
#सर्वमित्रा_सुरजन
सामान्यत: किसी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मेयर आदि के कार्यकाल की वर्षगांठ को देखने के तो लोग आदी हैं परन्तु यदि किसी राजनीतिक संगठन का प्रमुख बनने के दो साल पूरा करने पर दल के कार्यकर्ताओं और जनसाधारण में खुशी हो तो मानकर चलना चाहिये इसके पीछे कोई खास वजह तो होगी ही, ऐसा व्यक्ति भी कुछ विशेष ही होना चाहिये। देश की सबसे पुरानी और स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में दो वर्ष पूरा करने पर यदि सभी एक स्वर से मल्लिकार्जुन खरगे को बधाइयां दे रहे हैं तो वह सिर्फ सांगठनिक शिष्टाचार के बदौलत नहीं वरन यह इस दौरान उनकी निभाई भूमिका एवं नेतृत्व कौशल की सराहना के रूप में कहा जा रहा है। जिस पार्टी के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने शनिवार को कतारबद्ध होकर खरगे को बधाइयां दीं, उस दल ने अपने 140 वर्षों के प्रदीर्घ इतिहास में अनेक महान अध्यक्षों को देखा है, और उनके नेतृत्व में न केवल देश को औपनिवेशिक गुलामी से आजाद कराया है बल्कि देश को फर्श से अर्श तक पहुंचाया है। अलग-अलग परिस्थितियों में कांग्रेस के विभिन्न अध्यक्षों ने पार्टी की सेवा की है। फिर भी पिछले कई वर्षों से ऐसा कोई वाकया याद नहीं पड़ता कि किसी का एक या दो साल पूरा होना यूं मनाया गया हो।
संगठन ने पार्टी के सबसे वयोवृद्ध परन्तु किसी भी युवा नेता की बराबरी की सक्रियता के साथ पार्टी की कमान सम्हालने वाले खरगे के ये दो वर्ष अनेक मायनों में महत्वपूर्ण रहे हैं, जिस दौरान उनकी भूमिका उतनी ही रेखांकित किये जाने के योग्य है। पार्टी में आंतरिक चुनाव के जरिये शशि थरूर को हराकर खरगे 26 अक्टूबर 2022 को इस पद पर आसीन हुए थे। जब खरगे ने कांग्रेसाध्यक्ष का पद सम्हाला था, उसके करीब डेढ़ माह पहले राहुल गांधी अपनी ऐतिहासिक भारत जोड़ो यात्रा प्रारम्भ कर चुके थे। 7 सितम्बर, 2022 को कन्याकुमारी से निकलकर 30 जनवरी 2023 को श्रीनगर में पहुंचकर समाप्त हुए इस पैदल मार्च का आयोजन करने वाले संगठन के कार्यकर्ताओं को ऐसा अध्यक्ष चाहिये था जो चाहे राहुल की तरह 3600 किलोमीटर पैदल न चले (जो सबके बस की बात भी नहीं है), परन्तु एक समानातंर ऊर्जा के साथ संगठन को नेतृत्व प्रदान कर सके।
शशि थरूर की सवर्ण पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं अभिजात्य जीवन शैली के ठीक विपरीत एक बहुत ही कष्टप्रद सामाजिक व्यवस्था को पराजित कर पार्टी के शीर्ष नेताओं की कतार में बैठने के पीछे खरगे का छह दशकों से अधिक का समर्पण एवं कर्मठता थी। इस दौरान कांग्रेस के तमाम उतार-चढ़ावों में पार्टी नेतृत्व के साथ पूरी निष्ठा के साथ खड़े रहने वाले खरगे का जब निर्वाचन हुआ तो कई आश्चर्यचकित थे, तो कई निराश। अधिकतर यह भी मानकर चल रहे थे कि वे शायद ही लम्बे समय तक इस पद पर बने रहेंगे और देर-सबेर गांधी परिवार के ही किसी सदस्य (पहले के कुछ दृष्टांतों के अनुरूप) को इस पद को सम्हालने के लिये आगे बढ़ना पड़ेगा। यह वह वक्त था जब अपनी क्षमता तथा उपलब्ध शक्ति के अनुरूप पार्टी को चलाने के बाद स्वास्थ्यगत कारणों से सोनिया गांधी यह पद छोड़ने की इच्छा जता चुकी थी और दूसरी पसंद राहुल दोबारा अध्यक्ष पद सम्हालना नहीं चाहते थे। वे पहले यह पद 2019 में छोड़ चुके थे जब उनका दल लोकसभा में ऐतिहासिक गिरावट के साथ केवल 44 सीटें पाकर सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के नियमित मखौल का पात्र बनकर रह गया था। अध्यक्ष पद के लिये गांधी परिवार की पसंद खरगे ही थे। उन्होंने कांग्रेस तथा देश को निराश नहीं किया।
यही वह कालखंड था जब कांग्रेस बाहरी हमलों के अलावा भीतरघात से भी बेतरह जूझ रही थी। ‘ऑपरेशन लोटस’ के तहत कांग्रेस के सैकड़ों नेता, विधायक, सांसद आदि पैसे की लालच में या जांच एजेंसियों के डर से भाजपा में समाते जा रहे थे। पार्टी के भीतर ‘जी 23’ जैसी कारगुजारियां हो रही थीं जो पार्टी की भीतरी दीवारों को कमज़ोर करती चली गयीं। ऐसा नहीं कि यह सिलसिला अब थम गया हो। इन तूफानी झटकों के बीच पार्टी रूपी जहाज के मस्तूल को खरगे ने मजबूती से थामे रखा। लोगों को अपने सिद्धातों के प्रति अडिग रहने की प्रेरणा दी। उन्हें लड़ना सिखाया और कांग्रेस को नया कलेवर चढ़ाने में राहुल को किसी अभिभावक या अध्यक्ष से भी बढ़कर सहयोगी के रूप में मदद की। आज वे दल के तमाम तरह के भीतरी मतभेदों, अंतर्विरोधों एवं प्रतिस्पर्धाओं को खत्म कर उसे मजबूती देने का काम कर रहे हैं। राहुल का प्रभाव तो अपनी जगह पर है ही, यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि लगातार छीजती, बार-बार पराजित होती कांग्रेस को तेलंगाना, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर आदि राज्यों के विधानसभा चुनावों में जो जीतें हासिल हुई हैं उनमें खरगे का बड़ा हिस्सा है। 2019 के मुकाबले 18वीं लोकसभा में अपनी ताकत को दुगुना करने के लिये 80 के पार चल रहे खरगे ने स्वयं को जो झोंका वह सबको चकित करने के लिये काफी था। पार्टी के लिये धूप, ठंड व बरसातें झेलते खरगे अपने आप में उदाहरण बन गये हैं।
राहुल ने पिछले दो वर्षों में मोदी की नीतियों के खिलाफ साहसिक विमर्श गढ़कर उसे चुनावी मद्दा बनाया जिसके कारण वे प्रतिपक्षी गठबन्धन के सर्वमान्य नेता बने, तो वहीं अपने संगठन को फिर से अपने पांवों पर खड़ाकर खरगे ने कांग्रेस को इस गठबन्धन का नेतृत्व करने का हकदार बनाया। सामाजिक न्याय, लोकतंत्र एवं संविधान को बहस के केन्द्र में लाने वाले कांग्रेस का प्रतिनिधि चेहरा खऱगे हैं- सर्वमान्य एवं सम्मानित।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल से साभार)