भीड़ ने एक बार फिर दिया न्यौता मौत को…

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प्रतीकात्मक फोटो

-सुनील कुमार Sunil Kumar

भारत के सबसे बड़े घरेलू क्रिकेट टूर्नामेंट, आईपीएल में बेंगलुरू की टीम के फाइनल जीतने के बाद वहां के स्टेडियम में एक समारोह किया जा रहा था, और उसमें पहुंची अंधाधुंध भीड़ में हुई भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई, और दर्जनों लोग जख्मी हो गए। एक ही दिन पहले मैच का फाइनल हुआ था, और अगले ही दिन विजय जुलूस और स्टेडियम का जश्न कर्नाटक क्रिकेट संघ की तरफ से रखा गया था। इसमें सरकार भी शामिल हो गई थी, लेकिन एक दिन के भीतर इतनी बड़ी जीत के जश्न में इतनी भीड़ के पहुंच जाने का अंदाज शायद किसी को नहीं था, इसलिए ऐसी भगदड़ को रोकने की कोई तैयारी भी नहीं थी। इस बारे में भाजपा का यह कहना है कि सीएम और डिप्टी सीएम ने जोर और दबाव डालकर अगले ही दिन यह जुलूस निकलवाया, और कुल 12 घंटे की तैयारी थी, जो कि सरकार ठीक से नहीं कर नहीं पाई, और 11 जिंदगियां चली गई। इस बारे में सच हो सकता है कि आज बेंगलुरू हाईकोर्ट में होने जा रही, या हो चुकी सुनवाई में सामने आए, लेकिन यह तो तय है ही कि किसी प्रदेश में और जिले में हो रहा कोई कार्यक्रम पूरी तरह शासन-प्रशासन के अधिकार क्षेत्र में होता है, और अगर प्रशासन सहमत न हो, तो वह किसी भी कार्यक्रम को रद्द भी कर सकता है। फिर इतना बड़ा कार्यक्रम तो बिना बड़ी पुलिस तैयारी के होता भी नहीं है, इसलिए सरकार अपनी जिम्मेदारी से हाथ नहीं झाड़ सकती।

भारत में क्रिकेट को लेकर दीवानगी का हाल यही है कि यह धर्म के तुरंत बाद सबसे बड़ा संप्रदाय है, और कई क्रिकेट खिलाडिय़ों को ईश्वर की तरह पूजा जाता है। कुछ लोग हर क्रिकेट मैच को जाकर या टीवी पर देखने को अपनी जिंदगी का मकसद बना लेते हैं। लोग काम-धाम छोडक़र मैच देखते बैठे रहते हैं, और ऐसे में बरसों बाद बेंगलुरू की टीम ने आईपीएल जीता था, तो यह उत्साह असाधारण नहीं था। क्रिकेट भारत में धार्मिक आस्था के टक्कर का मामला है। जिस तरह कुछ महीने पहले कुंभ में हुई भगदड़ में दर्जनों मौतें हुईं, और उन्हें कुछ रहस्यमय कारणों से, कुछ रहस्यमय वजहों से कई दिन तक उजागर नहीं किया गया, कम से कम बेंगलुरू में शहरी इलाका होने की वजह से वैसा कुछ नहीं हुआ, और राज्य सरकार ने तुरंत ही मौतों के आंकड़े जारी कर दिए। कुंभ से परे देश में आध्यात्मिक कार्यक्रमों में भी भगदड़ में दर्जनों मौतों की घटनाएं हो चुकी हैं, और ऐसे में यह देश साबित करने पर उतारू हो जाता है कि उसकी आबादी बहुत अधिक है। आबादी अधिक है, और सार्वजनिक नियमों के लिए सम्मान शून्य सरीखा है। लोग भीड़ के हर मौके पर अपने अधिकार, और दूसरों की जिम्मेदारी को मुद्दा बनाकर चलते हैं। नतीजा यह निकलता है कि कमजोर शासन-प्रशासन, और बेकाबू भीड़ का जोड़ घातक साबित होता है। भारत में भगदड़-मौतों को लेकर चार दिन खबरें बनती हैं, और पांचवें दिन से फिर किसी दूसरी जगह पर वैसी ही भगदड़ की नौबत बनने लगती है, और अगर लोगों की मौतें नहीं होती हैं, तो इसकी वजह शासन-प्रशासन का इंतजाम नहीं रहता, ऊपर स्वर्ग-नर्क में जगह खाली नहीं रही होगी, इसलिए भीड़ को ऊपर ले जाने को नहीं आए होंगे। कुंभ के ही बारे में यूपी सरकार की तरफ से बड़े-बड़े दावे किए गए थे कि भीड़ के इंतजाम में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल किया जा रहा है। जब असली भगदड़ हुई, तो वह इंतजाम धरा रह गया। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस इंसानी बेवकूफी से मात खा गया, और बड़ी संख्या में लोग मारे गए जिनके बारे में यह भी चर्चा रही कि कई लापता लोग गंगा में बह गए, और किसी खाता-बही में उनका नाम दर्ज नहीं हुआ।

