ऊपर वाले की लाठी जब पड़ती है तो आवाज नहीं होती

जैसे लोहा जल पर तैर नहीं सकता वैसे ही मूर्ख की संगत से कोई लाभ नहीं मिल सकता। स्वाति नक्षत्र की बूंद जब केले के पत्ते पर पड़ती है तो वह कपूर बन जाता है। सांप के मुंह में पड़ती है तो विष बन जाता है। सीप में पड़ती है तो मोती बन जाती है। जैसी संगत होती है वैसी रंगत चढ जाती है

-बी के प्रभा मिश्रा-

दरिए ने झरने से पूछा, तुझे समंदर नहीं बनना क्या? झरने ने बड़ी नम्रता से कहा बड़ा बनकर खारा हो जाने से अच्छा है छोटा रहकर मीठा ही रहूं। जी हां आज का इंसान बड़े-बड़े पद, ओहदे पर विराजमान है पर उसके व्यवहार से कर्मों से कहीं कोई इंसानियत नहीं झलकती सिर्फ नाम पद पोजीशन मनुष्य की बड़प्पन की मापदंड नहीं है।

मानवता आज कराह रही है, दया करुणा दम तोड़ रही है क्योंकि आज के so called बड़े लोग कहने को बड़े रह गए हैं पर उनको ओछी हरकतें उन्हें बोना बना रही है – उनमें ईर्ष्या, द्वेष,छल कपट रोम-रोम में भरा हुआ है। जिसको यह काट लेता है वो मनुष्य ना जी पता है ना ही मर पाता है। क्योंकि यह लोग ऐसे चाटूकारों से घिरे हुए रहते हैं जो इनके जैसे पट्टी पढ़ाते हैं ये वैसे ही कर्म करते हैं। अपनी सोच समझ विवेक का उन्होंने पहले ही गला घोट दिया होता है। ये भूल जाते हैं ऊपर वाला सब देख रहा है फल तो तुमको ही झेलना पड़ेगा, क्योंकि ऊपर वाली की लाठी जब पड़ती है तो आवाज नहीं होती है पर इंसान कई – जन्मों की कड़ी सजा के रूप में भुगतता है। आज किसी को वो गिराएगे, रुलाएंगे, उसके हक को मारेंगे तो एक दिन आपको भी ऊपर वाला हिसाब लेगा। हम बातें बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन व्यवहारिक जीवन में उनसे कोसों दूर होते हैं।

बस मेरा नाम मेरी पोजीशन बनी रहे। हर कोई मेरा गुलाम बन कर रहे। वरना ये तो ऐसे ऐसे हथकंडे अपनाते हैं कि वहां मानवता भी शर्म से आत्महत्या कर लेती है। इनकी बातें सुनो लोगों को आदेश सुनो मगर वास्तविकता में उन उन कही हुई बातों से कोसों दूर होते हैं। बस हमारे हाथ में लाठी है तो भैंस भी हमारी है। साधना का श्रेष्ठ कर्मों का इनके जीवन में लेश मात्र भी अंश नहीं। बस साधन चाहिए, बड़ी-बड़ी गाड़ियां, आगे पीछे चापलूसी करने वाले 10-20 लोग चाहिए यही लोग इन्हें ले डूबेंगे एक दिन ये इन्हें अपनी समझ में नहीं आ रहा है लेकिन जब तक समय आएगा तब तक बहुत बहुत बहुत देर हो चुकी होगी।

खून के आंसू रोएगे, तड़पेगे, पर उस समय कोई आस पास नहीं होगा जैसी करनी वैसी भरनी। मूर्ख संग ना कीजिए लोहा जली ना तिराई कदली सीप भुजंग मुख, एक बूंद लेंहा पाई। कहा गया मूर्ख की संगत नहीं करनी चाहिए उससे दुख, समस्या, अशांति ही मिलती है। जैसे लोहा जल पर तैर नहीं सकता वैसे ही मूर्ख की संगत से कोई लाभ नहीं मिल सकता। स्वाति नक्षत्र की बूंद जब केले के पत्ते पर पड़ती है तो वह कपूर बन जाता है। सांप के मुंह में पड़ती है तो विष बन जाता है। सीप में पड़ती है तो मोती बन जाती है। जैसी संगत होती है वैसी रंगत चढ जाती है।

परमात्मा कहते हैं मेरे संग रहो मेरी श्रीमत पर चलो तो मैं तुम्हें भवसागर से पार ले चलूंगा, स्वर्ग की बादशाही दूंगा। पर इन जहरीले इंसानों के लिए तो अभी ही स्वर्ग है। इन्हो जो चाहिए वह अभी ही मिल रहा है उनकी सोच वो है कल किसने देखा आज मौज कर लो । बुद्धि पर मोह का मैं, मेरा का पर्दा पड़ा है मैं खुदा हूं, ये इनकी सोच है। बड़ा बनना भाई तो अपने आप को बड़ों जैसा गुणों से भरपूर करो। लोग अपने आप सम्मान देंगे इज्जत करेंगे। लकीर खींची हुई है उसे छोटी करना है बिना मिटाए क्या करेंगे उसके आगे बड़ी लकीर खींच दो अपने आप छोटी हो जाएगी। लेकिन वो कुबत उनमें है कहां। कहावत रही है कि बड़ी मछली छोटी को खा लेती है, मगर एक दिन ऐसा आएगा कि कोई घड़ियाल आएगा और उन सब मछलियों को खा जाएगा और वह घड़ियाल होगा महाकाल शिव का तांडव हर एक को अपने कर्मों के अनुसार फल भुगतना ही पड़ेगा।

अभी देर नहीं हुई है मगर बहुत देर भी नहीं अब जाग जाओ जहरीले इंसानों। ये दुनिया अच्छे लोगों से भरी है इसलिए चल रही है पर वह अच्छे विद्वान लोग बिखरे हुए हैं जिस दिन वह एक हो जाएंगे एक हो जाएंगे प्रलय होगी सत्य की प्रचंड जीत होगी। और जिन्होंने अन्याय किया वो कहीं के नहीं रहेंगे। इसलिए मैं, मेरे के चक्कर को छोड़ो। जिसने मेरा मेरा किया वह मर गया। जिसने तेरा दिया कहा वह तर गया। फिर मत कहना किसी ने समझाया नहीं बताया नहीं। मारो अहंकार को रावण को सच्ची दिवाली मनाओ

बी के प्रभा मिश्रा
शांतिवन

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments