चक्की में घुन भी पिस रहा है !

-धीरेन्द्र राहुल-

पता नहीं रोमियो और जुलियट बालिग थे या नहीं? अगर जुलियट 18 वर्ष से कम उम्र की होती और वे आपसी सहमति से यौन संबंध बनाते तो भी बेचारे रोमियो को भादंसं के पोक्सो एक्ट के तहत बीस साल के लिए जेल में टिका दिया जाता।
वह चीखता चिल्लाता रह जाता कि  ‘मी लार्ड, जुलियट की सहमति से संबंध बनाए थे, जज साहब कहते कि 18 साल से कम उम्र की जुलियट की सहमति कोई मायने नहीं रखती। इसलिए तुम बलात्कार के आरोपी हो, जिसकी एकमात्र सजा जेल है। अगर रोमियो जेल में पड़ा सड़ रहा होता तो विलियम शेक्सपियर क्या लिखते?
कहते हैं कि रोमियो जुलियट की कहानी बड़ी दर्द भरी है लेकिन भारतीय अदालत उसे बीस साल की सजा देकर उसके दर्द को और भी संगीन बना देती।
पॉक्सो जैसा कठोर कानून ऐसे ही नहीं आया। निर्भया जैसे हृदयविदारक और देश को हिला देने वाले हादसे के बाद जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट के बाद यह सख्त कानून लाया गया। त्वरित फैसले के लिए वसुंधरा राजे के राज में राजस्थान में एक साथ 53 पॉक्सो कोर्ट खोली गई।
पिछले छह माह के अखबार उठाकर देख लीजिए। पॉक्सो कोर्ट के एक दिन में चार – चार फैसले पढ़ने को मिल जाएंगे। यानी धड़ाधड़ फैसले भी हो रहे हैं लेकिन इस चक्की में घुन भी पीस रहा था। कई हाईकोर्ट भी इस ओर शीर्ष कोर्ट का ध्यान आकृष्ट कर चुके थे।
भला हो हर्षविभोर सिंघल का, जिन्होंने जनहित याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। मुख्य न्यायाधीश डीवाय चन्द्रचूड की पीठ ने राष्ट्रीय महिला आयोग, कानून एवं न्याय व गृह मंत्रालय से जवाब मांगा है।
किशोरों में सहमति से यौन संबंध को अपराध न मानने के इस कानून को रोमियो जुलियट कानून कहा जाता है। इसमें लड़के और लड़की के बीच सहमति हो और चार साल से अधिक का अंतर न हो। सहमति की उम्र चीन में 14, फ्रांस में 15, जापान और ब्रिटेन में 16 साल है।
ऐसे मामलों में स्थिति तब विकट हो जाती है, जब किशोरवय की लड़की गर्भवती हो जाती है। दोनों ने आपसी सहमति से संबंध बनाए। एक को सजा का हकदार मानना और वह भी आजीवन ( 20 साल ) की सजा सुनाना कहां तक उचित है?
समाज में खुलापन बढ़ रहा है। किशोरवय के लड़के लड़कियों की मित्रता अब मां- बाप और समाज को भी नहीं चौंकाती। ऐसे में आपसी सहमति से बने संबंधों पर तालिबानी सजा की कोई जगह हमारे समाज में नहीं होनी चाहिए। न सिर्फ कानून में संशोधन हो बल्कि जो सजा काट रहे हैं। उनके मामलों को भी पुनः खोला जाए। एक एक युवा का जीवन बहुत कीमती है। इस पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए क्योंकि वह किशोरवय का बालक आपके परिवार का भी हो सकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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