उपचुनाव तमिलनाडु में पोस्टर हिंदी में!

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-विष्णुदेव मंडल-

vishnu dev mandal
विष्णु देव मंडल

चेन्नई। इसमें कोई दो राय नहीं कि तमिलनाडु की राजनीति हिंदी विरोध पर टिकी हुई है। यहां तक कि केंद्र सरकार द्वारा कोई भी विज्ञप्ति हिन्दी में प्रसारित होने पर तमिलनाडु के अधिकांश राजनीतिक दल अर्थात एआईएडीएमके, डीएमके, पीएमके, एमडीएमके एनटीके सरीखे राजनीतिक दल हिंदी का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर जाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत करुणानिधि की राजनीती की शुरूआत ही हिंदी विरोध से हुई।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जब भी कोई चुनाव या उपचुनाव होते हैं हिंदी भाषी बहुल परीक्षेत्रों में हिंदी भाषा में बैनर और पोस्टरों की बाढ़ सी आ जाती है।
बहरहाल तमिलनाडु के इरोड में उपचुनाव होने हैं। वहां डीएमके और एनटीके आमने-सामने है जबकि प्रमुख विपक्षी दल एआईएडीएम और भारतीय जनता पार्टी ने अपनी उम्मीदवार नहीं उतारे हैं।
ईरोड के हिंदी बहुल क्षेत्र में हिंदी भाषा में पोस्टर को देखकर एनटीके नेता सत्ताधारी डीएमके के खिलाफ आरोपों की बौछार लगा रहे हैं। एनटीके के कार्यकर्ता सोशल मीडिया के मार्फत डीएमके पर आरोप लगाते हैं कि डीएमके हिंदी का समर्थन है। सिर्फ दिखावा के लिए विरोध करते हैं। एंनटीके कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि डीएमके ने सत्ता के लिए अपनी नीति का त्याग कर दिया है और तमिलनाडु में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए जगह-जगह हिंदी भाषा में पोस्टर और बैनर लगा रहे हैं।
वही ं डीएमके के स्थानीय कार्यकर्ताओं एवं राजनेता हिंदी में छपे पोस्टर के बारे में बचाव की मुद्रा में है। डीएमके इरोड के स्थानीय नेताओं का कहना है की हिंदी मूल के राजस्थान के बहुत सारे व्यवसायी यहां दशकों से रह रहे हैं। वे सभी डीएमके विचारधारा को पसंद करते हैं और हिंदी भाषी होने के कारण उन्होंने आसपास के मोहल्लाओं में हिंदी में पोस्टर लगाए हैं। डीएमके उम्मीदवार चंद कुमार के अनुसार तमिलनाडु में बडी संख्या में हिंदी भाषी लोग व्यवसाय करते हैं या किसी न किसी अन्य कार्यों से जुड़े हुए हैं जिन्हें तमिल पढ़ने लिखनी नहीं आती इसलिए हिंदी भाषी कार्यकर्ताओं ने ही हिंदी में प्रचार हेतु पोस्टर और बैनर लगाए हैं।
सवाल उठता है कि जिस भाषा के लेकर तमिलनाडु में विरोध होता है एवं आमजन को गुमराह किया जाता है वही जब वोटो की बारी आती है तो राजनेता भाषा और क्षेत्र का विवाद क्यों खड़े करते हैं। आखिर लोकतंत्र संविधान और सामाजिक न्याय सामाजिक समरसता भेदभाव रहित समाज बनाने की फेडरेलिज्म की बात करने वाले राजनीतिक दल चुनाव के वक्त अपनी नीति क्यों बदल लेते हैं। बहरहाल डीएमके और एनटीके बीच इरोड चुनाव में बाक युद्ध जारी है।

(लेखक तमिलनाडु के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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