
-देवेंद्र यादव-

वरिष्ठ नेता और राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत के पहुंचते ही बिहार कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी कृष्णा अल्लावरु के चेहरे पर शायद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने पहली बार मुस्कान देखी होगी।
विगत दिनों राहुल गांधी ने बिहार कांग्रेस को मजबूत करने के लिए तीन बड़े फैसले लिए थे जिसमें महत्वपूर्ण फैसला बिहार में लंबे समय से काम कर रहे मोहन प्रकाश के स्थान पर युवा कृष्णा अल्लावरु को राष्ट्रीय प्रभारी बनाया था। अल्लावरु के राष्ट्रीय प्रभारी बनने के बाद से ही अल्लावरु बिहार कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता उनके चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए तरस रहे थे। लेकिन 30 जून सोमवार के दिन जैसे ही राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बिहार पहुंचे अल्लावरु के चेहरे पर मुस्कान नजर आई।
लेकिन सवाल यह खड़ा हो गया है कि कांग्रेस हाई कमान को बिहार में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की अब जरूरत क्यों पड़ी, क्योंकि बिहार के तीन बड़े बदलाव को देखने से लग रहा था कि युवाओं की मजबूत टीम खड़ी करके कांग्रेस यहां की सत्ता में वापसी करेगी, मगर अब लगता है कि लौट के घर आ गई।
मगर बड़ा सवाल यह भी है कि अशोक गहलोत बिहार के लिए नए नहीं हैं, इससे पहले भी अशोक गहलोत ने बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने और कांग्रेस की बिहार में वापसी करने का प्रयास किया था मगर सफल नहीं हो पाए थे।
अब बिहार में कांग्रेस के लिए सफलता और असफलता का पैमाना शायद बचा नहीं है। एक बार फिर से कांग्रेस को बिहार में सहयोगी दल राजद की शर्तों पर ही चुनाव लड़ना पड़ेगा।
सवाल यह है कि अशोक गहलोत के बिहार पहुंचते ही बिहार कांग्रेस कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और राष्ट्रीय प्रभारी अल्लावारु के चेहरे पर मुस्कान का राज क्या है। क्योंकि राहुल गांधी ने इन दोनों नेताओं पर बड़ा भरोसा किया था और इन्हें बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने की बड़ी जिम्मेदारी दी थी। मैंने अपने पिछले ब्लॉग में 58 पर्यवेक्षक राजस्थान से लगाने का जिक्र किया था यह 58 पर्यवेक्षक राजस्थान से नहीं बल्कि सारे देश से हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)