भीड़ के बारे में हमेशा से यह कहा जाता है कि उसमें सिर बहुत होते हैं, दिमाग एक भी नहीं होता। और इसके लिए किसी धार्मिक आयोजन, या क्रिकेट जैसे विजय जुलूस की जरूरत नहीं रहती, देश के अधिकतर शहरों में ट्रैफिक जाम देखकर भी समझा जा सकता है कि भारत के अधिकतर हिस्से में लोग बहुत तेजी से, पहला मौका मिलते ही इंसानों के बजाय भीड़ का एक सिर बन जाते हैं। सोशल मीडिया पर तैरती उत्तर-पूर्व की एक तस्वीर पता नहीं सच है या नहीं कि वहां एक शहर में ट्रैफिक चौराहे पर बहुत लंबी कतार सडक़ के अपने आधे हिस्से में इंतजार कर रही है, और सामने से आने वाली ट्रैफिक वाला सडक़ का आधा हिस्सा पूरी तरह खाली है। अब अगर यह तस्वीर सच है, तो वह हिस्सा देश की बाकी संस्कृति से बिल्कुल अलग है। आम हिन्दुस्तान का हाल तो यह है कि अगर रेलवे क्रॉसिंग पर भी लोगों ने डिवाइडर के गलत तरफ भी जाकर अगर पूरा ट्रैफिक जाम करके नहीं रखा, तो उन्हें चैन नहीं पड़ता। और क्रॉसिंग खुलने पर किस तरह दोनों तरफ से लोग झपटते हैं, यह देखते ही बनता है। इसलिए ऐसे देश में क्रिकेट की इतनी बड़ी जीत, और विराट कोहली की आंखों के खुशी के आंसू देखने के बाद अगर टीम का शहर 11 लोगों की कुर्बानी दे रहा है, तो यह बहुत बड़ा हादसा नहीं मानना चाहिए, क्योंकि वहां मौजूद दीवानों की भीड़ को शायद दसियों हजार या लाखों में रही होगी।

इस देश की सार्वजनिक संस्कृति का यह हाल चलते हुए जब किसी भीड़ भरे आयोजन में मौतें न हों, तो उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए। मौतों को रोकना इंसानों के बस में तो है नहीं, और किसी भी तरह की भीड़ के सामने प्रशासन बड़ी रफ्तार से लुंज-पुंज हो जाता है, आत्मसमर्पण कर देता है। भारत की आम जनता के मिजाज में सार्वजनिक जीवन के तकाजे के लिए जो भारी-भरकम हिकारत बैठी हुई है, वह हमेशा ही जानलेवा रहती है, किसी-किसी मौके पर मौत अपना असर नहीं दिखा पाती। अभी इस बुरे हादसे के बीच सबसे अच्छी चीज यही हो सकती है कि आरसीबी टीम को जो 20 करोड़ रूपए का ईनाम आईपीएल की तरफ से मिला है, उसमें से मरने वालों के परिवार अगर जरूरतमंद हैं, तो उन्हें एक अच्छा खासा पैसा इसमें से देना चाहिए, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की जिम्मेदारी तो बनती ही है, साथ ही बीसीसीआई जैसी अरबपति संस्था को भी क्रिकेट से जुड़े इस हादसे के बाद अपनी जिम्मेदारी निभाना चाहिए। फिलहाल तो पूरे देश की सरकारों को भीड़-नियंत्रण की इस असफलता से सबक लेना चाहिए, और देश में ऐसी कोई व्यवस्था रहनी चाहिए कि ऐसे मामलों की रिपोर्ट बाकी हर जिले के साथ भी बांटी जाए, ताकि दूसरे लोग खुद ठोकर खाए बिना सबक ले सकें।

(देवेन्द्र सुरजन की वॉल् से साभार)

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