
-देवेंद्र यादव-

यदि बिहार में कांग्रेस ने अपनी चुनावी रणनीति को नहीं बदला तो क्या बिहार में भी कांग्रेस की स्थिति पश्चिम बंगाल और दिल्ली की तरह हो जाएगी। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में एक या दो सीट मिली थी, और दिल्ली में कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी।
गत दिनों दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद राहुल गांधी 2025 विधानसभा चुनाव को लेकर गंभीर और सक्रिय हुए। उन्होंने एक के बाद एक बिहार के लगातार तीन दौरे किए और बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए। तीन महत्वपूर्ण फैसले लिए और बिहार में तीन बड़े बदलाव किए। राहुल गांधी की बिहार को लेकर गंभीरता और सक्रियता और बिहार कांग्रेस में किए गए बड़े बदलाव के कारण कार्यकर्ताओं में जोश और सक्रियता नजर आई। लगने लगा कि कांग्रेस अपने दम पर 2025 के विधानसभा चुनाव में बिहार के अंदर बड़ा उलटफेर कर सकती है। राहुल गांधी की बिहार में गंभीरता और सक्रियता ने कुंठित और निराश कार्यकर्ताओं में जोश भरा और उन्हें लंबे समय बाद सड़कों पर संघर्ष करते हुए देखा। लेकिन कार्यकर्ताओं का यह जोश तब ठंडा पड़ता नजर आया जब नेताओं ने राजद के नेताओं के साथ लगातार दिल्ली और पटना में दो बैठक की। इन बैठकों का असर यह हुआ कि कांग्रेस के जो कार्यकर्ता उत्साहित थे वे निराश और कुंठित हो गए। इसकी झलक 20 अप्रैल को उस समय दिखाई दी जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की रैली में भीड़ ही नही जुटी। जबकि खड़गे की जनसभा से पहले, कन्हैया कुमार की पलायन रोको, नौकरी दो यात्रा में जन सेलाब देखा गया। मगर यह जन सेलाब कांग्रेस और राजद की बैठक के बाद अचानक कहां गायब हो गया इस पर कांग्रेस हाईकमान को चिंतन और मंथन करना होगा।
मैंने मल्लिकार्जुन खरगे की 20 अप्रैल को होने वाली बिहार यात्रा से 2 दिन पहले अपने ब्लॉग में लिखा था कि कांग्रेस और राजद की बैठक के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा पड़ गया है।
बिहार को लेकर कांग्रेस के नेताओं में खासकर राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे में या तो विल पावर का अभाव है या कॉन्फिडेंस नहीं है, क्योंकि जो माहौल राहुल गांधी ने बिहार के लगातार तीन दौरे और तीन बड़े बदलाव कर जो माहौल बिहार में बनाया था उस पर राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव के साथ दिल्ली में बैठक कर समाप्त कर दिया।
कांग्रेस को यह समझना होगा कि बिहार में कांग्रेस कमजोर नहीं है। यदि कांग्रेस बिहार में कमजोर होती तो उसे 2024 के लोकसभा चुनाव में तीन लोकसभा सीट जीतने का अवसर नहीं मिलता और ना ही गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 19 सीट जीतने को मिलती। बिहार में कांग्रेस की जीत की असल वजह कांग्रेस का कार्यकर्ता ही है। इस जीत में राजद और तेजस्वी यादव का कोई बड़ा योगदान नहीं है। सबसे पहले कांग्रेस के नेताओं को यह भ्रम निकालना होगा। यदि कांग्रेस बिहार में राजद के कारण जिंदा है तो कांग्रेस को बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव में तीन से अधिक सीट जितने को मिलती और 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 में से कम से कम 40 सीट जीतती। 2020 और 2024 में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव के पहले 2015 में 29 विधानसभा सीट मिली थी और लोकसभा चुनाव 2019 में राजद का सफाया हो गया था। लेकिन कांग्रेस को एक लोकसभा सीट पर जीत मिली थी। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कांग्रेस बिहार में कमजोर नहीं है इसलिए राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को अपना विल पावर और कॉन्फिडेंस को मजबूत रखना होगा। अभी भी वक्त है कांग्रेस बिहार में एक बार अपनी दम पर चुनाव लड़कर देखे और यदि समझौता करना ही है तो बड़े दल से नहीं बल्कि बिहार के छोटे-छोटे दलों से समझौता करे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)