
#सर्वमित्रा_सुरजन
बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में बुधवार को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर (आरसीबी) का स्वागत कार्यक्रम एक बड़े हादसे का शिकार हो गया। एक तरफ स्टेडियम के भीतर जश्न चल रहा था और दूसरी तरफ स्टेडियम के बाहर भारी भीड़ उमड़ी थी, जिसे संभालने में पुलिस नाकाम रही और नतीजा भगदड़ के रूप में सामने आया। इस हादसे में 11 लोगों की जान चली गई। बताया जा रहा है कि 30-35 हजार की क्षमता वाले स्टेडियम में समाने के लिए करीब ढाई-तीन लाख लोग आ गए थे। इस घटना ने एक बार फिर भारत में बड़े आयोजनों में भीड़ प्रबंधन की गंभीर समस्या को उजागर किया है। इससे पहले इसी साल महाकुंभ, नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन और उससे पहले हाथरस में ऐसी ही भगदड़ें हुई थीं, जिनमें बड़ी संख्या में मौतें हुईं। इन मौतों का सही आंकड़ा कभी सामने नहीं आता, कभी यह पता नहीं चल पाता कि दोषियों की शिनाख्त हुई या नहीं, उन्हें सजा मिली या नहीं और न ये पता लगता है कि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कोई नीति बनाई जाएगी या नहीं। अगर ऐसा होता तो हर दो-चार महीने में भगदड़ के हादसे नहीं होते।
दरअसल हिंदुस्तान में आम आदमी की जान की कोई कीमत ही नहीं रह गई है। बाढ़, बारिश, लू, ठंड, कुपोषण, इलाज न मिलना, सड़क हादसे, भगदड़ वजह कोई भी हो सकती है, लेकिन हर साल ऐसे ही किसी बहाने की आड़ में सैकड़ों जिंदगियां अकाल मौत का शिकार होती हैं। ऐसी मौतों पर सरकारों को कितना अफसोस होता है, यह तो कहा नहीं जा सकता, अलबत्ता इन पर राजनीति खूब होती है। शायद इसलिए इन्हें रोकने की कोई कोशिश भी नहीं होती। वर्ना बाढ़, बारिश, गर्मी सबकी भविष्यवाणी पहले से मौसम विभाग कर देता है, तो सरकारें उस हिसाब से व्यवस्था कर सकती है ताकि लोगों को कम से कम तकलीफ हो। इसी तरह अस्पतालों, सड़कों, सार्वजनिक स्थलों पर व्यवस्था चाक-चौबंद करके हादसों को रोका जा सकता है। अब तो आपदा प्रबंधन विभाग भी है। लेकिन फिलहाल देश में आपदा प्रबंधन आग लगने पर कुआं खोदने की तर्ज पर काम करता है।
बंगलुरू मामले में गनीमत इस बात की है कि यहां कांग्रेस की राज्य सरकार मुंह छिपाती नहीं फिर रही है। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री सब मीडिया के सामने आकर अपनी बात कह रहे हैं, अस्पतालों में पीड़ितों से मिल रहे हैं। जबकि हाथरस और प्रयागराज में महाकुंभ में हुई भगदड़ में भाजपा सरकार का रवैया बिल्कुल उलट रहा। महाकुंभ में तो असल में कितने लोगों की मौत हुई और कितनी भगदड़ मची, यह भी अब तक स्पष्ट नहीं है। अलबत्ता इस बार भाजपा को कांग्रेस सरकार को घेरने का मौका मिल रहा है, तो वह जरा सी कसर नहीं छोड़ रही। राज्य सरकार पर घोर लापरवाही के इल्जाम लगाए जा रहे हैं, इस्तीफा मांगा जा रहा है। लोकतंत्र में विपक्ष का रवैया बिल्कुल ऐसा ही होना चाहिए, साथ ही जनता की जान को एक जैसा ही कीमती समझना चाहिए। बहरहाल, इस मामले में बैंगलोर हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर गुरुवार को सुनवाई की थी, जिसमें सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता शशि किरण शेट्टी ने कहा कि राज्य सरकार कोई प्रतिकूल रुख नहीं अपना रही है, इसलिए इसे एक दूसरे पर कीचड़ उछालने वाली बात नहीं करनी चाहिए, हमारा ध्यान घटना की जांच करने और कार्रवाई करने पर है। अदालत जो आदेश देगी हम उस अनुसार काम करने को तैयार हैं। