शहरों में पालीथीन-प्लास्टिक का कहर बरपा?

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-सरकार अपना काम कर चुकी, जनता भी तो कुछ करें!

-बृजेश विजयवर्गीय

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बृजेश विजयवर्गीय

आमतौर पर वर्षा ऋतु में शहर और कस्बों में दरिया बनी सड़कों पर पानी देखकर बाढ़ बोल देते हैं और प्रशासन और समाचार पत्र वाले भी इस औसत वर्षा को बाढ़ बता देते हैं। जनता भी बाढ़ आई बाढ़ आई चिल्लाने लगती है। जबकि बाढ़ नदियों के माध्यम से आती है ना कि नालियों के द्वारा। कोटा शहर जो चंबल के किनारे बसा है यहां पर बाढ़ आने की संभावना शून्य है, यहां आदर्श व्यवस्था है। क्योंकि चंबल नदी के ऊपर बने हुए चार बांधों से पर्याप्त मॉनिटरिंग और ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा एक-एक क्यूसेक पानी को निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही छोड़ा जाता है। हां चंबल की डाउनस्ट्रीम के बाद जो पानी चारों तरफ फैला है उसे बाढ़ कहे तो कोई आपत्ति नहीं है‌।

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बात है जहां जल निकासी का प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम नहीं होने के कारण एवं नाली और नालियों में पॉलीथिन प्लास्टिक का कचरा उनको जाम किए हुए है। इसी कारण नल और नालियों का पानी सड़कों पर दरिया की तरह बहने लगता है और इसके लिए यदि कोई दोषी है तो वह सिर्फ नागरिक हैं। नागरिक अपनी सुविधा छोड़ने को तैयार नहीं है। पॉलीथिन और प्लास्टिक को इस्तेमाल करने के बाद कचरे में फेंक देते हैं और यही कचरा कहर बनकर तथा प्रतीत बाढ़ का स्वरूप ले लेता है। अभी जिस प्रकार के चित्र बारां,बूंदी और कोटा शहर के दिखाए दे रहे हैं कमोबेश यही स्थिति हर कस्बे और गांव तक की हो गई है। यह अलग बात है कि नियंत्रण के लिए समस्त कानून बने और प्रतिबंध के बावजूद भी पॉलीथिन और प्लास्टिक का कचरा हर जगह बढ़ता जा रहा है। इसके लिए हम केवल नगर पालिकाओं और सरकारी व्यवस्था को ही दोषी नहीं ठहरा सकते। सरकार अपना काम कर चुकी है। कानून बनाकर और प्रतिबंध लगाकर बाकी काम जनता को करना है कि वह पॉलिथीन का इस्तेमाल न करे। भले ही सरकार पॉलीथिन प्लास्टिक इंडस्ट्रीज को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करती हो। यदि जनता को बचना है तो स्वयं ही जागरूक होना पड़ेगा। सरकार अपने कर्तव्य का पालन आपदा प्रबंधन, बाढ़ राहत,ड्बने वालों को मुआवजा दे ही रही है फिर क्या सरकार की जान ली जाए?
इतना ही नहीं सरकार की मेहरबानी से बिना किसी ख़र्च के नदियों में से रेत उलीच कर और पत्थरों का खनन के बाद जलाशयों की गहराई भी बढ़ा दी है। अब फिर भी नदियां उफान मारे तो सरकार क्या करें? बार बार सूखे और पानी का रोना रोते-रोते इस बार प्रकृति ने भी कृपा बरसाई है तो उसका अभिनन्दन होना चाहिए। शहरों में तो जगह-जगह तालाबों पर अतिक्रमण हो गए तो खेतों ने ही ताल तलैया का रूप धारण कर लिया। हम सरकार पर नाराज होने के पहले सोचें कि उन्होंने जन सुविधा के लिए जगह-जगह सीसी रोड बना दी तब किसी ने यह नहीं बताया कि सीसी रोड से वर्षा का जल जमीन में नहीं जा पाता। फिर भी पानी है कि मानता नहीं जगह-जगह गड्ढे बना लेता है। कई जगह से यह अच्छे समाचार आए हैं कि जनता ने खुद ही गड्ढ़ों को बढ़ाने का निर्णय किया और अखबारों में फोटो भी छपे हैं कि उन्होंने स्वयं के बूते गड्ढ़ों को भर भी दिया तो इसी तरह की जागरूकता की हर जगह आवश्यकता है।
-बृजेश विजयवर्गीय स्वतंत्र पत्रकार, सदस्य बाढ़ सुखाड़ विश्व जन आयोग।

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