
-देवेंद्र यादव-

केरल के तिरुवनंतपुरम से कांग्रेसी सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर फिर एक बार सुर्खियों में हैं। कांग्रेस के भीतर उनकी भूमिका को लेकर मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या शशि थरूर का भी कांग्रेस से मोह भंग होने लगा है। शशि थरूर भी पूर्व में जिन कांग्रेस के नेताओं ने कांग्रेस को अलविदा कहा ठीक वैसे ही वह भी पार्टी को अलविदा कह देंगे।
शशि थरूर को लेकर सुर्खियां इसलिए मायने रखती हैं क्योंकि केरल में विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक है। भारतीय जनता पार्टी ने असम में कांग्रेस के नेता हेमंता विश्व शर्मा को तोड़कर पार्टी में शामिल किया था और असम में अपनी सरकार बनाई थी क्या ठीक वैसे ही यह पार्टी केरल में भी असम के जैसा प्रयोग करना चाहती है। जहां तक शशि थरूर को कांग्रेस के भीतर जिम्मेदारी की बात करें तो उन्हें लगातार केरल के तिरुवनंतपुरम से प्रत्याशी बनाया जा रहा है। वह लगातार चुनाव जीत भी रहे हैं। कांग्रेस ने उन्हें मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री पद भी दिया था। इसके अलावा कांग्रेस उन्हें हमेशा पद देती रही है। फिर भी शशि थरूर को लेकर सुर्खियां क्यों सुनाई दे रही हैं। सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस के भीतर उनकी उपयोगिता क्या है। क्या शशि थरूर हाई कमान के सामने प्रेशर पॉलिटिक्स करने पर उतर आए हैं क्योंकि निकट भविष्य में केरल के भीतर विधानसभा के चुनाव होने हैं। क्या शशि थरूर केरल में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनना चाहते हैं।
केरल कांग्रेस के लिए इसलिए महत्वपूर्ण राज्य है क्योंकि वायनाड से राहुल गांधी 2019 और 24 में लोकसभा के सांसद बने। अब इस सीट पर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी सांसद हैं। राहुल गांधी रायबरेली और वायनाड से लोकसभा चुनाव जीते थे। उन्होंने वायनाड सीट को छोड़ दिया और उपचुनाव में इस सीट पर प्रियंका गांधी चुनी गई।
शायद इसीलिए शशि थरूर सुर्खियों में है क्योंकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों का विशेष ध्यान केरल पर है। केरल में वामपंथियों और कांग्रेस की सरकार बारी-बारी से बनती आई है। भारतीय जनता पार्टी केरल में अपनी सरकार अभी तक नहीं बना पाई है, क्योंकि केरल में भाजपा के पास ना तो मजबूत नेता है और ना ही मजबूत जनाधार है। भारतीय जनता पार्टी को केरल में मजबूत नेता की तलाश है और शायद भाजपा की नजर शशि थरूर पर है।
यदि भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान इतिहास पर नजर डालें तो 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अधिकांश प्रदेशों में कांग्रेस के नेताओं को तोड़कर उन राज्यों में अपनी सरकार बनाई है। जिसमें उत्तर प्रदेश में जतिन प्रसाद, श्रीमती बहुगुणा, जगदंबिका पाल जैसे काद्यावर नेता थे तो वही मध्य प्रदेश ज्योतिरादित्य सिंधिया, असम में हेमंत विश्व शर्मा, महाराष्ट्र में अशोक चौहान मिलन देवड़ा जैसे नेता थे। जो कांग्रेस से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार बनाई। क्या केरल में भी भारतीय जनता पार्टी इसी प्रकार की रणनीति पर काम कर रही है। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी केरल में अपने नेताओं के दम पर सत्ता में नहीं आ सकती है। भारतीय जनता पार्टी को केरल की सत्ता में आने के लिए अन्य राज्यों की तरह यहां भी बड़ा प्रयोग करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)