन्यूफैक्चरिंग सेंटरों का मुकाबला करते हैं, और यही वजह है कि दक्षिण के राज्यों में ऐसे बहुत से कारखाने शुरू हुए हैं। ट्रम्प का जो रूख चीन के साथ है, वह जल्दी बदलते दिख नहीं रहा है, इसलिए चीन से अमरीका किसी सामान को ले जाना और बेचना नामुमकिन सा हो गया है। ट्रम्प नाम की वैश्विक आपदा ने भारत जैसे देशों के लिए अपार संभावनाएं खड़ी कर दी है। फिर बांग्लादेश जैसी राजनीतिक अस्थिरता और किसी राजनीतिक दल से जुड़े कारखानों को तबाह करने की सरकार की बेवकूफी के चलते अनगिनत अंतरराष्ट्रीय फैशन और खेलकूद के ब्रांड बांग्लादेश का विकल्प देख रहे हैं। भारत अगर आज ऐसे कारखानों, और कामगारों से लैस रहता, तो उसे बहुत बड़ा कारोबार मिल सकता था, लेकिन रातों-रात तो ऐसा कारोबार खड़ा हो नहीं सकता, इसके लिए केन्द्र सरकार के साथ-साथ देश के अलग-अलग प्रदेशों को भी अपने आपको तैयार करना पड़ेगा, अंतरराष्ट्रीय स्तर की सहूलियतें मुहैया करानी पड़ेंगी, कारोबार के लिए दोस्ताना रूख रखना पड़ेगा, और अपने लोगों को तकनीकी दक्षता से लैस भी करना पड़ेगा। इनमें से कुछ भी मुश्किल नहीं है, लेकिन राज्यों को लीक से हटकर काम करना होगा, और चीन के विकल्प की तरह अपने आपको तैयार करना पड़ेगा, जो कि आसान नहीं होगा, और नामुमकिन भी नहीं होगा। भारत के सामने यह एक विशाल संभावना आई है कि दुनिया में आज छिड़े हुए ट्रेड वॉर को देखते हुए वह एक बड़े निर्माण-केन्द्र की तरह विकसित हो।

अब हम एक बिल्कुल अलग तरह की बात करना चाहते हैं जो फिर आपदा में अवसर की है। आज दक्षिण कोरिया, जापान, इटली, जैसे कई देश हैं जहां आबादी तेजी से गिरती जा रही है, और वहां पर कामगार भी नहीं रह गए हैं। ऐसे में इन देशों में दूसरे देशों से पहुंचने वाले कारीगरों और कामगारों की खूब मांग है। इनके अलावा न्यूजीलैंड जैसे देश हैं जहां पर उन्हें कामगार कम पड़ रहे हैं, और देश धीरे-धीरे बाहर से वहां आकर बसने और काम करने वाले प्रवासियों पर निर्भर हो चला था, और अब वहां पर प्रवासियों का आना भी घटते जा रहा है जो कि स्थानीय जिंदगी और कारोबार के लिए एक मुश्किल बात है। ऐसे देशों में जाकर काम करने के लिए अपने कामगारों को तैयार करने की एक बड़ी संभावना आज बाकी दुनिया के सामने आई हुई है, और खासकर भारत जैसे देश के सामने, जहां पर कि बेरोजगारी बहुत है, और जिनको रोजगार मिला भी है, उन्हंु बहुत कम मजदूरी या तनख्वाह मिलती हैं। इस देश के राज्यों को चाहिए कि भारत सरकार के रास्ते कामगारों की कमी वाले देशों की जरूरतें पूरी करने के लिए वहां की जरूरत के हुनर, वहां की भाषा, संस्कृति, और जनजीवन की जानकारी से लैस अपने कामगारों को वहां भेजने की तैयारी करे। इस काम में असंभव कुछ भी नहीं है, क्योंकि इन तमाम चीजों को सिखाने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षक आसानी से ढूंढे जा सकते हैं। जापान में आज दूसरे देशों से आए हुए ट्रक ड्राइवर खूब काम कर रहे हैं क्योंकि वहां अभी कुछ महीने पहले ही सामानों की डिलीवरी का इतना बुरा हाल हो गया था कि कारखानों से कई हफ्तों या महीनों तक सामान नहीं निकल रहे थे। भारत के जिन राज्यों से दूसरे देशों में जाकर सबसे अधिक संख्या में लोग काम करते हैं, उनमें पंजाब, आन्ध्र, और केरल का नाम सबसे पहले जुबान पर आता है। भारत सरकार और देश की राज्य सरकारों को हिन्दुस्तानी कामगारों के लिए माकूल देशों का अध्ययन करना चाहिए कि किन देशों में किन कामों के लिए हिन्दुस्तानी कामगार या कारीगर लग सकते हैं। आज भी हिन्दुस्तान में प्रशिक्षित नर्सें में दुनिया भर में जाकर काम कर रही हैं।

लोगों को अपने कुएं सरीखे माहौल से निकलना होगा। दुनिया बहुत बड़ी है, और इसके विशाल आसमान पर दूर-दूर तक उडऩे के सपने देखने होंगे, और उसके लायक अपने पंखों को मजबूत बनाना होगा। उन्हीं प्रदेशों में लोग बेरोजगारी का रोना रो सकते हैं जहां पर सरकारें अपने लोगों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुकाबले के लायक तैयार नहीं करतीं। आज यहां पर हमने दो मुद्दों को उठाया है, बाहर के कारखानों को हिन्दुस्तान लाना, और हिन्दुस्तान के कामगारों को अंतरराष्ट्रीय जरूरतों के लायक तैयार करना। इन दोनों के बीच की एक जरूरत और बनती है कि जो अंतरराष्ट्रीय ब्राँड भारत में बनना शुरू होंगे, उनको भी तो अपने कारखानों के लिए बहुत ही हुनरमंद और काबिल कामगार लगेंगे। इस तरह हिन्दुस्तान आज अंतरराष्ट्रीय ट्रेड वॉर, और गिरती आबादी जैसी आपदाओं के बीच संभावनाओं से लबालब देश है, देखते हैं कि कौन सा प्रदेश कितनी कल्पनाशीलता दिखाता है।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)

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