सवालों के घेरे में दो एनकाउंटर

-देशबन्धु में संपादकीय 

 

उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में हुए दो एनकाउंटर सवालों के घेरे में इसलिये आ गये हैं क्योंकि दोनों को लेकर गहरा शक किया जा रहा है कि ये फर्जी हैं। कुछ आगे-पीछे हुए ये दोनों एनकाउंटर जिस तरीके से हुए हैं वे दोनों ही गहन जांच की ज़रूरत बतलाते हैं- चाहे वे दो अलग-अलग राज्यों में ही क्यों न हुए हों। संयोग यह भी है कि दोनों ऐसे राज्य हैं जहां एनकाउंटर संस्कृति पनपती रही हैं और दोनों राज्यों में इसका लम्बा इतिहास रहा है। उप्र के सुल्तानपुर में हुई डकैती कांड मामले में अनुज प्रताप सिंह का एनकाउंटर हुआ है। वहीं महाराष्ट्र में अक्षय शिंदे नामक उस शख्स का, जिस पर बदलापुर के एक स्कूल में मासूम बच्चियों के साथ यौन शोषण का आरोप था। उसे तलोजा जेल से ले जाया जा रहा था। पुलिस का दावा है कि उसने पुलिस की गाड़ी में एक पुलिस इंस्पेक्टर से रिवाल्वर छीन ली और उन पर फायरिंग कर दी। इसमें तीन पुलिस वाले घायल हो गये। उसे नियंत्रित करने के लिये पुलिस को भी जवाबी फायरिंग करनी पड़ी जिससे वह मारा गया।

दोनों ही एनकाउंटर कई कारणों से संदिग्ध माने जा रहे हैं। संयोगवश, दोनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं जिनका एनकाउंटरों के प्रति अनुराग सर्वज्ञात है। सांसद एवं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस घटना की निंदा करते हुए जांच की मांग की है। उल्लेखनीय है कि 28 अगस्त को सुलतानपुर के ठठेरी बाजार में भरत सोनी की सराफा दूकान में 5 लोगों ने डकैती की थी जिनमें अनुज भी शामिल था। यह ईनामी बदमाश था जिस पर एक लाख रुपये का पारितोषिक घोषित किया गया था। पुलिस के अनुसार अनुज एवं उसका एक साथी उन्नाव जिले के अचलगंज इलाके से जा रहे थे। लखनऊ एसटीएफ़ को इसकी सूचना मिली थी। इस मुठभेड़ में अनुज मारा गया जबकि उसका साथी फ़रार हो गया। घायल अनुज को जिला अस्पताल ले जाया गया जहां उसे मृत घोषित किया गया। वैसे बता दें कि इसके पहले इसी डकैती में शामिल दो और लोगों के साथ एसटीएफ़ की मुठभेड़ हुई थी। उसमें मंगेश यादव नामक आरोपी की मौत हो गयी थी। एक और आरोपी अजय यादव के पैर में गोली लगी थी जिसका इलाज जिला अस्पताल में चल रहा है। मंगेश के एनकाउंटर पर भी अखिलेश ने सवाल उठाये थे।

दूसरी ओर महाराष्ट्र में हुए एनकाउंटर की निंदा नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी की सुप्रिया सुले समेत कई नेताओं ने करते हुए इस पर गहन संदेह व्यक्त किया है। सुप्रिया के अनुसार प्रदेश में कानून-व्यवस्था का पूरी तरह से ठप हो जाना ही यह एनकाउंटर दर्शाता है। कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने इसे ‘प्रदेश के लिये काला दिन’ निरूपित किया है। उन्होंने कहा है कि अब उन्हें यकीन नहीं रह गया है कि इस कांड के सही आरोपियों तक कभी भी पुलिस पहुंच पायेगी। शिवसेना उद्धव गुट के आदित्य ठाकरे ने भी इसी तरह के आरोप लगाये हैं। पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख ने पूछा है कि जब शिंदे के हाथों में हथकड़ी लगी थी तो उसने पिस्तौल कैसे छीनी और फायरिंग किस प्रकार की? विपक्षी नेताओं का साफ कहना है कि शिंदे का एनकाउंटर यौन शोषण के सबूतों को नष्ट करने के लिये किया गया है। बताया जाता है कि जिस स्कूल में शिंदे ने दुष्कर्म को अंजाम दिया वह एक भाजपा नेता का है। माना जा रहा है कि उस मामले में और भी लोग शामिल हो सकते हैं जिन्हें बचाने के लिये यह किया गया है। स्वयं शिंदे के परिवार वालों ने कहा है कि अक्षय को इसलिये मारा गया है ताकि असली अपराधियों को बचाया जाये। उन्होंने जांच होते तक शव को लेने से इंकार कर दिया है। परिवार का यह भी कहना है कि पिछले सप्ताह उसे बेरहमी से मारा भी गया था।

दोनों ही एनकाउंटरों के बारे में जिस तरह की शंकाएं जाहिर हो रही हैं, उसमें ज़रूरी है कि इन सभी की गहन जांच हो। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बदलापुर एनकाउंटर की परिस्थितियों पर संदेह जताते हुए कहा है कि पहली नजर में गड़बड़ी लग रही है। दरअसल दोनों एनकाउंटर बहुत ही गम्भीर मामले हैं। अपराधियों को कोर्ट की बजाय सीधे पुलिस वालों के हाथों ही सजा दिलाने का चलन ख़तरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। स्वयं सरकारों की ओर से इस बात को प्रोत्साहित किया जाने लगा है। यह किसी भी सभ्य समाज के लिये अपराधों पर नियंत्रण पाने का नितांत अशोभनीय तरीका है जो संविधान सम्मत तो है ही नहीं।

दोनों राज्यों की सरकारों को चाहिये कि इन एनकाउंटरों की उच्चस्तरीय जांच करें। कानून के राज का भी यही तकाज़ा होता है कि एक न्यायिक प्रक्रिया के अंतर्गत मामलों का निपटारा हो, न कि सड़कों-चौराहों पर आरोपियों को सरेआम उड़ाकर उसे पुलिस एनकाउंटर का नाम दिया जाये। यह आम बात हो गयी है और सभी जानते हैं कि इस प्रकार के एनकाउंटर मामलों पर पर्दा डालने के उपाय होते हैं। किसी भी अपराध में संलिप्त लोगों को बचाने के लिये किसी निरीह की बलि ली जाती है। इससे सच्चाई बाहर आने का रास्ता हमेशा के लिये बन्द हो जाता है। इसके साथ ही अपराधियों द्वारा किये गये अन्य अपराधों का भी पर्दाफाश नहीं होता। एनकाउंटर संस्कृति कानून के ख़िलाफ़ है।

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