
-धीरेन्द्र राहुल-

नदियों की सफाई और पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं से सरोकार रखने वाली संस्था ‘हम लोग’ के डॉक्टर सुधीर गुप्ता और डॉक्टर एलएन शर्मा के साथ रविवार को मण्डावरा में चम्बल नदी के किनारे एक पौधरोपण समारोह में भाग लेने का मौका मिला।
वैसे आजकल अखबारों का एक पृष्ठ पौधरोपण के फोटो से भरा रहता है। वैसे वृक्षों के अभाव में बढ़ती गर्मी से सारी दुनिया चिंतित है लेकिन हम लोग रस्म अदायगी से आगे नहीं बढ़ते।
पेड़ तो बरसात में हर जगह उगने को तैयार बैठे हैं, बस उसे भेड़, बकरियों और मवेशियों से बचा लो तो वह आसमान छू लेते हैं। पेड़ों को बड़ा करने के लिए लोहे के ट्री गार्ड बनाना एक महंगा सौदा है। लेकिन मैंने मण्डावरा में देखा। वहां के सरपंच मोहनलाल वर्मा ने ‘एक पंथ दो काज’ किए।

उन्होंने विलायती बबूलों से आच्छादित धरती को साफ कर उसकी बाड़ ( बागर ) बनाई और फिर खाली जमीन पर मनरेगा वर्कर से खाड़े खुदवाकर 200 पेड़ लगा दिए। पौधें ‘हम लोग’ संस्था ने उपलब्ध करवाए।
मण्डावरा हमारे परम मित्र अब्दुल सत्तार एडवोकेट का गांव है। जब तक वे जीवित थे, उनके साथ कई बार वहां जाने का मौका मिला। अब्दुल सत्तार के पिता नन्दाजी भी नेता थे लेकिन उस समय सड़कों का उतना विकास नहीं हुआ था। नन्दाजी के निमंत्रण पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया किसी समारोह में भाग लेने मण्डावरा आए तो रात्रि विश्राम उन्होंने गांव में ही किया था। आज तो कोई मुख्यमंत्री गांव में रात्रि विश्राम करे, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।

मण्डावरा, नीमोदा उजाड़ और बूढ़ादीत के चम्बल के आसपास का समूचा इलाका ऊजाड़ा कहा जाता था। लेकिन इस बार हम लोग मुम्बई- नई दिल्ली एक्सप्रेस-वे से होकर मण्डावरा के समीप उतरें और वहीं से एक्सप्रेस-वे पर चढ़कर कराड़िया ( बारां- कोटा रोड ) पर उतरकर तीन घण्टे में कोटा लौट आए।
पहले मण्डावरा जाने और कोटा लौटने में पूरा दिन लगता था। जाहिर है कि ऊजाड़ा का ऊजाड़ा ( अलग थलग, निर्जन स्थान, सन्नाटा ) अब खत्म हो रहा है।

मण्डावरा सौभाग्यशाली है, जो एक्सप्रेस- वे का टोल नाका गांव के मुहाने पर ही बनाया गया है। आने वाले दिनों में सुल्तानपुर, दीगोद, इटावा, बड़ौद, मांगरोल के वाहन चालक दिल्ली- मुम्बई एक्सप्रेस-वे का सफर यहां से भी शुरू करेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)
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