-वरदान सिंह हाडा-

झालावाड़ जिले में 4 अप्रैल को हुए लोमहर्षक, जघन्य हत्याकांड जिसमें ख्यातनाम शिक्षक और कवि शिवचरण सेन शिवा को अपने मूल्यवान प्राणों से हाथ धोना पड़ा जिसमें झालावाड़ पुलिस ने अथक परिश्रम करके 48 घण्टों में हत्यारों (नाबालिग ) को धर दबोचा।
इतनी तत्परता दिखाकर केस हल करने के लिए धन्यवाद पुलिस…
पर सावधान शिक्षकों…
खासकर सरकारी विद्यालय के शिक्षक जहां उन्हें पढ़ाने के लिए ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्र -छात्राएं मिलते हैं जो कि स्वभावतः भोले होने चाहिए पर अब वो बीते दिनों की बात लगती है ।
मोबाइल ने न केवल ग्रामीण बच्चों बल्कि शहरी बच्चों का भोलापन भी हर लिया है।
बात यहां शिक्षकों को सावधान करने की इस कारण कही है कि अनुशासन बनाए रखना प्रत्येक शिक्षक का कर्तव्य है भले ही इस कर्त्तव्यपालन की क़ीमत उसे अपने प्राणों से ही क्यों न चुकानी पड़े।
अब भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए क्या शिक्षकों को विद्यालय में अनुशासन बनाए रखने की अपनी नैतिकता से भरी जवाबदेही छोड़नी होगी…?
अगर हां तो इसका परिणाम क्या होगा सोच लीजिए..??
और अगर नहीं तो इसका परिणाम तो हम अभी भुगतकर बैठे हैं।
अब इस समस्या का समाधान क्या हो…?
सोचिए ज़रा…
मेरी समझ से निजी विद्यालयों की भांति मासिक PTM (पेरेंट टीचर मीटिंग) सरकारी स्कूलों में भी अनिवार्यतः होनी चाहिए जिसमें विद्यार्थी के बारे में उसके माता पिता को भी पता लगते रह सके।
दूसरी बात ये कि यदि कोई बालक निरंतर उद्दंडता पर उतारू है तो इसके लिए समस्त विद्यालयी स्टॉफ को ग्रामवासियों के सहयोग से ऐसी समस्या का निस्तारण करने का प्रयास करना चाहिए।
तीसरी और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमें (शिक्षक समाज, विद्यालय प्रशासन को) बात ज्यादा बिगड़े उसके पहले सम्बन्धित छात्र के खिलाफ़ पुलिस में लिखित/ऑनलाइन शिकायत दर्ज़ करवानी चाहिए।
हालांकि नाबालिगी के चलते हत्या जैसे संगीन अपराध को कारित कर कानून शिकंजे से बचने की राह आसान लगती है किंतु हमें भारतीय कानून व्यवस्था में भरोसा बनाए रख कर शिक्षकों की सुरक्षा के बारे में भी अति गम्भीरता से सोचना होगा…
वरना वो दिन दूर नहीं जब सरकारी विद्यालय अपराध की प्रारम्भिक प्रयोगशाला बन कर रह जाएंगे और यदि ऐसा हुआ तो…?