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जब इस तरह की घटनाएं होती हैं तो एक एसओपी यानी मानक प्रक्रिया होना चाहिए। अदालत ने कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन और आरसीबी दोनों को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई अब संभवत: मंगलवार को होगी।
फिलहाल सरकार और आरसीबी ने पीड़ितों के लिए अलग-अलग मुआवजे का ऐलान कर दिया है। लेकिन एक शाश्वत सवाल है कि क्या चंद लाख रुपयों से जो जानें गई हैं, वो क्या वापस आ जाएंगी। असली मुआवजा तो वही होगा जब ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। मगर जिस तरह इस मामले को राजनैतिक हिसाब-किताब चुकता करने का जरिया बनाया जा रहा है, उसमें अच्छाई की उम्मीद नहीं दिखती।
अब इस देश की जनता को विचार करना होगा कि आखिर वह कब तक अकारण जान दांव पर लगाती रहेगी। आरसीबी ने पहली बार आईपीएल का खिताब जीता, बहुत अच्छी बात है। लेकिन यह बात मैच खत्म होने और विजेता की ट्राफी मिलने के साथ ही खत्म भी हो जानी चाहिए। मगर मीडिया, सोशल मीडिया इन सबके बनाए चकाचौंध वाले माहौल में आम आदमी अपनी सुधबुध खोकर वही करने लगता है, जो ये चाहते हैं, जिनसे इन्हें मुनाफा होता रहे। विजेता टीम को खुली बस में घुमाना, जीत की परेड निकालना, उनके स्वागत में जश्न रखना, इन सबमें खिलाड़ियों, टीमों और उनके प्रायोजकों को भारी-भरकम कमाई होती है। आईपीएल जैसे विशुद्ध व्यावसायिक आयोजन में तो कोई भी टीम हारे या जीते कमाई हर हाल में होती है। पर्दे के पीछे बैठे कारोबारी हर ओवर पर अरबों की कमाई करते हैं। ये वही लोग होते हैं जो करोड़ो में खिलाड़ियों को खरीदते हैं, फिर उनसे जुड़े किसी भावनात्मक पहलू को लेकर माहौल बनाते हैं। जैसे अभी विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लिया तो इस बार उनका माहौल बना था और इसलिए आरसीबी की जीत में विराट नायक की तरह पर्दे पर पेश किए गए। आईपीएल के कर्ता-धर्ता जानते हैं कि विराट की प्रसिद्धि से मुनाफा कैसे कमाया जा सकता है। उन्होंने मुनाफा कमा लिया, 11 लोगों ने अपनी जान से हाथ धोया और विराट कोहली यह कहकर चलते बने कि उनके पास कहने के लिए शब्द नहीं हैं।
कम से कम जनता से इतनी अपील ही कर देते कि आगे से ऐसे आयोजनों में जान जोखिम में डालकर शामिल न हो, कम से कम नेताओं से अपील कर देते कि इस हादसे पर न्याय दें, राजनीति न करें। लेकिन विराट कोहली के पास शब्द नहीं हैं, और अरबों की कमाई करने वाले उन जैसे खिलाड़ियों का भी यही हाल होगा, दरअसल इनके पास शब्दों नहीं हिम्मत का अकाल है। खैर अब जनता को ही विचार करना चाहिए कि अपना धन और अपनी जान दोनों देकर भी उसे आखिर में क्या हासिल हो रहा है।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)