
– केबी नंदवाना-
(अध्यक्ष चम्बल संसद)
कोटा। शहर में बिगड़ते पर्यावरण और पेड़ों को बचाने संबंधी समस्याओं को लेकर चम्बल संसद के प्रतिनिधि मण्डल ने जिला कलेक्टर और प्रशासनिक अधिकारियों से मिल कर पेड़ों को बचाने केलिए सुझाव दिए।
गत दिवस राष्ट्रीय जल बिरादरी की चम्बल संसद के प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि शहर में विकास कार्यो तथा प्रशासन की अनदेखी के कारण बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा गया या मरने के लिए सीमेंट, कंकरीट ,इंटरलॉकिंग में दबा कर छोड़ दिया। अनावश्यक छंटाई व कटाई के कारण पेड़ खत्म होते जा रहे है जिससे तापमान में वृद्धि होने और वातावरण में ऑक्सीजन की कमी होने पर चिंता जताई। संसद के समन्वयक बृजेश विजयवर्गीय ने बताया कि चम्बल संसद के अध्यक्ष केबी नंदवाना, उपाध्यक्ष अनिता चौहान,मुकेश कुमार सुमन, भवानी शंकर ,कोटा एनवायरमेंटल सेनीटेशन सोसायटी,तरूण भारत संघ,बाघ- चीता मित्र आदि के सदस्यों ने अतिरिक्त जिला कलेक्टर राजकुमार सिंह से भेंट कर जिला कलेक्टर के नाम ज्ञापन दिया। प्रतिनिधि मण्डल ने बताया कि
शहर में अनेक स्थानों पर विकास के नाम पर ऑक्सीजन के स्त्रोत पेड़ों की बर्बादी का रोकने के लिए हस्तक्षेप किया जाए क्योंकि शहरों का सामान्य तापमान खतरनाक 46- 48 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाता रहा है। विषय की गंभीरता को समझा जाए।क्या हम 50 डिग्री सेल्सियस तक इसी साल जाना चाहते है?
विकास के नाम पर तथा अनेक जगह अनावश्यक पेड़ों की कटाई की जा रही है। पुलिस,नगर निगम,नगर विकास न्यास,वन विभाग और पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण मंडल सभी मूक दर्शक बने हुए है। प्रशासनिक अमले के पास पेड़ काटने व नष्ट करने के सैकड़ों बहाने है लेकिन पेड़ों को बचाने का कोई प्रयास नहीं है जबकि नगर पालिका अधिनियम में पर्यावरण बचाने के प्रावधान मौजूद है। पिछले दो साल में ही शहर के आईएल परिसर राजीव गांघी स्कीम,सड़कों के किनारे, कॉलोनियों आदि में हजारों पेड़ों को नष्ट कर दिया गया या सीमेंट कंकरीट की भेंट चढ़ा कर मरने के लिए छोड़ दिया गया। कई जगह आग लगा कर मारा जा रहा है इन पर किसी का नियंत्रण नहीं है। विशेषज्ञों का अनुमान है लिए शहर में पिछले दो वर्षो में ही एक लाख से अधिक पेड़ों की बलि चढ़ चुकी है। नए पौधारोपण कब पेड़ बनेंगे कुछ नहीं कहा जा सकता, महोदय मौजूदा पेड़ों को बचाने की सख्त जरूरत है। शहर में पेड़ों के लगने की गुंजायश ही समाप्त हो रही है। कहीं खाली जगह नहीं है जहां छूटी है तो तुरंत सीमेंट , कंकरीट व डामर से पाट दी जाती है।
पर्यावरण प्रेमियों का मानना है कि कई लोग विकास की आड़ में अपना उल्लू सीधा कर रहे है। सरकार का कोई विभाग पेड़ों को बचाने की जिम्मेदारी नहीं निभा रहा। अधिकांश स्थानों पर पेड़ों को अनावश्यक काटा जा रहा है। छांटने के नाम पर भी पेड़ों का संतुलन बिगाड़ कर उन्हें गिरने के लिए छोड़ दिया जाता है। हाल ही में पुराने परिवहन कार्यालय तथा स्टेश रोड,एमबीएस अस्पताल परिसर, मेडिकल कॉलेज परिसर में पेड़ों को काटने का मामला जानकारी में आया है।
अनेक पर्यावरणविदों ने भी कहा कि कोटा समेत सभी शहरों का तापमान निरंतर बढ़ता जा रहा है जो कि ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहा है साथ ही शहर में प्रदूषण के स्तर को भी। इन लोगों ने सकारात्मक सुझाव भी दिए जिससे पेड़ों को बचाया जाना चाहिए। प्रबुद्ध नागरिकों ने चिंता जताते हुए कहा कि
संबंधित विभागों को पेड़ों के प्रति संवेदनशीलता बरतने का आदेश जारी करे या कठोर कार्रवाई करावें।शहर में कई स्थानों पर नए पौधारोपण के लिए जगह नहीं मिल रही है। ऐसी सूचनाऐं आ रही है। जिले में एवं कोटा शहर में भी सड़कों के किनारे पर सीमेंट कंकरीट की अनावश्यक परतें नगर विकास न्यास और नगर निगम तथा सार्वजनिक निर्माण विभाग ने विकास कार्यों,सडकों के निर्माण आदि के नाम पर बिछा दी है जिससे पुराने पेड़ सूख कर खत्म हो गए या मर गए। जो नहीं काट सके उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया।शहर में ऐसे दृश्य हर कहीं देखे जा सकते है। इससे हरियाली खत्म हो रही है और शहर का तापमान भी बढ़ रहा है। पूर्व में भी कई बार प्रशासन को विभिन्न माध्यमों से अवगत कराया गया है। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

















