
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस अपने मीडिया सेल को मजबूत करने की रणनीति बनाने में जुट गई है। कांग्रेस को देर से ही सही अब समझ में आ गया है कि मीडिया विशेष कर सोशल मीडिया की ताकत क्या होती है।
27 अप्रैल को तेलंगाना सरकार और कांग्रेस ने मिलकर हैदराबाद में भारत समिट कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें लगभग 100 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। भारत समिट से ही पता चला कि कांग्रेस मीडिया को लेकर अब गंभीर चिंतन कर रही है और रणनीति बना रही है कि वह अपने लिए मीडिया को खास कर सोशल मीडिया को कैसे मजबूत करे।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सलाहकार गुरदीप सिंह सप्पल ने यूट्यूब के चुनिंदा पत्रकारों के बीच में कहा कि देश में लगभग 10000 से भी अधिक लोग हैं जो व्हाट्सएप और सोशल मीडिया पर भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से विपरीत परिस्थितियों में भी लड़ रहे हैं। गुरदीप सिंह सप्पल की बातों से लगता है जो लोग भारतीय जनता पार्टी की नीतियों को लेकर सोशल मीडिया पर लड़ रहे हैं उन पर कांग्रेस की नजर है। इससे यह भी पता चला कि कांग्रेस को अब एहसास हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी से बगैर मीडिया के जीत नहीं जा सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सभी खाते सरकार के द्वारा सीज कर दिए गए थे इसलिए कांग्रेस के पास चुनाव लड़ने के लिए धन का अभाव हो गया था और कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2024 में चौथे फेस तक अपने पोस्टर और बैनर भी नहीं लगा पाई थी। लेकिन कांग्रेस का संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ अभियान देश के लोगों तक पहुंच गया। इसकी वजह सोशल मीडिया ही था और इस कारण कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024 में 99 लोकसभा सीट जीती।
गुरदीप सिंह सप्पल ने कहा कि यदि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन में ही रहते और भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ते तो आज केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं होती।
यदि मीडिया की बात करें तो सोशल मीडिया ही था जिसने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को सफल बनाया। कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा की सफलता के बाद लोकसभा चुनाव 2024 में 99 सीट जीती। इस जीत के बाद भी कांग्रेस शायद सोशल मीडिया की ताकत और कांग्रेस को सोशल मीडिया के द्वारा मिल रहे समर्थन को समझ ही नहीं पाई। कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए राज्यों के विधानसभा चुनाव में एक के बाद एक लगातार हारती रही। अब कांग्रेस को समझ आ गया कि सोशल मीडिया की ताकत क्या होती है। शायद कांग्रेस हाई कमान इस ताकत को इसलिए समझा क्योंकि अब कांग्रेस के पास गुरदीप सिंह सप्पल जैसे अनुभवी, ईमानदार, वफादार सलाहकार हैं जो कांग्रेस हाई कमान को सही सलाह दे रहे हैं। वरना कांग्रेस के पास इससे पहले सलाहकार भी थे और मीडिया के भीतर स्वयंभू रणनीतिकार भी थे। लेकिन वह हाई कमान के इर्द-गिर्द रहकर केवल और केवल स्वयं की राजनीति कैसे जिंदा रहे इसी में लगे रहते थे। देश के मीडिया को कैसे मैनेज करें इस पर ध्यान नहीं देकर राहुल गांधी और कांग्रेस हाई कमान को यह समझाते रहे की मीडिया भाजपा की गोद में जाकर बैठ गया है। राहुल गांधी भी मंच से मीडिया को गोदी मीडिया कहते हुए नजर आए। राहुल गांधी ने मीडिया के उस पार्ट की तरफ नजर नहीं डाली जिसने भारत जोड़ो यात्रा को सफल बनाकर राहुल गांधी की पप्पू वाली छवि को बदलकर जननायक वाली छवि को जनता के बीच पेश किया। वह सोशल मीडिया ही था जो विकट परिस्थितियों में कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए संजीवनी बना।
कांग्रेस ब्लॉक, जिला और प्रदेश स्तर पर अपने मीडिया सेल को अधिक मजबूत करने में जुट गई है। मगर कांग्रेस के मीडिया विभाग मैं वह लोग हों जो वास्तव में मीडिया को समझते हैं और उनमें भाजपा की विचारधारा से लड़ने की ताकत और जज्बा हो। उनमें पार्टी के प्रति वफादारी हो। इसके लिए कांग्रेस को नेता नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं का चयन करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)