-विष्णुदेव मंडल-

पटना। रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था। कमोबेश बिहार के मुख्यमंत्री पर यह कहावत सटीक बैठती है। जब नालंदा, सासाराम और बिहार शरीफ में पुलिस प्रशासन दंगा रोकने के लिए संघर्ष कर रहे थे उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इफ्तार पार्टी में व्यस्त थे और नेपथ्य में दिख रहा था दिल्ली के लाल किले का दृश्य?
रामनवमी का जुलूस निकलने के बाद इन तीनों जिले में दंगा फसाद से वहां निवास कर रहे लोग चिंतित हैं। कहीं एक धर्म के लोग तो दूसरी जगह अन्य धर्म के लोग अपने घर छोडकर पलायन को विवश हो रहे हैं। जो कभी एक साथ रहते थे वहीं एक दूजे से खतरा महसूस कर रहे हैं।
ऐसा क्यों हुआ, इसके पीछे किसकी साजिश थी यह तो जांच का विषय है लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का लाल किले वाले बैकग्राउंड और इफ्तार पार्टी यह दर्शाता है कि सूबे के मुख्यमंत्री बिल्कुल ही संवेदनहीन हैं। उन्हें अपनी कुर्सी से ज्यादा किसी से प्यार नहीं है। खून चाहे किसी का भी बहे बिहार के लिए दुर्भाग्य ही माना जा सकता है। आपसी भाईचारे एवं सेकुलरिज्म की कहानी गढ़ने वाले नीतीश कुमार पर प्रधानमंत्री बनने का सपना इस कदर हावी है कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि बिहार में हो क्या रहा है और बिहार के लोगों से क्या अपेक्षा कर रहे हैं?

बिहार की विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी आफत में अवसर तलाश रही है। वह इस घटना को लेकर राज्यपाल से मिलती हैं और बिहार के मुख्यमंत्री को घेरती हैं लेकिन घटनास्थल पर जाकर लोगों को समझाने में रुचि नहीं ले रही। वह सिर्फ सवाल कर रही है। सही भी है यदि विपक्ष में है तो आलोचना तो करेंगे लेकिन जदयू के नेता और प्रवक्ता इस घटना का ठीकरा भाजपा के नेताओं पर फोड़ रहे हैं। जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार भाजपा पर हमलावर हं।ै वह देश के गृह मंत्री के ऊपर अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं। वह यह नहीं देखना चाहते कि आखिर स्थानीय प्रशासन दंगा रोकने में विफल क्यों साबित हो रहा है।
रामनवमी के जुलूस के बाद दंगा फसाद के बारे में पूर्व जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह, राष्ट्रीय लोक जनता दल के उपेंद्र कुशवाहा, लोजपा रामविलास के अध्यक्ष चिराग पासवान राजनीतिक एक्टिविस्ट प्रशांत किशोर सब के सब मौन धारण किए हुए हैं?
और तो और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव भी अपनेे घर आई नन्ही परी के साथ समय व्यतीत कर रहे हैं। महागठबंधन के भी अन्य घटक दल खामोश बैठे हुए हैं ऐसा लग रहा है कि उनके बोलने से कहीं वोट न खिसक जाए।
बहर हाल बिहार के निवासी वहां हो रहे दंगा फसाद से चिंतित हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने लक्ष्य की ओर मशगूल हैं।
(लेखक बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं)