
-देवेंद्र यादव-

अब यदि कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करना है तो राहुल गांधी के बब्बर शेरों को पिंजरे से निकलकर दहाड़ना होगा। महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस को अब गंभीरता से सबसे पहले दो काम करने होंगे। पहला काम अपने घरों में बैठे कुंठित और निराश कार्यकर्ताओं को बाहर निकालना होगा। दूसरा काम मतदाता सूचियों पर गंभीरता से ध्यान देना होगा। कांग्रेस के नेता तो बहुत बनाए मगर कार्यकर्ता और मतदाता बनाने में पार्टी पीछे रह गई। इसकी वजह कांग्रेस ने जो नेता बनाए वह नेता बनकर ठसक में रह गए, और नेता बनने के बाद उन्होंने ठसक भी भारतीय जनता पार्टी को नहीं दिखाई बल्कि अपने ही कार्यकर्ताओं को दिखाना शुरू किया। इस कारण कांग्रेस का वफादार और ईमानदार कार्यकर्ता उदास, निराश और कुंठित होकर अपने घरों में जाकर बैठ गया। इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी ने उठाया और भारतीय जनता पार्टी अपने मतदाताओं की संख्या बढाती रही। परिणाम यह निकला की कांग्रेस राज्य दर राज्य लगातार चुनाव हारती रही।
कांग्रेस को अपने अग्रिम संगठनों को मजबूत और सक्रिय करना होगा। खासकर सेवादल, युवक कांग्रेस, एनएसयूआई और महिला कांग्रेस को। इन चारों ही संगठनों में नेताओं की तो भरमार है लेकिन कार्यकर्ताओं की कमी है। जमीन पर इन चारों संगठनों के नेता तो नजर आते हैं मगर कार्यकर्ता नजर नहीं आते हैं।
इसके लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर मजबूत नेताओं की जरूरत है। कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जंबो कार्यकारिणी बना रखी है। मगर उस जंबो कार्यकारिणी में अधिकांश पदाधिकारी ऐसे हैं जिनका प्रभाव उनके मंडल में भी नहीं है। उन नेताओं को पार्टी हाई कमान ने राज्यों का सह प्रभारी बना रखा है। इन राष्ट्रीय प्रभारी का प्रभाव हाल के दिनों में कांग्रेस ने महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में देखा है। कांग्रेस को यदि भाजपा से लड़ना है तो नेताओं की कम कार्यकर्ताओं की अधिक जरूरत है और कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं की कमी भी नहीं है। लेकिन कांग्रेस का कार्यकर्ता अभी भी कुंठित होकर अपने घरों के भीतर बैठा हुआ है। जरूरत है उसे अपने घरों से निकालने की। सवाल यह उठता है कि कुंठित कार्यकर्ताओं को घरों से निकाले कौन ? क्योंकि कांग्रेस का कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी की जीत और कांग्रेस की लगातार हार की वजह से कुंठित होकर अपने घरों के अंदर नहीं बैठा है बल्कि वह इसलिए कुंठित होकर बैठा है क्योंकि वह अपने ही नेताओं की उपेक्षा का बड़ा शिकार हुआ है। पार्टी हाई कमान ने राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेश जिला और ब्लॉक में ऐसे लोगों को संगठन की जिम्मेदारी दी है जिनका कोई वर्चस्व नहीं है और जिनका वर्चस्व है वह कार्यकर्ता कुंठित होकर घर में जाकर बैठ गया, अब उसे घर से निकालने की जरूरत है लेकिन सवाल वही है निकाले कौन ?
राहुल गांधी बोल बोल कर थक गए कि प्रदेश से लेकर ब्लॉक स्तर पर मजबूत और जन आधार वाले कार्यकर्ताओं को संगठन में लिया जाए। मगर देशभर के राज्यों के पदाधिकारी की सूची को देखें तो अधिकांश पदाधिकारी परिवार या सिफारिश से बने हैं। और जिनका उद्देश्य केवल अपने पद को बरकरार रखना और मौका आए तब पार्टी का टिकट हासिल करना है। संगठन में राहुल गांधी जातिगत हिस्सेदारी की बात कर रहे हैं। हिस्सेदारी तो नजर ही नहीं आ रही है। बिहार में कांग्रेस के भीतर कार्यकर्ताओं का सबसे बड़ा मुद्दा यही है क्योंकि वहां बराबर की हिस्सेदारी संगठन में नहीं है इसीलिए कांग्रेस बिहार में कमजोर है।
इसीलिए राहुल गांधी को भाजपा से लड़ने के लिए अपने बब्बर शेरों को दहाड़ने के लिए पिंजरे से बाहर निकालना होगा। यह नहीं कि जब राहुल गांधी की सभा या रैली हो तब उन्हें राहुल गांधी के सामने लाकर यह सुनने के लिए की कैसे हो बब्बर शेर।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)